‘गुरु गृह गयउ पढ़न रघुराई,
अल्प काल विद्या सब पाई।
आज गोस्वामी तुलसीदास जी के जन्म एवं निर्वाण दिवस पर अनायास ही ये पक्तियाँ याद आ गई। उक्त पक्तियाँ गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित पुस्तक ‘रामचरित मानस’के ‘बालकाण्ड’ में वर्णित हैं। इसमें कहा गया
है कि जब बालक श्रीराम उपनयन संस्कार के बाद गुरु वशिष्ठ जी के आश्रम में शिक्षा ग्रहण करने गये तो बहुत कम समय में ही उन्होंने सभी विद्याओं में महारत हासिल कर ली । तुलसी दास जी का कहना है कि यदि छात्र का शिक्षक के साथ अन्तर्मन से जुराव हो और शिक्षा को केवल शिक्षा नहीं
साधना के रूप में लिया जाए तो यह छात्रहित में तुरंत फलदायक सिद्ध होता है। सच्चे मन से की गई साधना साधक के लिए वरदान साबित होता है। यदि छात्र श्रीराम की तरह स्वयं को संयमित, अनुशासित, मर्यादित, परिश्रमी तथा समयनिष्ठ रखते हुए गुरु की आज्ञा का पालन करता है तो उसका आंतरिक जुराव गुरु से अधिक होता है और वह उनकी कृपा से जल्द ही विद्या पाने में सफल होता है।