स्तनपान जन जागरुकता और आवश्यकता
स्तनपान के प्रति जन जागरूकता लाने के उद्देश्य से अगस्त माह के प्रथम सप्ताह को पूरे विश्व में स्तनपान सप्ताह के रूप में मनाया जाता है। इस दिवस आयोजन में शिशुओं को जन्म से छ: माह तक केवल माँ का दूध पिलाने के लिए महिलाओं को विशेष रूप से प्रोत्साहित व जागरुक किया जाता है। स्तनपान शिशु के जन्म के पश्चात एक स्वाभाविक क्रिया है जो मां के द्वारा कराई जाती है।
कोलोस्ट्रम यानी माँ का प्रथम दूध या गाढ़ा पीला दूध जो शिशु जन्म से लेकर एक सप्ताह के लिए उत्पन्न होता है में विटामिन, एन्टीबॉडी, अन्य पोषक तत्व अधिक मात्रा में होते हैं। कम पढी़ लिखी मांओं की बात छोड़ दें यहां पढ़ी लिखी महिलाएं भी जागरुक रहकर भी इन भौतिक व स्वाभाविक क्रियाओं से विलग हो जाती हैं जो कि स्वाभाविक प्रक्रिया का उल्लंघन भी माना जा सकता है।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य परिवार कल्याण सर्वेक्षण 2000-2010 के अनुसार देश के क़रीब 46% बच्चे कुपोषण से ग्रसित पाए गए थे। भारत में सबसे ज़्यादा कुपोषण से ग्रसित बच्चे मध्य प्रदेश में पाए गए हैं।
स्तनपान सप्ताह के दौरान माँ के दूध के महत्त्व की जानकारी दी जाती है। नवजात शिशुओं के लिए माँ का दूध अमृत के समान है। माँ का दूध शिशुओं को कुपोषण व अतिसार जैसी बीमारियों से बचाता है। स्तनपान को बढ़ावा देकर शिशु मृत्यु दर में कमी लाई जा सकती है। शिशुओं को जन्म से छ: माह तक केवल माँ का दूध पिलाने के लिए महिलाओं को इस सप्ताह के दौरान विशेष रूप से प्रोत्साहित किया जाता है।
स्तनपान शिशु के जन्म के बाद की एक स्वाभाविक क्रिया है। शिशुओं का स्तनपान सभी माताऐं कराती हैं परन्तु पहली बार माँ बनने वाली माताओं को शुरू में स्तनपान कराने हेतु मदद की दरकार होती है। सही ज्ञान के अभाव में जानकारी न होने के कारण बच्चों में कुपोषण का रोग एवं संक्रमण से दस्त हो जाते हैं।जो मांओं में घबराहट पैदा करती हैं।।
शिशु के लिए स्तनपान संरक्षण और संवर्धन का काम करता है। रोग प्रतिरोधात्मक शक्ति नए जन्मे हुए बच्चे में नहीं होती है। यह शक्ति माँ के दूध से शिशु को हासिल होती है। माँ के दूध में लेक्टोफोर्मिन नामक तत्त्व होता है जो बच्चे की आंत में लौह तत्त्व को बांध लेता है और लौह तत्त्व के अभाव में शिशु की आंत में रोगाणु पनप नहीं पाते।
माँ के दूध से आए साधारण जीवाणु बच्चे की आंत में पनपते हैं और रोगाणुओं से प्रतिस्पर्धा कर उन्हें पनपने नहीं देते। माँ के दूध में रोगाणु नाशक तत्त्व होते हैं जो नवजात बच्चे को ताकत और ऊर्जा देते हैं।
माँ की आंत में वातावरण से पहुँचे रोगाणु आंत में स्थित विशेष भाग के संपर्क में आते हैं जो उन रोगाणु-विशेष के ख़िलाफ़ प्रतिरोधात्मक तत्त्व बनाते हैं। ये तत्त्व एक विशेष नलिका थोरासिक डक्ट से सीधे माँ के स्तन तक पहुँचते हैं और दूध के द्वारा बच्चे के पेट में। माँ का दूध पीकर शिशु सदा स्वस्थ रहता है।
माँ का दूध बचपन में पर्याप्त रूप से जिन बच्चों को पीने को नहीं मिलता उनमें बचपन में शुरू होने वाली मधुमेह की बीमारी अधिक होती है। बुद्धि का विकास उन बच्चों में दूध पीने वाले अन्य बच्चों की अपेक्षाकृत कम होता है। अगर बच्चा समय से पूर्व जन्मा (प्रीमेच्योर) हो तो उसे कई बीमारी घेर सकते हैं। जैसे बड़ी आंत का घातक रोग, नेक्रोटाइजिंग एंटोरोकोलाइटिस हो सकता है। इस समय यदि गाय का दूध पीतल के बर्तन में उबाल कर दिया गया हो, तो उसे लीवर (यकृत) का रोग इंडियन चाइल्डहुड सिरोसिस हो सकता है। अंत: चिकित्सक विशेषज्ञ की मानें तो माँ का दूध छह-आठ महीने तक बच्चे के लिए श्रेष्ठ ही नहीं जीवन रक्षक के समान भी होता है।
अत: इस आयोजन को सफल बनाने में समाज और परिवार की भागीदारी भी अत्यंत जरुरी हो जाती है। जन्में शिशु के अलावे मां यानी जच्चा बच्चा दोनों के लिए उपरोक्त बातों को अमल में लाने भी जरुरी है।आईए इस स्तनपान सप्ताह को सफल बनाने के लिए हम सब समाज और परिवार में जागरुकता बढ़ाने के प्रयास में जुट जाएं।
✍️सुरेश कुमार गौरव
पटना बिहार
सर्वथा मौलिक रचना