माहवारी(मासिक धर्म)-प्राकृतिक वरदान

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माहवारी (मासिक धर्म) – प्राकृतिक वरदान


जब एक नन्ही सी बच्ची पहली बार खुद को बदलते हुए देखती है, वह घबराती है। उसे समझ नहीं आता कि उसके साथ क्या हो रहा है। शरीर में एक नई प्रक्रिया शुरू होती है – माहवारी। लेकिन उससे पहले समाज की चुप्पी, माँ की झिझक, और स्कूल की किताबों की खामोशी उसे यह समझने नहीं देती कि यह कोई बीमारी नहीं, बल्कि उसके स्त्री बनने की पहली पहचान है।
कभी रूमाल में छुपाया गया पैड, कभी स्कूल में हुए दाग का डर, और कभी खुद से ही शर्माने की आदत… यह सब एक लड़की के दिल में बैठ जाते हैं। ऐसे में जरूरत होती है समझ की, साथ की, और उस सच्चाई को अपनाने की जो उसके भीतर एक शक्ति बनकर पनप रही होती है।
माहवारी, जिसे मासिक धर्म या पीरियड्स कहा जाता है, प्रत्येक स्त्री के जीवन का एक सामान्य और प्राकृतिक हिस्सा है। यह एक जैविक प्रक्रिया है जो यह संकेत देती है कि एक लड़की यौवनावस्था में प्रवेश कर चुकी है और उसकी प्रजनन प्रणाली सक्रिय हो चुकी है। दुर्भाग्यवश, हमारे समाज में आज भी माहवारी को एक शर्मनाक विषय समझा जाता है, जिस पर खुलकर बात नहीं की जाती।
माहवारी एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जिसमें स्त्रियों के गर्भाशय की परत हर महीने रक्त के रूप में बाहर निकलती है। यह प्रक्रिया औसतन 28 दिनों के अंतराल पर होती है और सामान्यतः 3 से 7 दिनों तक चलती है। यह प्रक्रिया स्त्रियों के शारीरिक स्वास्थ्य और प्रजनन क्षमता का संकेत होती है।
सामाजिक दृष्टिकोण:-
माहवारी के विषय में समाज में अनेक मिथक और भ्रांतियाँ व्याप्त हैं। कई जगह लड़कियों को इस दौरान पूजा, रसोई, या सामाजिक गतिविधियों में भाग लेने से रोक दिया जाता है। इन्हें अपवित्र माना जाता है, जो कि पूर्णतः अनुचित है। इन रूढ़ियों के कारण कई लड़कियाँ मानसिक तनाव और आत्मग्लानि का अनुभव करती हैं।

शिक्षा और जागरूकता का महत्व:- माहवारी पर खुलकर बात करना और किशोरियों को इसके बारे में सही जानकारी देना अत्यंत आवश्यक है। विद्यालयों में स्वास्थ्य शिक्षा के अंतर्गत लड़कियों और लड़कों दोनों को माहवारी की वैज्ञानिक जानकारी देना चाहिए, जिससे समाज में जागरूकता फैले और इसे एक सामान्य प्रक्रिया के रूप में स्वीकार किया जाए।

*स्वच्छता और देखभाल**

माहवारी के समय स्वच्छता का विशेष ध्यान रखना चाहिए। सैनिटरी पैड्स का उपयोग करना चाहिए और इन्हें समय-समय पर बदलते रहना चाहिए। संक्रमण से बचाव के लिए साफ पानी और साबुन से सफाई करना बहुत जरूरी है।

निष्कर्ष
माहवारी एक शर्म की बात नहीं, बल्कि एक स्त्री की शक्ति और जीवन निर्माण की क्षमता का प्रतीक है। हमें माहवारी से जुड़ी रूढ़ियों को तोड़ना होगा और इसे एक सामान्य विषय की तरह अपनाना होगा। जब समाज खुले मन से इस विषय पर बात करेगा, तभी हमारी बेटियाँ बिना भय और झिझक के स्वस्थ जीवन जी सकेंगी।
माहवारी कोई अभिशाप नहीं, यह तो स्त्री के भीतर सृजन की शक्ति का प्रतीक है। जिस खून को समाज छिपाने की चीज़ समझता है, उसी से एक नया जीवन जन्म लेता है। समय आ गया है जब हम बेटियों को यह सिखाएँ कि उन्हें अपने शरीर पर गर्व होना चाहिए, न कि शर्म।
जिस दिन हम माहवारी को सहजता से स्वीकार कर लेंगे, उस दिन कोई लड़की स्कूल नहीं छोड़ेगी, कोई महिला शर्म से नहीं झुकेगी, और कोई माँ अपनी बेटी से नज़रें नहीं चुराएगी।

माहवारी को न छिपाओ, न दबाओ
इसे समझो,अपनाओ, और गर्व से फैलाओ

Vikash Kumar

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