चुप्पी तोड़ें, खुलकर बोलें

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आलेख

चुप्पी तोड़ें, खुलकर बोलें

मुकेश कुमार मृदुल

माहवारी नारी देह की एक प्रकृति प्रदत्त प्रक्रिया है जो उसकी प्रजनन क्षमता को प्रदर्शित करती  है। इसे स्त्री होने का परिचय देने वाली प्रक्रिया भी कह सकते हैं। यह कष्टदायक होने के बावजूद औरत को रिफ्रेश करने में सहायक होती है। नारियों के अस्तित्व में सहायक होने वाली इस क्रिया के प्रति सभी औरतों को सचेष्ट रहने की जरूरत होती है।  इसमें साफ – सफाई बहुत ही आवश्यक होता है। चुंकि इस प्रक्रिया में बेकार अवयवों का अंतःश्राव होता है, इसलिए स्वच्छता बेहद जरूरी है। इस दौरान स्वच्छता नहीं अपनाने के कारण ही, इस अवधि में स्त्रियों के ऊपर प्राचीन काल में अनेक बंदिशे लगा दी गयी थी। आज भी स्त्रियां समाज और परिवार के उन बंदिशों से मुक्त नहीं हो पायी हैं। मुक्ति इसलिए कि सामाजिक तौर पर माहवारी के दौरान नारी को अशुद्ध और घृणित मान लिया गया।  घृणा की वजह से औरतें इतनी संकुचित हुई कि उस अवधि में सही रहन-सहन नहीं होने के कारण अनेकों ने अपनी जान तक गंवा बैठी। वह भी गंभीर बीमारियों की पीड़ाओं को लंबे दिनों तक झेलकर। आज की स्त्रियां उस श्रेणी में अपने को दर्ज न कर पाए इसके लिए स्वच्छता को अपनाना अनिवार्य है। उन दिनों के लिए स्वच्छता ही ऐसा हथियार है जो सामाजिक और पारिवारिक बंदिश की जंजीरों को तोड़ देगी। आज जो स्त्रियां अपने मुश्किल दिनों में स्वच्छता को अपना रही है, वह सामाजिक वर्जनाओं और शारीरिक व्याधियों को चुनौती दे रही है। स्वच्छता को अपनाने के लिए अब बहुत सारे उत्पाद और व्यवस्थाएं उपलब्ध है। बावजूद 50 प्रतिशत स्त्रियाँ ही सजग हो सकी है। ऐसा भी नहीं है कि मुश्किल दिनों में स्वच्छ रहने के लिए अतिरिक्त आर्थिक बोझ का सामना करना पड़ेगा। स्वच्छता के लिए सिर्फ जागरूक होने की जरूरत है। जागरूक औरतें हर दिन सामान्य जीवन जी रही हैं। इस दौरान किसी प्रकार की भ्रांतियों में नहीं रहने की आवश्यक्ता है। माहवारी की अवधि में स्वच्छता को अपनाकर स्त्रियां अपने दैनिक कार्यों को ही नहीं, बल्कि मांगलिक और धार्मिक कार्यों को भी कर सकती हैं। गौर कीजिए, कुछ अपवादों को छोड़कर दुनिया के सभी देवियों के मंदिरों में तीसो दिन पूजा-अर्चना करने का विधान है। फिर जीती जागती देवियों के आगे लक्ष्मण रेखा खींचना उचित है। कदापि नहीं। जयशंकर प्रसाद ने ठीक ही कहा – ‘नारी तुम केवल श्रद्धा हो।’श्रद्धा की प्रतिमूर्ति कभी दूषित नहीं हो सकती। फिर, जो जीवन के सृजन का संवाहक हो, उससे दुराव कैसा। रजोदर्शन पर किसी – किसी क्षेत्रों में सार्वजनिक उत्सव का आयोजन स्त्रियों में आशा का संचरण करने के लिए प्रयाप्त है। इसलिए हे स्त्रियां! आप जगें। ‘चुप्पी तोड़ें, खुलकर बोलें।‘ अपने को जानें और माहवारी के दौरान स्वच्छता को अपनाकर मजबूती के साथ हर दिन उत्साह और उमंग में रहें। तभी आपका जीवन स्वस्थ और सुंदर हो सकेगा।

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