चित्र – २
दादी का प्यार
सरला अपने पति सुखमन और चार बच्चों के साथ पटना में किराए के मकान में रहती थी। चारों बच्चें गोलू, चंपा, राधा और भोलू पास के हीं विद्यालय में पढ़ने जाते थें। विद्यालय में गर्मी की छुट्टी होने वाली थी। सरला का मन इस बार गोवा घूमने का था। उसने एक रात अपने पति को अपनी इच्छा बतायी। वही पास में बैठा गोलू बोल उठा, माँ दादी के पास चलो न! गर्मी छुट्टी में वहीं रहेंगे। दादी कितना प्यार करती है। और दादी के गाँव में तो गर्मी भी नहीं पड़ता है।
सुखमन और सरला दोनों बच्चे की जिद मानकर हामी भर दिए। और जैसे हीं विद्यालय बंद हुई, सुखमन अपनी पत्नी और बच्चों को गाँव पहुंँचा दिया, और वापस अपने काम पर लौट आया। उसका गाँव पहाड़ी के पास स्थित था जहाँ जून के महीने में भी हरियाली मौजूद थीं। खेतों में सब्जियांँ लह लहा रही थी। आस-पास काफी खुला क्षेत्र रहने के कारण वहाँ बच्चों को खेलने में बहुत आनंद आता। उसकी दादी भी बच्चों को पाकर बहुत खुश थी। वह तरह-तरह के पकवान और बच्चों के पसंद के रोज नये-नये व्यंजन बनाती, बच्चों को खिलाती और कहानियांँ सुनाती।
बच्चे अक्सर दादी के पास मँडराते रहते, खाते-पीते, कहानियों से सीख लेते और मजे करते। दादी बच्चों के साथ समय बिताकर फूले नहीं समा रही थी। अकेली दादी को सबका साथ जो मिल चुका था। वहाँ बच्चों ने सब्जियांँ और फलों को उगते हुए देखा। उनके पेड़, पौधे, लताओं को देखा और जाना। गाजर, मूली, प्याज, शकरकंद, आलू, रतालू, चुकंदर, मूंगफली को बच्चों ने जमीन के अंदर से निकलते देखा। बच्चे अब समझ गए कि कुछ जमीन के अंदर फलते हैं तो कुछ टहनियों में लटककर। जिन्हें वे चित्रों में देखते थें, उसे छूकर महसूस किया। दादी ने पेड़ में झूला भी लगा दिया जिसपर बच्चों को झुलाती और इठलाती। पास ही ताल के जल में बच्चों को वाटर पार्क का मजा भी मिलता।
बच्चों के स्कूल, पति का ऑफिस की जल्दबाजी में सरला इतने व्यंजन कहाँ बना पाती थी। बच्चे भी अक्सर अपने घर और विद्यालय में कैद सा हीं महसूस करते थें। गाँव की खुली हवा कहाँ नसीब होती थी। सरला भी अपने सासु माँ से नये-नये व्यंजन बनाना सीख रही थी। उसे भी अच्छा लगा, पर देखते हीं देखते छुट्टी समाप्त हो गई । अगली सुबह सबको वापस जाना था। नास्ता करते हुए सभी उदास लग रहें थें। सभी यही सोच रहें थें, काश कुछ दिन और रुकने का मौका मिलता।
दादी को उदास होते देख गोलू बोल उठा। तुम चिंता मत करो दादी, अगली बार से जब भी स्कूल बंद होगी हमलोग आपके पास आ जाएंगे। मैं जल्द हीं बड़ा हो जाऊंँगा और अकेले भी तुमसे मिलने आ जाऊँगा। गोलू की बात सुनकर दादी के चेहरे पर मुस्कान आ गई और सभी खुशी – खुशी नास्ता करने लगे।
कहानी से सीख:
१. गाँवों में प्रदूषण मुक्त वातावरण होता है।
2. बच्चों को बुजुर्गों के पास रखने से संस्कार बढ़ते हैं।
3. प्रत्यक्ष अनुभव से बच्चों में ज्ञान बढ़ता है।
4. प्रकृति से बच्चों का जुड़ाव उनके नैसर्गिक विकास को बढ़ावा देती है।
5. अकेले रह रहे अभिभावकों, बुजुर्गों को भी अपनों के साथ की जरूरत होती है।
कहानीकार:- राम किशोर पाठक
प्राथमिक विद्यालय भेड़हरिया इंगलिश, पालीगंज, पटना, बिहार।
संपर्क – 9835232978