हिन्दी नवजागरण के पुरोधा आचार्य शिवपूजन सहाय
आचार्य शिवपूजन सहाय का जन्म बक्सर जिला अंतर्गत उनवान्स नामक गाँव में 9अगस्त 1893 को बुधवार को हुआ था। इनके पिता बागीश्वरी सहाय आरा शहर के जमीन्दार हरिहर प्रसाद के पटवारी थे। वे नामी रामायणी थे। माता श्रीमती राजकुमारी देवी बक्सर के पास धनहा गांव की थी। शिवपूजन सहाय जी दस वर्ष की उम्र में पिता के साथ गाँव से आरा आ गए जहाँ उन्हें कायस्त जुबली एकेडमी में पाँचवीं कक्षा में प्रवेश दिलाया गया। 1912 में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की उसके बाद हिन्दी भूषण की उपाधि भी प्राप्त की। जीविकोपार्जन हेतु उन्होंने जिस विद्यालय से मैट्रिक उत्तीर्ण की उसी में सन 1914 में हिन्दी अध्यापक की नौकरी करने लगे पर वहाँ अधिक दिनों तक टिके न रह सके। सन 1920 में नौकरी से त्याग पत्र देकर राष्ट्रीय आन्दोलन में शामिल हो गए। सहाय जी आरा के रईस देवेन्द्र कुमार जैन द्वारा प्रकाशित त्रिवेणी, प्रेमकली, प्रेम पुष्पांजलि तथा सेवाधर्म का सम्पादन का दायित्व भी निभाने लगे। मासिक पत्रिका मारवाड़ी-सुधार का सम्पादन कार्य भी देखने लगे। उसके बाद अपने साहित्यिक गुरु पण्डित ईश्वरी प्रसाद शर्मा के आग्रह पर वे कलकत्ता के मतवाला मासिक पत्र के संपादक मंडल में शामिल हुए और पत्रिका को नई दिशा और पहचान दिलाई।मतवाला का प्रथम अंक 26 अगस्त 1943 को निकला और बाजार में आते ही धूम मच गई।इसके अतिरिक्त शिवपूजन सहाय ने आदर्श, उपन्यासतरंग, समन्वय, मौजी, गोलमाल, माधुरी, गंगा, बालक आदि पत्र-पत्रिकाओं का भी सम्पादन किया।
शिवपूजन सहाय की ख्याति और विद्वता से प्रभावित होकर राजेन्द्र कॉलेज छपरा के प्रबंधक-मण्डल ने उन्हें बिना एम०ए० की डिग्री हासिल किये ही महाविद्यालय में हिन्दी प्राध्यापक के पद पर नियुक्त कर लिया जहाँ वे सन 1938 से 1949 तक कार्यरत रहे। 1946 से पुस्तक भंडार पटना से निकलने वाली मासिक पत्रिका “हिमालय” का सम्पादन करने लगे। बिहार राष्ट्र-भाषा परिषद ने भी इन्हें 1949 में परिषद का मंत्री नियुक्त किया। विभूति की पहली दस कहानियों में जो प्रथमतः महिला महत्व शीर्षकान्तर्गत संकलित हुई थी उसमें “मुंडमाल” कहानी सर्वाधिक प्रशंसित एवं लोकप्रिय सिद्ध हुई।
“खोपड़ी के अक्षर” एक लम्बी कहानी है और इसका कथा विस्तार एक लघु उपन्यास के आकार की मांग करता है। “मान लोचन” कहानी का स्वरूप संवाद शैली एक निबन्ध की है।” कहानी का प्लाट” उसी अंचल की कहानी है जिसमें पलकर शिवपूजन सहाय लेखक बने थे।
शिवपूजन सहाय महात्मा गाँधी के ग्राम केंद्रित रचनात्मक कार्यकर्मो से भी प्रभावित रहे। “देहात ही देश का दिल है” निबन्ध इसका प्रमाण है।
हिन्दी नवजागरण के पुरोधा शिवपूजन सहाय को सन 1954 में उनके राष्ट्र भाषा अवदान के लिये बिहार राष्ट्र भाषा परिषद की ओर से 1500 रुपये का वयोवृद्ध साहित्यकार का सम्मान दिया गया।
हिन्दी की दीर्घ कालीन सेवा के लिए भारत सरकार ने इनको सन 1960 में “पद्मभूषण” की उपाधि से अलंकृत किया। पटना नगर निगम की ओर से सन 1961 में इनका नागरिक अभिनन्दन किया गया। भागलपुर विश्वविद्यालय ने इनको सन 1962 में डी. लिट् की मानक उपाधि प्रदान की। हिन्दी के समर्पित साधक शिवपूजन सहाय 21 जनवरी1963 को सारे हिन्दी प्रेमियों को छोड़कर चले गए। हिन्दी के लिए उनका गौरवशाली अवदान हिन्दी प्रेमियों की स्मृति में सदैव अक्षुण्ण रहेगा।
हर्ष नारायण दास
प्रधानाध्यापक
म०विद्यालय घीवहा
फारबिसगंज(अररिया)