स्वामी विवेकानंद-अश्मजा प्रियदर्शिनी

स्वामी विवेकानंद: युवाओं के प्रेरणा स्रोत

“उठो मेरे शेरों, इस भ्रम को मिटा दो कि तुम निर्बल हो,
तुम एक अमर आत्मा हो, स्वछन्द जीव हो, धन्य हो,
सनातन हो, तुम तत्व नहीं, न शरीर हो, तत्व तुम्हारा
सेवक है, तुम तत्व के सेवक नहीं हो ! “
ऐसे अदम्य साहसिक प्रेरणा प्रदत्त विचारों के पुरोधा, युवाओं को अपने वचनों से झंकृत करने वाले ओजस्वी प्रतिभा के शिरोमणि, युवाओं के प्रेरणास्रोत स्वामी विवेकानंद अनन्तकालिक भावना को अभिव्यक्त करनेवाले भारतीय
पुनर्जागरण के महान स्तंभकार थे ! उनका जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता के कायस्थ परिवार में हुआ ! बचपन में उनका नाम नरेंद्र नाथ दत्त था ! उनके गुरु राम कृष्ण परमहंस ने उन्हें विवेकानंद की संज्ञा दी ! उनके प्रखर बुद्धि मत्ता एवं रफ्तार से जवाब देने के कारण वे विवेकानंद के नाम से प्रसिद्ध हो गये ! विवेकानंद ने सामाजिक व्यवस्था का गहन अध्ययन किया एवं समाज के संदर्भ में दिए गये उनके
उपदेश आज भी प्रासंगिक है ! अमीर- गरीब के बीच की खाई को मिटाकर वे एक
समतामूलक समाज की स्थापना करना चाहते थे ! उनका समाजवाद बल एवं
नफरत नही, बल्कि गरीब वर्गों को समाज के मुख्य धारा में जोड़ने की नीति है ! वे
गुरुकुल शिक्षा पद्धति के प्रबल समर्थक थे ! शिक्षा में नैतिक मूल्यों पर विशेष महत्व देते थे ! वे अंग्रेजी शिक्षा के भी विरोधी नही थे ! वे कहते “भारतीय अंग्रेजी सीखकर वैज्ञानिक प्रगति के विषय में जाने एवं अनुसंधान करें, दृढ आत्मविश्वास का विकास करें, निष्काम कर्तव्य की भावना रखें ! “ऐसे प्रेरणा स्रोत से भारतीयों में प्रेरणा शक्ति एवं उत्साह जगाते रहे ! राष्ट्रीयता की भावना से ओतप्रोत, तथ्यपरक संस्कृति की विवेचना करने के कारण विवेकानंद जी को संस्कृति नायक के रूप में भी जाना जाता है ! स्वामी विवेकानंद सार्वभौमिक धर्म के सूत्रधार भारतीय पुनर्जागरण के महान संत अध्यवसायी व गंभीर विचारक, धर्म ज्ञाता, महान तेजोमय, ओजस्वी वक्ता, ससमाजसुधारक,
दार्शनिक विचारों के ज्ञानी, युवाओं के प्रेरणा स्रोत, देदिप्यमान व्यक्तित्व के स्वामी थे !
उनका आविर्भाव उस विषय परिस्थितियों में हुआ जब संसार में भौतिकवाद का जहर विश्व के सुख-समृद्धि और शान्ति को लीलने हेतु चहुँ ओर फैला था ! इन अराजकता वालीपरिस्थितियों में विवेकानंद ने प्राचीन भारतीय वाड्मय, वेद, पुराण, उपनिषदों, आदि
का अध्ययन कर जीवनोपयोगी धर्म के कार्य को सरलतम ढंग से प्रचारित किया ! तत्समय
भौतिक वस्तु को पाने की जिजीविषा सभी जगह परिलक्षित हो रही थी ! इस विकट समस्या का समाधान उन्होंने आध्यात्मिक शक्ति को माना और इन शक्तियों के व्यवहारिक स्वरूप पर बल दिया !उनका माना था जब गरीब भूखों मर रहे हैं तो उन्हे आवश्यकता से अधिक धर्मोपदेश देना व्यर्थ होगा क्यूँकि इन मतांतर से किसी का पेट नहीं भरता ! विवेकानंद ने हिन्दू धर्म पर
अपना सम्भाषण दिया जिसमें अभियंत्रित शक्ति, वेद-वेदान्तो की अनादि अनंत शक्ति, सृष्टि के सार, आत्मा, जीवात्मा, जनमांतरणवाद, कर्मयोग, अहैतुकी भक्ति, सर्वधर्म सम्भाव, हिन्दू
धर्म की उदारता आदि गूढ़ विषयों पर अपना दृष्टिकोण सभाओं में प्रस्तुत किया ! उनकी वाक् शक्ति के संचरण से ज्योहि अमेरिका मे उनहोंने बहनों और भाइयों कह कर संबोधित किया सभासदों की करतल ध्वनि गूंज उठी !अपने सम्बोधन से श्रोताओं के दिल जीत लेते थे ।मेरी मातृभूमि , मेरा भरत , मेरा देश का सम्बोधन रोम – रोम में समाहित कर जाता । गीता के सार के कुछ श्लोक का अधिग्रहण करने हेतु प्रशंसक भाव – विभोर हो जाते । स्वामी जी के आदर्श विचार थे – “ उठो और जागो और तब तक न रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए । “

वस्तुतः सभी धर्म अपने वास्तविक पक्षो में भाषा , विधि – विधान ,पुस्तक , उत्सव ,पूजन के कृत्य में भिन्न है , परन्तु आंतरिक पक्ष आपस मे विरोधी नही पूरक है।
जिस प्रकार एक ही मंदिर परिसर में ली गई चार तस्वीर एक – दूसरे से भिन्न होती है , परन्तु वे सभी तस्वीर मंदिर से जुड़ी रहती है । इसी प्रकार संसार मे धर्मो की विविधता है ,परन्तु आंतरिक पक्ष आस्था एवं विश्वास से जुड़ा रहता है । उसमें अंतर्निहित सत्य भिन्न नही होते । सार्वभौमिक धर्म इसी सत्य की अनुभूति है । संसार मे चाहे विविध धर्म हो पर हमें धर्म के तादात्म्य आधार को पहचानना आवश्यक है । यही पहचान अथवा ज्ञान सार्वभौमिक धर्म है एवं विविध धर्म को आस्था को अनुभूत करना इसका सार है ।जिस प्रकार एक राहगीर के लिए अपने गंतव्य तक पहुँचने के लिए तय किए गए मार्ग महत्वपूर्ण है । उसी प्रकार ईश्वर तक पहुँचने हेतु किसी भी धर्म का किया गया विविध प्रयास महत्वपूर्ण है । ये ही सार्वभौमिकता है । सार्वभौमिकता धर्म में उद्देश्य समान रहता है । विवेकानन्द के शव्दों में जो जो उन्होंने अपनी पुस्तक India of universal relesion में लिखा है – “हमार मन वर्तमान की भाँति है । हम ईश्वर की प्राप्ति हेतु प्रयास करते है पर ईश्वर जल की भाँति है ,जो हर प्रकार के वर्तन में भरा जा सकता है और प्रत्येक वर्तन में ईश्वर का स्वरूप भिन्न भिन्न होगा फिर भी वह जल स्वरूप में एक ही है । स्वामी विवेकानंद के दिव्य वचनों का संसार पर गहरा असर पड़ा क्योंकि वह अपने अपने ईश्वर नहीं बल्कि सार्वभौमिक धर्म की अवधारणा पर विश्वास करते थे! उनके दर्शन में केवल दर्शन की बात नहीं थी बल्कि उद्देश्य पूर्ण सार्वभौमिक धर्म की स्थापना की बात थी ! सार्व भौमिक धर्म उनके धर्म का व्यवहारिक पक्ष है! वे आधुनिक संसार की समस्या का कारण व्यक्तिगत विभिन्नता ,अनेकता एवं असहिष्णुता को मानते हैं ! जिसके कारण विभिन्न वैज्ञानिक उन्नति होने के पश्चात भी संसार अवनति के गर्त में गिरता जा रहा है ! वर्तमान परिदृश्य में घृणा, ईर्ष्या, शक्ति की लालसा, धन का लोभ अधिक व्याप्त है जिसके कारण मनुष्य अशांत और विक्षिप्त हो गया है विवेकानंद के अनुसार सभी धर्म का आदर करना आवश्यक है जिससे सार्वभौमिक धर्म की प्रासंगिकता और बढ़ गई है ! उनके आदर्श विचार थे –“मानव सेवा ही ईश्वर की सच्ची सेवा है ।“

अश्मजा प्रियदर्शिनी पटना,बिहार

0 Likes
Spread the love

2 thoughts on “स्वामी विवेकानंद-अश्मजा प्रियदर्शिनी

Leave a Reply