रक्षाबंधन
रक्षाबंधन एक पवित्र त्योहार है जो भाई बहन के प्रेम को प्रदर्शित करता है। यह प्रत्येक वर्ष सावन मास के शुक्ल पक्ष यानि सावन की पूर्णिमा को मनाया जाता है। जिस तरह वर्ष का सबसे पवित्र माह सावन है उसी प्रकार हिन्दू धर्म में रक्षा बंधन पवित्र त्योहार है जो भाई -बहन के अटूट प्रेम को उजागर करता है ।
रक्षाबंधन दो शब्दों से मिलकर बना है। रक्षा और बंधन। रक्षा का अर्थ सुरक्षा यानि देख-भाल तथा बंधन का अर्थ बाँधना होता है । यहाँ धागा बांधने का अभिप्राय है भाई-बहन के प्रेम का बंधन। इसे हम इस तरह से कह सकते हैं कि जो हमारी सुरक्षा करता है वही धागा जो प्रेम पर आधारित होती है, वही यह बंधन है। वास्तव में रक्षा बंधन हिन्दुओं का पवित्र पर्व है। इस दिन बहनें अपने भाईयों के कलाई पर राखी बाँधती है तथा माथे पर तिलक लगाती है और हृदय से ईश्वर के प्रति सच्ची श्रद्धा को रखते हुए प्रार्थना करती है कि उसका भाई जहाँ भी रहे सुरक्षित रहे तथा हमेशा हर अच्छे क्षेत्र में विजयी प्राप्त करे। भाई भी उस दिन अपने बहन से रक्षासूत्र के रूप में उस राखी को बंधवा अपनी बहन को उपहार स्वरूप वस्तुएँ देते हैं तथा जीवन पर्यन्त उसकी सुरक्षा करने का वचन देता है। यही भाई-बहन का अटूट प्यार होता है जो एक दूसरे को आपस में बांधे रखता है।
रक्षाबंधन के एक दो दिन पहले से ही बाजार में बहुत ही चहल-पहल रहती है। बहनें अपने भाईयों के लिए रंग-बिरंगी राखियाँ खरीदती है तथा मिठाईयाँ भी इस दिन खूब बिकती हैं। सभी बहनें बड़े उत्साह के साथ बाजार जाती है तथा राखी के साथ-साथ मिठाईयाँ भी खरीदतीं है। रक्षाबंधन के दिन बहन और भाई दोनों सुबह स्नान ध्यान कर तैयार हो जाते हैं। बहन पूजा की थाली सजाती है जिसमे मिठाईयाँ, रौली, चंदन तथा दीपक और रंग-बिरंगी चमचमाती राखियाँँ रहती है। यह पर्व बड़े हर्षौल्लास से मनाया जाता है। बहन, भाई को राखी बाँधती है और भाई सुख- दुःख में बहन की सहायता करने का वचन दोहराता है और एक-दूसरे को मिठाई खिलाते हैं। बहन, भाई के माथे पर तिलक लगाती है तथा भाई की आरती उतारती है। बहन भाई का यह स्नेह बंधन आजीवन चलते रहता है।
रक्षाबंधन बहुत पुराना त्योहार है। इस त्योहार के पीछे एक कहानी प्रचलित है कि एक बार “महारानी कर्णावती” की राजधनी चित्तोड़गढ़ पर बहादुर शाह ने आक्रमण किया था जिसमें महारानी की सेना उसका मुकाबला नहीं कर सकी और कर्णावती हारने के कगार पर पहुँच गई किन्तु उसी क्षण उन्होंने बादशाह हुमायुँ को राखी भेजी तथा मदद के लिए संदेशा भेजा। संदेश तथा राखी पाकर बादशाह हुमायुँ बहुत प्रसन्न हुए और महारानी की सहायता के लिए चित्तोढ़ पहुँच गए और उनकी रक्षा की। इस तरह की घटना भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक है।
इसी प्रकार दूसरी कहानी भी है कि एक बार भगवान कृष्ण के हाथ में चोट लग गई जिससे रक्त की हल्की धारा बहने लगी तभी द्रौपदी ने अपनी साड़ी के आँचल को फाड़कर भगवान श्री कृष्ण के हाथ में पट्टी बाँध दी थी। तभी से ही भगवान कृष्ण ने यह वचन लिया था कि विपत्ति के समय में मैं सदैव तुम्हारा साथ दूंगा। महाभारत के युद्ध में द्रौपदी के चीरहरण के समय भगवान कृष्ण सही समय उपस्थित होकर उस विपत्ति में द्रोपदी की सहायता की तथा अपने भाई-बहन के प्रेम को भी प्रर्दशित किये। इस प्रकार सभी भाई मुसीबत के समय बहनों की रक्षा का प्रण करते हैं तथा समय आने पर उसे निभाते हैं।
रीना कुमारी
प्रा०वि० सिमलवाड़ी पश्चिम टोला
बायसी पूर्णियाँ बिहार
सुंदर लेख दीदी👌👌👌
बेहतरीन
बहुत उम्दा लेखनी दी
निश्चय ही प्रशंसनीय लेख ।
बहुत बेहतरीन मैम ! लेख में आपने इस त्योहार के हर पहलू को बखूबी उभारा है
सुंदर लेख
अच्छी रचना!👌
बहुत सुंदर रचना ।हमें अपनी पौराणिक संस्कृति की याद दिलाती आपकी यह सुंदर प्रस्तुति ।हार्दिक बधाई ।
बहुत ही सुंदर लेख है मै आपकी उज्ज्वल भविष्य की कामना करता है
Good
बेहद उत्कृष्ट रचना…. लाजवाब👌👌
Bàhut hi sunder lekh
बहुत ही अच्छी रचणा 👌👌
बहुत ही सुंदर रचना है
बहुत ही सुंदर रचना है
Bahut achhi lekh h
बहुत ही सुन्दर लेख प्रस्तूत किया
बहुत बहुत धन्यवाद
अति सुंदर लेख है मैम
बहुत ही सुंदर लेख
So good 👏👏
बहुत ही सुंदर लिखी हैं।
उत्कृष्ट रचना रीना जी ।👌
बहुत ही शानदार और सुन्दर आलेख, शुभकामनाएं