फूल और पर्यावरण : रूचिका

“माँ! माँ देखो न मैं कितने सारे फूल तोड़ कर लाया हूँ।” अति उत्साह से यह कहते हुए दस वर्षीय मयंक माँ के सामने एक प्लास्टिक के थैले से ढेर सारे खिले, अधखिले फूल चौकी पर गिरा दिया।
मयंक की माँ का आश्चर्य से मुँह खुला का खुला रह गया और उन्होंने नाराजगी दिखाते हुए मयंक से कहा, “बेटा तुमने इतने फूल तोड़े क्यों आखिर इनकी क्या जरूरत थी? उसमें भी कुछ फूल अधखिले हैं, कुछ टहनियों और कुछ पत्तियों के साथ हैं।”
“तुम्हें तो एक तो बिना वजह फूल तोड़ना नहीं चाहिए। डाली पर खिले हुए फूल कितने मनमोहक लगते हैं और आस-पास की शोभा बढ़ाते हैं।उनकी सुरभि से पूरा वातावरण सुरभित हो जाता है।”
“दूसरे तुमने पत्तियों, टहनियों को भी तोड़कर पौधे को नुकसान पहुँचाया है। तुम्हें पता है न पौधे हमारे पर्यावरण के लिए कितने जरूरी हैं, ये पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाते हैं। अगर तुम्हें बेवजह चोट दी जाएगी तो तकलीफ होगी न पौधे में भी तो जीवन है।उन्हें भी तो तकलीफ होती होगी।
वादा करो आज के बाद तुम ऐसा नहीं करोगे।”
मयंक ने कान पकड़कर कहा, “सॉरी माँ आज के बाद मैं बिल्कुल ऐसा नही करूंगा और मैं घर के आस-पास, विद्यालय प्रांगण में पौधे भी लगाऊंगा और उनकी देखभाल भी करूँगा।”
मयंक के ऐसा कहने पर उसकी माँ ने उसे गले लगा लिया और कहा शाबाश बेटा, खूब आगे बढ़ो।
इस प्रकार आप भी प्रयत्न करें कि अपने आस-पास पेड़ पौधे लगाकर पर्यावरण को शुद्ध करें।

रूचिका
राजकीय उत्क्रमित मध्य विद्यालय तेनुआ गुठनी, सिवान, बिहार

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