रूप से बड़ा गुण
एक बार की बात है। एक गाँव में एक सेठ रहता था। वह कपड़े का व्यापार करता था। उसके मुनीम का नाम मोहन था। मुनीम की एक बेटी थी मीना। सेठ जी भी अपनी पत्नी और पुत्री रोमा के साथ खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहे थे। धीरे-धीरे समय बीत रहा था। मुनीम की एक मात्र बेटी ही थी, उसकी पत्नी का निधन हो चुका था।
एक दिन अचानक मुनीम की तबीयत बिगड़ने लगी। अपनी मृत्यु को निकट जान वह अपनी बेटी मीना को सेठ के पास रख आया। उसने सेठ जी से विनती की कि वह मीना को अपने पास रख लें क्योंकि मीना का अपने पिता के अलावा और कोई नहीं था। सेठ जी भी मुनीम की बातें सुनकर द्रवित हो गए और उन्होंने मीना को अपने पास रख लिया। कुछ दिनों के बाद मुनीम की मृत्यु हो गई। समय अपने अबाध गति से चलता रहा। धीरे-धीरे मीना और सेठ जी की पुत्री रोमा दोनों ही बड़ी होने लगीं। सेठ जी की बेटी एक बड़े इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढती थी। सेठ जी ने मीना का नामांकन भी गाँव के एक सरकारी विद्यालय में करवा दिया। सेठ जी की बेटी काफी खुबसूरत थी वहीं मीना एक साधारण नैन-नक्स की लड़की थी। सेठ की पुत्री रोमा को अपने पिता के पैसे और अपनी खुबसूरती पर बड़ा घमंड था। वह एक घमंडी लड़की थी। वह किसी से सीधे मुँह बात नहीं करती थी जबकि मीना पढ़ाई के साथ-साथ घर के काम भी किया करती थी। वह एक मृदुभाषी लड़की थी। सेठ जी और उनकी पत्नी का वह पूरा ध्यान रखती थी। सबों के साथ उसका व्यवहार काफी अच्छा था। सेठ-सेठानी भी उसे अपनी बेटी की तरह ही मानते थे। धीरे-धीरे लड़कियाँ बड़ी हो गई।रोमा ने MBA किया जबकि मीना ने BA तक की पढ़ाई गाँव के पास वाले काॅलेज से की। अब सेठ जी को रोमा की शादी की चिन्ता होने लगी। उन्होँने रोमा के लिए लड़के देखने शुरू कर दिये।
एक दिन एक अच्छे घराने का लड़का उन्हें पसंद आ गया। लड़का इन्जीनियर था और अच्छा कमाता था। सेठ जी ने लड़के के पिता से शादी की बात चलाई। कुछ दिनों के बाद लड़के वाले रोमा को देखने के लिए लिये आये ।लड़के वालों के आने पर सेठ जी ने उनकी खूब आव-भगत की। मीना भी सेठ जी एवम सेठानी जी के साथ मेहमानों का ध्यान रख रही थी।साथ ही वह उनसे बातें भी कर रही थी और उनके सभी बातों का सलीके से जवाब भी दे रही थी। उसके हाव-भाव से ही उसकी तमीज झलकती थी। इसके ठीक विपरीत रोमा की भाव-भंगिमाएँ अच्छी नहीं थीं। उसके बात करने का अंदाज, उसके हाव-भाव सभी से घमंड झलकता था। लड़के वालों ने रोमा को देखा, उससे बात-चीत भी की और फिर यह कहकर वापस चले गए कि घर जाकर जवाब दूँगा। इसी तरह दो-चार दिन बीत गए। लड़के वालों का कोई जवाब नहीं आया। अब सेठ जी से रहा नहीं गया। उन्होँने लड़के के पिता को फोन लगाया और उनका हाल-चाल पूछने के बाद सीधे मुद्दे पर आ गये। उन्होंने लड़के के पिता से पूछा कि रोमा उन्हें कैसी लगी? लड़के के पिता कुछ देर चुप रहे, फिर उन्होंने कहा कि मुझे रोमा नहीं मीना पसंद है। यदि आप चाहें तो मैं मीना को अपनी बहु बनाना चाहता हूँ। यह सुनकर सेठ जी स्तब्ध रह गए परन्तु फिर वे मीना की शादी के लिए मान गये क्योंकि मीना को भी वे अपनी बेटी ही मानते थे।
अत: इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि रूपवान होना कोई मायने नहीं रखता बल्कि लोगों का गुणवान होना जरूरी होता है ।
प्रीति कुमारी
कन्या मध्य विद्यालय मऊ
विद्यापति नगर
समस्तीपुर