स्तनपान क्यों जरूरी
मां द्वारा अपने शिशु को अपने स्तनों से आने वाला प्राकृतिक दूध पिलाने की क्रिया को स्तनपान कहते हैं। यह सभी स्तनपाइयों में आम क्रिया होती है। स्तनपान शिशु के लिए संरक्षण और संवर्धन का काम करता है। नवजात शिशु में रोग प्रतिरोधात्मक शक्ति नहीं होती। मां के दूध से यह शक्ति शिशु को प्राप्त होती है। मां के दूध में लेक्टोफोर्मिन नामक तत्व होता है जो बच्चे की आंत में लौह तत्त्व को बांध लेता है और लौह तत्त्व के अभाव में शिशु की आंत में रोगाणु पनप नहीं पाते। मां के दूध से आए साधारण जीवाणु बच्चे की आंत में पनपते हैं और रोगाणुओं से प्रतिस्पर्धा कर उन्हें पनपने नहीं देते। मां के दूध में रोगाणु नाशक तत्त्व होते हैं। वातावरण से मां की आंत में पहुंचे रोगाणु आंत में स्थित विशेष भाग के संपर्क में आते हैं जो उन रोगाणु-विशेष के खिलाफ प्रतिरोधात्मक तत्व बनाते हैं। ये तत्व एक विशेष नलिका थोरासिक डक्ट से सीधे मां के स्तन तक पहुंचते हैं और दूध से बच्चे के पेट में। इस तरह बच्चा मां का दूध पीकर सदा स्वस्थ रहता है।
अनुमान के अनुसार 8,20,000 बच्चों की मौत विश्व स्तर पर पांच साल की उम्र के तहत वृद्धि हुई जिसे स्तनपान के साथ हर साल रोका जा सकता है। दोनों विकासशील और विकसित देशों में स्तनपान से श्वसन तंत्र में संक्रमण और दस्त के जोखिम की कमी पाई गयी है। स्तनपान से संज्ञानात्मक विकास में सुधार और वयस्कता में मोटापे का खतरा कम होता है।
जिन बच्चों को बचपन में पर्याप्त रूप से मां का दूध पीने को नहीं मिलता उनमें बचपन में शुरू होने वाले डायबिटीज की बीमारी अधिक होती है। उनमें अपेक्षाकृत बुद्धि विकास कम होता है। अगर बच्चा समय पूर्व जन्मा (प्रीमेच्योर) हो तो उसे बड़ी आंत का घातक रोग, नेक्रोटाइजिंग एंटोरोकोलाइटिस हो सकता है। अगर गाय का दूध पीतल के बर्तन में उबाल कर दिया गया हो तो उसे लीवर का रोग इंडियन चाइल्डहुड सिरोसिस हो सकता है। इसलिए छह-आठ महीने तक बच्चे के लिए मां का दूध श्रेष्ठ ही नहीं जीवन रक्षक भी होता है।
स्तनपान का महत्त्व
मां का दूध केवल पोषण ही नहीं जीवन की धारा है। इससे मां और बच्चे के स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। शिशु को पहले छह महीने तक केवल स्तनपान पर ही निर्भर रखना चाहिए। यह शिशु के जीवन के लिए जरूरी है क्योंकि मां का दूध सुपाच्य होता है और इससे पेट की गड़बड़ियों की आशंका नहीं होती। मां का दूध शिशु की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में भी सहायक होता है। स्तनपान से दमा और कान की बीमारी पर नियंत्रण कायम होता है क्योंकि मां का दूध शिशु की नाक और गले में प्रतिरोधी त्वचा बना देता है। कुछ शिशु को गाय के दूध से एलर्जी हो सकती है। इसके विपरीत मां का दूध शत-प्रतिशत सुरक्षित है। शोध से प्रमाणित हुआ है कि स्तनपान करने वाले बच्चे बाद में मोटे नहीं होते। यह शायद इस वजह से होता है कि उन्हें शुरू से ही जरूरत से अधिक खाने की आदत नहीं पड़ती। स्तनपान से जीवन के बाद के चरणों में रक्त कैंसर, मधुमेह और उच्च रक्तचाप का खतरा कम हो जाता है। स्तनपान से शिशु की बौद्धिक क्षमता भी बढ़ती है। इसका कारण यह है कि स्तनपान कराने वाली मां और उसके शिशु के बीच भावनात्मक रिश्ता बहुत मजबूत होता है। इसके अलावा मां के दूध में कई प्रकार के प्राकृतिक रसायन भी मौजूद होते हैं।
माँ द्वारा स्तनपान कराने के लाभ
नयी माताओं द्वारा स्तनपान कराने से उन्हें गर्भावस्था के बाद होनेवाली शिकायतों से मुक्ति मिल जाती है। इससे तनाव कम होता है और प्रसव के बाद होनेवाले रक्तस्राव पर नियंत्रण पाया जा सकता है। मां के लिए दीर्घकालिक लाभ हृदय रोग और रुमेटी गठिया का खतरा कम किया है। स्तनपान करानेवाली माताओं को स्तन या गर्भाशय के कैंसर का खतरा न्यूनतम होता है। स्तनपान एक प्राकृतिक गर्भ निरोधक है। स्तनपान सुविधाजनक, मुफ्त (शिशु को बाहर का दूध पिलाने के लिए दुग्ध मिश्रण, बोतल और अन्य खर्चीले सामान की जरूरत होती है) और सबसे बढ़ कर माँ तथा शिशु के बीच भावनात्मक संबंध मजबूत करने का सुलभ साधन है। मां के साथ शारीरिक रूप से जुड़े होने का एहसास शिशुओं को आरामदायक माहौल देता है।
रूचिका राय
राजकीय उत्क्रमित मध्य विद्यालय तेनुआ