जीवन चलने का नाम

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शीर्षक – जीवन चलने का नाम ।

ये कहानी शहर में मम्मी पापा के साथ रहने वाले दो भाई हैप्पी पप्पी की है। वे कॉन्वेंट में पढ़ते हैं। लेकिन गांव में रहने वाले अपने बड़े पापा, बड़ी मम्मी, छोटे पापा, छोटी मम्मी, दादा दादी और भाई बहनों को बहुत याद करते हैं।

गर्मी की छुट्टियां आने को है,हैप्पी – पप्पी का प्लान हैं कि इस बार की छुट्टी में वे गांव दादा-दादी के पास जायेंगे। बच्चों को लगता है हमारा पूरा परिवार तो गांव में है। मम्मी पापा हमें क्यों शहर में ले आ रखे हुए हैं जो भाई-बहन हमारे गांव में है वे भी तो स्कूल जाते हैं, पढ़ते हैं और हमसे अच्छा रिजल्ट भी लाते हैं। कितनी खुशी है गांव वाले घर परिवार में। मम्मी पापा ने हमें हमारे घरवालों से दूर क्यों रखा है।
बच्चे बचपन वाली समझदारी के अनुसार बहुत ही पवित्र सोच के हैं। शहर में आ बसने के अपने माता-पिता की मजबूरी को नहीं जानतें हैं।
दोनों ने तय किया कि आज पापा ऑफिस से आएंगे तब हम उनसे गर्मी छुट्टी में गांव चलने की जिद करेंगे। पिछले दो साल भी छुट्टियों में हम गांव नहीं जा पाए । तब आखिरी दिनों में दादा-दादी हमसे मिलने आए थे। हमारे लिए गांव के आम लाए थे। बहुत प्यार करते हैं ,दादा दादी हम लोगों से। और मम्मी पापा गांव चलने का नाम ही नहीं लेते हैं।

संध्या बेला में जब हैप्पी पप्पी के पापा ऑफिस से आएं तब पप्पी ने पानी दिया। छोटे बेटे की समझदारी देखकर आज मोहन बाबू भी दंग रहे। बेटे को गोद में बिठाकर प्यार करने लगे। बस फिर क्या था। दोनों भाइयों ने अपनी इच्छा और प्लानिंग पापा के सामने रख दी। बच्चों की चाहत को लेकर पिता भी बहुत खुश हुए। और बोले चलो देखते हैं, कोशिश करते हैं क्या हो सकता है। इतना आश्वासन भी दोनों के लिए बहुत था। दोनों खुशी खुशी अपनी पैकिंग में जुट गए।

बच्चों को पैकिंग करते मोहन जी की धर्मपत्नी अभिलाष जी ने देखा तो आश्चर्य हुआ। उसको कुछ पता नहीं, बच्चे बैग पैक कर चुके, बच्चों से पूछा – कहां की तैयारी है ?
बच्चों ने कहा सरप्राइज….

अभिलाषा मोहन जी के पास पहुंची, उन से पूछा __ कहां की तैयारी चल रही है हमसे चोरी चुपके ?
पप्पी ने उच्छलते हुए कहा – गांव चलने की !

अभिलाषा जी ने आंखो आंखो में मोहन जी को देखा , दोनों के चेहरे खामोश हो गये। बच्चों को कोई अंदाजा नहीं था।वे गांव वाली खुशी में अपने सामान , खिलौने व किताबें भी पैकिंग में जुटे थे।
रात्रि भोजन के बाद जब बच्चे सो गए,तब अभिलाषा और मोहन जी की खामोशी टुकड़े टुकड़े हो कर आंसू बन बह निकली।
गांव के नाम से ही वो हादसा याद आ गया ।जब घर के पीछे बच्चों के लिए ही बहुत कम गहराई वाले बने हुए पोखर में, घर- मुहल्ले के सभी बच्चे गर्मी में मस्ती के लिए खेल रहे थे, सब की छुट्टियां थी, इसलिए आनंद भी पुरजोर था।
इतने सुरक्षित जगह पर, ना जाने काल कहां से आ गया… पता ही नहीं चला कि कैसे हैप्पी – पप्पी के बड़े भाई हनी को अपने चपेट में ले लिया। सभी बच्चे बहुत छोटे थे। किसी को समझ में नहीं आया कि हमारे बिच में ही कोई एक नहीं रहा। लेकिन उस बच्चे के माता-पिता, दादी-दादा और घर के सभी बड़ों के तो होश ही उड़ गए।यह बहुत दर्दनाक दुर्घटना रही। हैप्पी पप्पी बहुत छोटे थे, बहुत आसानी से भुल गए। लेकिन आज गांव चलने की बात पर मोहन जी और अभिलाषा के घाव फिर चोटिल हो गए। हैप्पी पप्पी के सो जाने के बाद दोनों घंटों अश्रु श्रद्धांजलि अर्पित करते रहे।
फिर सुबह दोनों बच्चों के जागने से पहले अभिलाषा ने गांव पर फोन लगाया, अम्मा जी को सारी बात बताई। अम्मा जी ने आपसी सहमति से कहा कि कोई बात नहीं हमसब ने पुरे प्रयास से पिछले दो वर्षों में इस बात को बिल्कुल ही दबा कर रखा है। ईश्वर करे उस दुखदाई दुर्घटना की याद किसी को ना आए। आखिर बच्चों को कब तक घर परिवार से दूर रखा जाए। जब बच्चे चाहते हैं तो जरूर गांव आना चाहिए। दोनों बच्चों को अपने परिवार से अलग रखना सही भी नहीं है।
आज रविवार था।तो जब बच्चों की नींद आराम से खुली, तो देखा मम्मी किचन के काम निपटा कर अपनी और पापा की पैकिंग कर रही है।

यह कहानी हमें बताती है कि जीवन में बड़ी बड़ी घटनाएं होती रहती है।पर यह जीवन है। रुकता नहीं।

जीवन चलने का नाम !

डॉ स्नेहलता द्विवेदी आर्या

उत्क्रमित कन्या मध्य विद्यालय शरीफगंज कटिहार

 

 

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