समझदारी
प्रतिदिन की तरह आज भी रोहित जब सुबह की सैर करते हुए सड़क किनारे जले इक्का, दुक्का स्ट्रीट लाइट को बुझाते हुए मस्जिद वाले चौराहे पर पहुँचा तो वहाँ काफी चहल-पहल थी। कोचिंग क्लास करने वाले छात्र-छात्राएँ तेजी से अपने गंतव्य की ओर क़दम बढ़ाए जा रहे थे। उसे दूर से ही एक स्ट्रीट लाइट जलते हुई दिखी। वह तेजी से क़दम बढ़ाता हुआ बल्ब के पास पहुँचता उससे पहले ही एक अधेड़ उम्र की महिला सड़क पार कर स्वीच की ओर हाथ बढ़ा चुकी थी। वह ठिठक गया और विनम्रता पूर्वक हाथ जोड़कर बोला-माता जी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। आज मेरा प्रयास सफल हुआ। आपने मेरा काम आसान कर दिया। महिला ने झेंपते हुए कहा- नहीं बेटा! भगवान का आशीर्वाद है, मैं तो केवल अपना फर्ज़ निभाई हूँ। श्रद्धा से उसका सिर उनके आगे झुक गया। बातचीत की शैली और पहनावे से वह निरक्षर मजदूर वर्ग की लग रही थी पर उनकी सोच कितनी ऊँची है। जो कार्य समाज के शिक्षित और सुसंस्कृत वर्ग को करना चाहिए वह कोई और कर रहा है जिससे अपेक्षा नहीं कर सकते हैं।
वर्षों से रोहित जिस रास्ते से सुबह की सैर पर निकलता, जलती बल्ब को बुझाता एवं बेकार में बहते नल को बंद करता तथा आस-पास में खड़े लोगों से ऐसा करने की प्रार्थना भी करता। हालांकि पहले उसे लोगों का कटु वचन एवं तिरस्कार भी सहना पड़ता था पर उसने कभी हार नहीं मानी और अपना कार्य कर्त्तव्य समझ कर करता रहा जिसका प्रतिफल है कि आज अधिकांश लोग बिजली, पानी की कीमत समझ रहे हैं। उसके दुरुपयोग के प्रति सजग भी हो रहे हैं। आवश्यकता है लोगों को जागरूक और प्रेरित करने की ताकि आने वाली पीढ़ी को प्रकृति के इस अनमोल उपहार को सौंप सकें जिससे उसे कम से कम परेशानी सहना पड़े।
जैनेन्द्र प्रसाद रवि
म. वि. बख्तियारपुर
पटना
बहुत अच्छी, प्रेरणादायक कहानी ।
सच्ची घटना पर आधारित आलेख जिसे अपने शब्दों में लीपिबद्ध किया गया है।