- हमारा देश आजादी के 78 वे वर्ष में प्रवेश कर चुका है। देश के आजाद होने से अबतक अधिकतर क्षेत्रों में विकास की रफ्तार काफी तेज है लेकिन इसके साथ ही कुछ रूढ़िवादी सोच का भी विकास हुआ है। जी, हम बात कर रहे है माहवारी की। हम जानते हैं कि माहवारी एक स्वाभाविक और प्राकृतिक प्रक्रिया है। इसके राजोदर्शन की उम्र 10 वर्ष से 19 वर्ष तथा राजेनिवृति की उम्र 45 वर्ष से 55 वर्ष के बीच होती है।
- इस उम्र के बीच शुरू होती है एक लड़की और एक औरत की अग्निपरीक्षा। माहवारी के शुरूआती दौर में लोगों को इसके प्रति संवेदनशील होना चाहिए। इसके पीछे किशोरावस्था में लड़कियों में हार्मोनल बदलाव के कारण पेट दर्द, थकान, कमजोरी और मूड स्विंग होता है। इन समस्याओं में सबसे बड़ी समय मूड स्विंग का होता है। इस स्थिति में लड़कियों में चिड़चिड़ापन और अवसाद उत्पन्न होते हैं। इस समय लड़कियों को परिवार और समाज की सबसे ज्यादा जरूरत होती है लेकिन अफसोस सामाजिक अज्ञानता और रूढ़िवादी सोच के कारण हमारा समाज इसी समय लड़कियों को अलग कर उनकी समस्या को और बढ़ा देता है। खाना बनाने पर रोक, पूजा, इबादत पर रोक, मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे, चर्च में जाने से रोक आदि। इस स्थिति में बदलाव लाने की जरूरत है जिससे लड़कियां अपने आप को ज्यादा सुरक्षित और सामाजिक समझ सके
- माहवारी को स्वाभाविक और प्राकृतिक प्रक्रिया नहीं समझने के पीछे तीन महत्वपूर्ण समस्याएं हैं। पहली समस्या रूढ़िवादी सोच, दूसरी अशिक्षा और तीसरी कमजोर आर्थिक स्थिति। रूढ़िवादी सोच को हम समाज को जागरूक कर समाप्त कर सकते हैं लेकिन इसके लिए समाज के हर व्यक्ति को इसमें अपना योगदान खुल कर देना पड़ेगा। दूसरी समस्या शिक्षा की है। हमारी सरकार इसको काफी गंभीरता से ले रही है लेकिन लोकतंत में हम सबकुछ सरकार पर छोड़ कर अपनी जिम्मेवारी से पीछे नहीं हट सकते हैं। हमें खुले विचार से अपनी बात को समाज के सामने रखनी होगी। तीसरी बात आर्थिक स्थिति की तो इसके लिए सरकार से निवेदन है कि अन्य परियोजना को जिस तरह सरकार जन जन तक पहुंचा रही है। इस परियोजना को भी सरकार सुदूर से सुदूर क्षेत्र में पहुंचाएं और जनता सरकार का साथ दे।
- बदलते भारत में हम भारत के नागरिक भी अपने विचारधारा को बदले और माहवारी को अभिशाप नहीं समझ कर सृष्टि निर्माण की एक स्वाभाविक और प्राकृतिक वरदान समझे। तभी हम विकसित भारत के सपना को साकार कर सकते हैं।
Guddu Kumar Singh
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