संकल्पों की शक्ति
ओम और अक्षय दोनों बचपन के मित्र थे। ओम अपने नाम के अनुरूप ही शांत, हसमुख, विनम्र और मेहनती था जबकि अक्षय स्वभाव से चंचल था।
दोनों मित्र काम की तलाश में गांव से शहर की ओर चले। गांव से निकलते समय दोनों का ही मन बहुत भारी था। अपना गांव, पत्नी बच्चे सब को छोड़कर जाना आसान नहीं था परंतु रोजी-रोटी के लिए दूसरा और कोई उपाय शेष ना था।
दोनों शहर पहुंचे। काम की तलाश में 2 दिन गुजर गए। तीसरे दिन एक दवाई की दुकान में दोनों को साथ-साथ काम मिल गया। दुकान के मालिक को 2 स्टाफ की आवश्यकता थी। जो उनका हाथ बटाए, दोनों ने खुशी-खुशी काम शुरू किया। ओम के शांत, विनम्र और मेहनती स्वभाव ने जल्दी ही मालिक को प्रभावित कर दिया। वही अक्षय की चंचलता की वजह से मालिक उससे नाराज रहते परंतु, ओम के समझाने पर मालिक उसे माफ कर देते।
देखते ही देखते मालिक ने ओम को दुकान का सर्वे सर्वा बना दिया परंतु अक्षय नौकर ही बनकर रह गया। ओम अक्षय को समझाता रहता, तुम शांत रहो, मन से काम करो, ग्राहकों के साथ अच्छे से पेश आओ तो मालिक तुमसे भी खुश हो जाएंगे परंतु अक्षय हमेशा नाकारात्मक बातें ही करता। उसे मन ही मन ओम से ईर्ष्या भी होने लगी थी।
ओम की स्थिति इतनी अच्छी हो गई कि वह अपने परिवार को गांव से शहर ले आया। ओम सदा अपने कार्य से संतुष्ट रहता खुश रहता और अपनी हर प्राप्ति के लिए परमात्मा को धन्यवाद करता। वह सदा सबके लिए अच्छा सोचता। उसे हमेशा यह विश्वास रहता कि परमात्मा सदा उसके साथ है। उसके जीवन में सब कुछ अच्छा ही होगा।
वहीं अक्षय अपनी नाकारात्मक सोच और चंचल स्वभाव के कारण आगे नहीं बढ़ पा रहा था। वह हर बात का कसूरवार परमात्मा को ठहराता। ओम से अक्षय की यह अवस्था देखी नहीं जा रही थी। ओम अक्षय से मिलने उसके घर जाता है। ओम उसके हाथों में 10000 देकर कहता है मित्र इन पैसों से तुम कुछ नया काम शुरू करो। मुझसे तुम्हारी हालत देखी नहीं जा रही। दोनों मित्र गले लग जाते हैं। ओम अक्षय को समझाता हैै। सदा उस परमपिता परमात्मा पर विश्वास रखो। अपने संकल्पों को सुंदर बनाओ और मेहनत करो तो तुम्हारा जीवन भी बहुत सुंदर और सुखद हो जाएगा।
अक्षय को ओम की बात समझ में आ जाती है। वह कहता है हां मित्र आज मैं समझ गया कि हम दोनों ने एक ही साथ, एक ही काम प्रारंभ किया पर तुम आगे बढ़ते गए और मैं कुछ नहीं कर पाया। आज से मैं सदा शांत रहूंगा। सभी ग्राहकों से विनम्रता पूर्वक बात करूंगा और सदा सबके लिए अच्छा सोचूंगा और इसकी शुरुआत मैं अभी से ही करता हूं। मैं धन्यवाद करता हूं उस परमात्मा को जिसने मुझे तुम्हारे जैसा सच्चा मित्र दिया और मित्र मुझे यह पैसे नहीं चाहिए।मैं उसी दुकान में आज से बिल्कुल अपने व्यवहार को बदलकर मेहनत से काम करूंगा तो मेरा जीवन भी निश्चित रुप से सुंदर हो जाएगा, सुखी हो जाएगा|
अगले दिन अक्षय में आए परिवर्तन को देखकर मालिक बहुत खुश होते हैं और कुछ ही दिनों में अक्षय भी सबका प्यारा बन जाता है। अक्षय बहुत मेहनत और लगन से काम करता। सदा संतुष्ट रहता है और परमात्मा को अपनी प्राप्तियों के लिए धन्यवाद करता रहता। कुछ वर्षों में ही दोनों मित्रों ने अपनी-अपनी अलग दुकानें खोल ली। दोनों सुख से रहने लगे।
ब्रम्हाकुमारी मधुमिता ‘सृष्टि’
पूर्णिया (बिहार)