आज पितृ दिवस पर हमारे ग्रंथों में पिता के लिए कहे गये शब्द:
(संकलन: गिरीन्द्र मोहन झा)
पा रक्षणे धातु से पिता पद निष्पन्न होता है अर्थात् जो विपत्तियों से रक्षा करे।
सबके पिता परमपिता परमेश्वर हैं । जो आत्मारूप से सबके हृदय-प्रदेश में प्रतिष्ठित होकर सबका मार्गदर्शन करते हैं और शक्ति प्रदान करतै हैं।
मातृदेवो भव । पितृदेवो भव । आचार्यदेवो भव ।(वेद)
पौराणिक मान्यता के अनुसार, प्रकृति और पुरुष के मेल से सृष्टि की उत्पत्ति हुई है। यानि, प्रकृति हमारी माता और पुरुष यानि ईश्वर हमारे पिता हैं।
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।(माँ और मातृभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है।)……श्रीमद्वाल्मीकिय रामायण में भगवान श्रीराम का वचन
पिता धर्मः पिता स्वर्गः पिता हि परमं तपः।
पितरि प्रीतिमापन्ने प्रीयन्ते सर्वदेवताः॥
(पिता धर्म, स्वर्ग और परम तप है। पिता को प्रसन्न करने से सभी देवता प्रसन्न हो जाते हैं।)
अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविन: ।
चत्वारि तस्य वर्द्धन्ते आयुर्विद्या यशोबलम्।।(उद्योगपर्व, महाभारत)
(घर के बड़े-बुजुर्गों की सेवा करने से आयु, विद्या, यश और बल- इन चारों की वृद्धि होती है।)
विपत्तिकाल में बुजुर्गों के वचन रामबाण के समान अमोघ होते हैं।(हितोपदेश)
सर्वतीर्थमयी माता सर्वदेवमय: पिता ।
मातरं पितरं तस्मात् सर्वयत्नेन पूजयेत् ।।(पद्मपुराण)
(माँ में सभी तीर्थों का तथा पिता में सभी देवताओं का वास है। यत्नपूर्वक दोनों की सेवा करनी चाहिए।)
माता, पिता, गुरु, अग्नि और आत्मा- इन पांचों की यत्नपूर्वक सेवा करनी चाहिए।(महाभारत के उद्योगपर्व-विदुरनीति से।)
मनुष्य का कर्त्तव्य है कि वह अपने चरित्र से माता-पिता पर दोष न आने दें।
श्रीरामचरितमानस से –
मातु पिता गुर प्रभु कै बानी । बिनहिं बिचार करिअ सुभ जानी ।।(माता-पिता-गुरुकी आज्ञा का बिना विचार पालन कर देने पर भी कल्याण ही होता है।)
सुनु जननी सोई सुतु बड़भागी । जे पितु मातु बचन अनुरागी।।
तनय मातु पितु तोषनिहारा । दुर्लभ जननि सकल संसारा ।।
धन्य जनम जगतीतल तासू । पितहि प्रमोदु चरित सुनि जासू ।।(इस पृथ्वीतल पर उसका जन्म धन्य है जिसके चरित्र सुनकर पिता को परम आनंद हो।)
चारि पदारथ करतल ताकें। प्रिय पितु मातु प्रान सम जाकें ।।
(चारों पुरुषार्थ-धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष उनके हस्तगत हो जाती हैं, जिन्हें माता-पिता प्राणों के समान प्रिय हैं।)
पिता के लिए सबसे गौरव की बात वह होती है, जब उसकी संतान उनके जीवनकाल में ही उनसे भी आगे निकल जाए !!
पिता सूर्य-समान होते हैं, रहने पर गर्म किन्तु नहीं रहने पर अंधकार छा जाता है।
…….. गिरीन्द्र मोहन झा