अटूट बंधन-अर्चना गुप्ता

अटूट बंधन

          सुनो, जल्दी से गरमागरम पकौड़े ले आओ, सुनील ने ऊँची आवाज में राधा से कहा। पर राधा ने बात को अनसुना कर दिया। फिर जब सुनील ने झल्लाकर राधा को कहा तो अनमने ढंग से राधा कीचेन की ओर बढ़ी। सुबह से ही राधा उदास थी। उसे मायके से खबर मिली थी कि विनोद (राधा का भाई) अभी भी बोर्डर पर ही तैनात है। इस बार वह छुट्टी लेकर रक्षाबंधन में घर आने वाला था पर जंग छिड़ जाने के कारण उसकी छुट्टी कैंसिल हो गई। घर में सबसे छोटी होने के कारण इस बार वह सोची थी कि मायके में पहले की तरह सभी भाई बहन खूब मस्ती करेंगे। वह पकौड़े भी तल रही थी और रक्षाबंधन में भाई के नहीं आने पर दुःखी भी हो रही थी। रक्षाबंधन के बस चार दिन बाकी थे ।

सुनील ने जब देखा कि राधा बहुत उदास है तो उसे अपने झल्लाने पर अफसोस भी हुआ। वह राधा का हाथ अपने हाथों में लेकर प्यार से कहा-” ठीक है तुम पैकिंग कर लो, रक्षाबंधन में मायके चलना है न”।
इतना सुनते ही राधा सुनील से लिपटकर रोने लगी। सुनील से भावनात्मक सहारा मिलने के बाद वे दोनों मिलकर सामान की पैकिंग करने लगे। अगली सुबह राधा मायके के लिए निकली। रास्ते में एक स्टाॅप पर जब गाड़ी रूकी तो सुनील नीचे उतरा। ज्योंही वह नीचे उतरा तो अचानक से उसे लगा कि विनोद भी गाड़ी की तरफ मुस्कुराते हुए आ रहा है। फिर कुछ ही पल में विनोद पीठ पर बैग लटकाये सामने खड़ा था। तब वे लोग गाड़ी के अंदर गए। जब राधा ने विनोद को देखा तो उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था। तब विनोद ने राधा से कहा- छुटकी, मैं कैसे नहीं आता रक्षाबंधन में”! इतना सुनते ही दोनों भाई-बहन की आँखों से आँसू गिरने लगे। सुनील की आँखे भी नम हो गयी थी।

यही तो है भाई-बहन के स्नेह का अटूट बंधन। खून का रिश्ता हमेशा से ही अटूट होता है। फिर रक्षाबंधन के दिन वे लोग पहले की तरह ही खूब मस्ती किए ।

अर्चना गुप्ता
म. वि. कुआड़ी
अररिया बिहार

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4 thoughts on “अटूट बंधन-अर्चना गुप्ता

  1. छुटकी, मैं कैसे नहीं आता रक्षाबंधन में ?
    ये पंक्ति ही काफी है इस पर्व की महत्ता में। बहुत सुंदर रचना। धन्यवाद मैम।

  2. दिलीप कुमार गुप्ता प्रधानाध्यापक मध्य विद्यालय कुआड़ी अररिया says:

    रक्त संबंध परमात्मा की असीम कृपा है ।इसकी पवित्रता निश्छलता व स्नेहिल सुखद भावों को आपकी सुस्थापित लेखनी नेबड़े ही खूबसूरत ढंग से इस लघुकथा मे पिरोया है ।हार्दिक बधाई ।🙏🙏

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