दो बहनें-नूतन कुमारी

Nutan

दो बहनें

          एक गाँव में एक कुम्हार रहता था। उसकी दो पत्नियां थी। दोनों पत्नियों को एक- एक बेटी थी। बड़ी का नाम सुखिया और छोटी का नाम दुखिया था। बड़ी वाली बहुत चालाक थी। वह अपनी बेटी सुखिया के साथ पूरे घर पर राज करती थी। इधर छोटी वाली अपनी बेटी दुखिया के साथ घर का सारा काम करती थी। कुम्हार भी इन दोनों पर कोई विशेष ध्यान नहीं देता था। धीरे धीरे समय व्यतीत हो रहा था। एक दिन कुम्हार की मौत हो गई। बड़ी वाली ने चालाकी से सारी संपत्ति हड़प ली और छोटी वाली को घर से निकाल दिया। छोटी वाली अपनी बेटी दुखिया के साथ सूत कातकर, कपड़ें बुनकर बेचती और जो पैसा मिलता उससे वो अपना जीविकोपार्जन किया करती थी। एक दिन दुखिया की माँ ने धूप में रूई को सूखने के लिए डाला और दुखिया से रूई का ध्यान रखने को बोल कर अपने कामों में लग गई। तभी हवा का तेज झोंका आया और दुखिया के सारे रूई उड़ा ले गए। दुखिया चिंतित हो गई कि अब माँ को क्या जवाब दूंगी। उसी समय पवन देव ने दुखिया से कहा कि “तुम्हें तुम्हारी रूई वापस मिल जाएगी, तुम मेरे पीछे पीछे आओ”। दुखिया पवन देव के पीछे चल पड़ी। रास्ते में उसे एक गाय मिली। गाय बोली- “बेटी! मेरे चारों ओर गोबर बिखरे पड़े हैं तुम जरा इन्हें साफ कर दो”। मेहनत और दूसरों की सेवा करने की आदि दुखिया अपने स्वभाववश गोबर साफ करने लगी। उसके बाद गाय के आगे उसने घास का एक पूला भी रख दिया और पानी की भरी बाल्टी भी पास मे रख दी। आगे बढी एक केले के पेड़ के आग्रह पर उसने नीचे गिरे सभी पत्तों को हटाया। आगे एक घोड़ा मिला जो खूटे से बँधा हुआ था। घोड़े ने कहा बेटी मैं बहुत दिनों से भूखा हूँ। कुछ खाने को दो। दुखिया ने उसे घास काटकर खिलाया और पानी पिलाया। आगे बढने पर एक चाँदी सी सफेद बालों वाली  बुढिया मिली, जो चाँद की माँ थी। पवन देव ने दुखिया को इशारा किया कि जाकर इस बुढिया से अपनी रूई माँग ले। दुखिया ने बुढिया के चरण स्पर्श किए और अपनी रूई माँगी। बुढिया बोली-“रूई मिलेगी लेकिन पहले अंदर जाकर बालों में तेल लगाकर तालाब में नहा, तत्पश्चात नई साड़ी पहन कर खाना खाकर आ”। दुखिया अंदर गई, बालों में तेल लगाकर ज्यों ही उसने तालाब में डुबकी लगाई कि चमत्कार हो गया। वह परी सी सुंदर बन गई। दूसरी डुबकी लगाई तो उसका शरीर गहनों से लद गया। तीसरी डुबकी लगाने की उसकी हिम्मत नहीं हुई। उसने कक्ष में आकर कीमती साड़ियाँ न पहनकर एक साधारण सी साड़ी पहनी। भोजन कक्ष में गई तो वहाँ मेज पर पकवान सजे थे। सभी पकवानों को छोड़ कर दुखिया ने रोटी और सब्जी खाया और बुढिय़ा के पास गई। बुढिया ने उसे रूई लौटा दी साथ ही उसने अपने पास रखें दो डिब्बों में से एक डिब्बा उपहार स्वरूप ले जाने को कहा। दुखिया ने छोटा वाला डिब्बा उठाया और अपने घर की तरफ चल पड़ी। रास्ते मे लौटते समय घोड़े ने उसे सोने के अशर्फियों से भरा घड़ा दिया। केले के पेड़ ने सोने के केलों का एक गुच्छा दिया। गाय ने उसे बछिया दी। इतने सारे नायाब उपहार लेकर दुखिया खुशी-खुशी घर आई। दुखिया ने उपहार में मिला डिब्बा खोला तो उसमें से एक सुंदर राजकुमार निकला। उसने दुखिया से विवाह कर लिया। उनके दिन फिर गए और तीनों सुख से रहने लगें। सुखिया की माँ ने यह सब देखा तो जल भुन गई। उसने भी छोटी की तरह रूई सूखने डाला। रूई उड़ने पर सुखिया को भी उसने रूई लाने को भेजा। रास्ते में गाय, घोड़े, केले ने जो विनती दुखिया से की थी वहीं विनती सुखिया से भी की लेकिन सुखिया मुँह बिचकाकर आगे चली गई। उसने बुढिया से अपनी रूई ऐसे मांगा जैसे वह आदेश दे रही हो। बुढिया के कहने पर वह भी बालों में तेल लगाकर तालाब में डुबकी लगाई। जैसे ही उसने डुबकी लगाई उसका चेहरा राक्षसी की तरह हो गया। फिर उसने कीमती साड़ी पहनकर जी भर पकवान खाया। बुढिया ने रूई देते हुए उससे उपहार लेने को कहा। सुखिया ने बड़ा डिब्बा उठाया। रास्ते में घोड़े ने उसे लात मारी, केले के पेड़ ने उसपर छिलकों की वर्षा की, गाय ने उसे सींग से उछाल कर फेंका। रोती हुई सुखिया घर आई और माँ से सारी बातें बताई। रात को उसने उपहार वाला डिब्बा खोला तो उसमें से विशाल अजगर निकला। अजगर ने सुखिया को खा लिया और खिड़की से भाग गया। उसकी माँ का सब कुछ खत्म हो गया, कुछ भी शेष नहीं बचा।

सीख:- इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि ईष्या एक ऐसी आग है जिसमें सबकुछ जलकर नष्ट हो जाता है। इस भावना को अपने भीतर कभी भी पनपने नहीं देना चाहिए।

नूतन कुमारी
प्रा. वि. चोपड़ा डगरूआ
पूर्णिया, बिहार

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6 thoughts on “दो बहनें-नूतन कुमारी

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई मैम 👍🏾👍🏾👍🏾👍🏾👍🏾👍🏾

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