शिवमंगल सिंह सुमन
शिवमंगल सिंह सुमन का जन्म उत्तरप्रदेश के जिला उन्नाव में 5 अगस्त 1915 में हुआ था। उनके शुभागमन से उत्तरप्रदेश की धरा पल्लवित हो गई। उनकी प्रारंभिक शिक्षा भी वहीं हुईं। ग्वालियर के विक्टोरिया काॅलेज से बी. ए. एवं काशी हिंदू विश्वविद्यालय से एम. ए. की डिग्री हासिल की। हिंदी साहित्य के वो एक उम्दा व प्रगतिशील कवि तो थे ही साथ ही कुशल अध्यापक, प्रशासक, महान शिक्षाविद और विचारक भी थे। वे सभी के प्रिय थे। उनकी लेखनी व उनके सरल स्वभाव ने उन्हें साहित्य के क्षेत्र में शीर्ष का स्थान दिया।
हमारे महान लेखक व कवि श्री सुमन जी को सोवियत लैंड नेहरू, भारत भारती पुरस्कार, देव पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार, शिखर सम्मान के साथ साथ पद्मश्री और पद्मभूषण से भी नवाजा गया।
शिवमंगल सिंह सुमन जी की एक बेहद मशहूर कविता जो हम सभी ने कक्षा सात में पढी थी हम पंछी उन्मुक्त गगन के में पक्षी के माध्यम से उन्होंने हम मनुष्यों के जीवन में स्वतंत्रता के महत्व पर प्रकाश डाला है। कविता में पक्षी अपनी मनोदशा या यूँ कहें कि अपनी व्यथा प्रकट कर रही है। वह कह रही हैं कि हम पक्षी अपना गान पिंजरे में नहीं गा पाएँगे, चाहे वह पिंजरा सोने का ही क्यों न हो। हमें बहता हुआ पानी पसंद है न कि सोने की कटोरी में रखा गया जल। तात्पर्य कि पक्षी भूखे मर जाना पसंद करेंगे लेकिन गुलामी और पराधीनता की जिंदगी से उन्हें तौबा है।
इस कविता का मूल भाव यह है कि जिस तरह पक्षियों को स्वतंत्रता प्यारी है उसी तरह हम मानव को भी स्वतंत्र होकर अपने विचारों को, अपने हौसलों को नयी उड़ान देना चाहिए। पराधीन व्यक्ति सिर्फ सपने तो देख सकता है परंतु स्वतंत्र रूप से विचरण नहीं कर सकता। जिस प्रकार पक्षी सोने के पिंजरे में कैद होकर अपनी प्राकृतिक उड़ान भूल गए हैं सिर्फ सपनों में ही वे वृक्ष की डालियों पर झूलते हैं, ठीक उसी प्रकार मनुष्य के विचारों को भी अगर कैद कर दिया जाए तो वे स्वयं को भी नहीं पहचान पाएँगे। यही इस कविता का सार है। सुमन जी इस कविता के माध्यम से हम मनुष्यों को एक अच्छी व गहरी सीख दे गए। उन्हें शत शत नमन!
उनके काव्य संग्रह के तो क्या ही कहने..
रणभेरी, हम पंछी उन्मुक्त गगन के, आभार, सूनी सांझ, जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला, मैं नहीं आया तुम्हारे द्वार, पतवार, मिट्टी की बारात, जीवन के गान, चलना हमारा काम है, हिल्लोल, वाणी की व्यथा, युग का मोल इत्यादि उनकी मुख्य कविताओं में से एक है। कुछ ही मुख्य रचनाओं को इंगित की हूँ। 27 नवंबर 2002 ई० को दिल का दौरा पड़ने के कारण शिवमंगल सिंह सुमन जी का निधन हो गया।
नूतन कुमारी (शिक्षिका)
डगरुआ, पूर्णियाँ
बिहार
नोट–उपरोक्त आँकड़े और विचार लेखक के स्वयं के हैं।
बहुत ही बेहतरीन रचना के लिए बधाई मैम
Bahut achi baat Kahi Apne lekin vichaaro ki swatantrta her koi ko Joni chahiye lekin aajkal log us swatantrta ko dusro pe thopte Jo ki nhi hona chahiye
सराहनीय