पैड बैंक

विश्व स्वच्छता महावारी दिवस पर –

कहानी –

      पैड बैंक
   ” मैडम, मुझे घर जाना है। इसलिए मुझे छुट्टी दे दीजिए ।” वर्ग 9 में पढ़ने वाली स्टूडेंस अर्पिता ने बहुत संकोच करते हुए अपनी क्लास टीचर से कहा। कक्षा अध्यापिका सरला जी अपने नाम की तरह सरल नहीं बल्कि सख्त थी। “क्यों जाना है घर?” उन्होंने तपाक से पूछा। छात्रा अर्पिता चुप, उत्तर दे तो क्या…?
क्लास में उसके और टीचर के अतिरिक्त 50 और स्टूडेंस थीं। वे सब क्या सोचेंगी। हो सकता है, शायद कुछ मुझ पर हंसे ।
    स्कूल के बीच में स्टूडेंट अर्पिता के छुट्टी लेने के कारण का कोई जवाब न देने पर कक्षा अध्यापिका सरला मैम नाराज होने लगीं। तभी अर्पिता की क्लासमेट रजनी ने चुप्पी तोड़ी और मैडम के कान में कुछ फुसफुसाई। तब क्लास टीचर सरला मैडम को पता चला कि उनकी स्टूडेंस अर्पिता को महावारी आई है। उन्होंने तुरंत उसके लिए  पैड की व्यवस्था की। उन्होंने दूसरे ही दिन विद्यालय के बरामदे में एक पैड बैंक स्थापित करा दिया। जिसमें ढेर सारे पैड रखवा दिए थे और जहां तक विद्यालय की हर स्टूडेंट की पहुंच संभव थी। उस दिन के बाद अब किसी भी छात्रा को अपनी महावारी के समय किसी कुछ मांगना नहीं पड़ता था। वह चुपचाप उस पैड बैंक से पैड पा लेती थी। उस दिन बालिका विद्यालय की सभी बालिकाओं को महावारी स्वच्छता की आजादी मिल गई थी। उस दिन सभी स्टूडेंस को पता चला ऊपर से सख्त दिखने वाली सरला मैडम दरअसल अपनी विद्यार्थियों के लिए अंदर से भी कितनी सरल हैं।
      – शरद कुमार वर्मा
               शिक्षक
       रेलवे हायर सेकेंड्री स्कूल, चारबाग,
       लखनऊ (. प्र.)
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