अबोध बच्चे

🙏ऊँ कृष्णाय नमः🙏
ToB बाल सागर प्रतियोगिता-2025
चित्र संख्या-04
😊”अबोध बच्चे”😊
प्रांत के हर विद्यालय में ग्रीष्मकालीन अवकाश चल रहा था।बच्चों में बचपना थोड़ा बढ़ गया था।खेल-कूद मेंं व्यस्तता बढ़ गई थी।कुछ कहीं घूमने गए थे।कुछ अपने रिश्तेदारों के यहाँ।शादियों का मौसम भी था।विवाह में शामिल होकर मस्ती कर रहे थे।विभिन्न प्रकार के मिष्ठान और स्वादिष्ट भोजन का लुत्फ उठा कर आनंदित हो रहे थे।
दूसरी तरफ कुछ बच्चे ऐसे भी थे जो कहीं नहीं जा सके थे।फिर भी वे सब गाँव में रहकर खुशियाँ मना रहे थे।
गाँव से सटे एक छोटा सा नहर था।
नहर के आसपास कुछ पेड़ भी थे।
यह बच्चों के लिए अच्छी बात थी कि नहर मेंं ज्यादा पानी नहीं था।
बच्चों के अंदर के कोमल भावों का स्थान चंचलता,शरारतें लेने लगा था।
गीता भी नहर किनारे तरुवर के नीचे
अपनी तूलिका से प्रकृति के विभिन्न रूपों को तस्वीर में रंग भरने में तल्लीन थी।
कुछ शरारती लड़के जल क्रिड़ा मेंं मग्न थे।कुछ पेड़ के डाली पकड़ कर झूल रहे थे।कई तो मछली मार रहे थे।
मजेदार घटना यह था कि रीता साइकिल चला रही थी।वो इतना मस्त थी कि उसे आगे क्या है? होश ही नहीं रहा।अचानक
नहर मेंं छपाक सुन कर बच्चे उस ओर दौड़ पड़े।
मोनू, सोन,रोहन हँसने लगे थे।यह देख
रीता रोने लगी।वह बोली जाओ तुम लोग डूब जाओ,मर जाओ।
गुस्सा अपने चरम पर था।नयन भीग गये थे।
पर मोहन ने समझाया कि ऐसा नहीं कहते हैं बहन।हम सब भाई-बहन हैं।
फिर क्या था आँसू बहना बंद हो गया।
कागज का नाव बना कर खेल रहे थे।
सूरज अस्ताचलगामी थे।सभी बच्चे और बच्चियाँ एक दूसरे को घर चलने के लिए एक दूजे को पुकार रहे थे।मानो सभी अपना हो।गिला-शिकवे भूल कर चल पड़े अपने-अपने निवास की ओर।
वास्तव में बच्चे अबोध होतें हैं।मन कोमल होता है।जात-पात,ऊँच-नीच,धर्म विवेद से परे उन्मुख स्वभाव के होते हैं।क्षण में रूष्ट होना और पल मेंं मान जाना।यही भाव कोमल हृदय का बनता है।
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एस.के.पूनम,
प्रा.वि.बेलदारी टोला,फुलवारी शरीफ, पटना

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