रक्षाबंधन एक महापर्व-भवानंद सिंह

रक्षाबंधन एक महापर्व

रक्षाबंधन का त्योहार भारत में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। हिन्दू धर्मावलंबियों के साथ दूसरे धर्म को मानने वाले भी इस त्योहार को मनाते हैं । देखा जाए तो यह पर्व अब विदेशो में भी मनाया जाने लगा है । खासकर ऐसे देशों में जहाँ हिन्दू धर्म को मानने वाले लोग निवास करते हैं । श्रावण मास के प्रारंभ होते ही सभी बहनो के चेहरे पर खुशी झलकने लगता है ।
रक्षाबंधन बहुत ही पवित्र त्योहार है । इसे बहुत ही पवित्रता के साथ भाई-बहन मनाते हैं । इस शब्द के बनावट को देखा जाए तो यह दो शब्दों के मेल से बना है । ” रक्षा ” और ” बंधन ” जहाँ रक्षा का अर्थ सुरक्षा प्रदान करना तथा बंधन का अर्थ गांठ होता है । अर्थात यह बहन की सुरक्षा का एक गांठ है जो भाई की कलाई पर बहन बाँधती है । बहन रेशमी धागे की राखी बाँधकर भाई की लम्बी उम्र तथा जीवन में आये सभी कष्टो को दूर करने का ईश्वर से प्रार्थना करती है। ठीक उसी प्रकार भाई भी बहन की रक्षा करने का उन्हें वचन देते हैं और जीवन पर्यन्त इस वचन को निभाते हैं । इस प्रकार हम देखते हैं कि भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक यह रक्षाबंधन सैकड़ों वर्षो से लोग मनाते आ रहे हैं ।
अगर बात हम इसके इतिहास की करें तो पता चलता है कि इसका इतिहास बहुत पुराना है । महाभारत काल में भी इस पर्व को मनाने का प्रमाण मिले हैं । भगवान श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को सलाह दिया था कि खुद की सुरक्षा तथा उनके सैनिकों की सुरक्षा के लिए सभी की कलाई में रक्षा के धागे बाँधकर उसे युद्ध भूमि में भेजा जाये, ताकि हमारा विजय सुनिश्चित हो ।
दूसरी ओर जब श्री कृष्ण और शिशुपाल के मध्य युद्ध हुआ तो चक्र चलाते समय श्री कृष्ण के अंगुली से रक्त बहने लगा । द्रोपदी ने अपने रेशमी वस्त्र का पल्लू फाड़कर कृष्ण के अंगुली में बाँध दिया और तब खून बहना बंद हुआ । कृष्ण ने उसे वचन दिया कि इस कर्ज को एक दिन ब्याज सहित लौटाऊँगा । चीरहरण के समय जब द्रोपदी कृष्ण को पुकारने लगी तो उन्होंने उसकी लाज बचाई । तब से रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाने लगा ।
यह कथा भी प्रचलित है कि प्रतापी राजा बलि जो विष्णु के भक्त थे । उनकी भक्ति से खुश होकर भगवान विष्णु ने उनके राज्य की रक्षा स्वयं करने का फैसला किया और वह स्वर्ग लोक छोड़कर राजा बलि के राज्य में आकर रहने लगे । इससे माता लक्ष्मी को बहुत दुख हुआ । तब माता लक्ष्मी ने ब्राह्मणी का रूप धारण कर राजा बलि को राखी बाँधी और बदले में उनसे वचन लिया कि विष्णु भगवान को अपने धाम के लिए मुक्त किया जाय । राजा बलि ने तब भगवान विष्णु से अपने धाम जाने का आग्रह किया और तब से रक्षाबंधन का प्रचलन बढ़ गया ।
यह भी प्रचलित है कि विश्व विजेता बनने के उद्देश्य से सिकन्दर जब भारत पर विजय प्राप्त करने के लिए यूनान से अपने सैनिकों के साथ निकला तब भारत में उस समय राजा पुरू राज्य करते थे । यह घटना 300 ईसापूर्व की है। राजा पुरू बहुत ही मजबूत सैन्य शक्ति से लैस होकर राज्य चलाते थे । जब सिकंदर राजा पुरू पर आक्रमण किया तो उसे पुरू की सैन्य शक्तियों का अंदाजा नहीं था । इस युद्ध में राजा पुरू ने उसके आक्रमण का डटकर मुकाबला किया और उसके विश्व विजेता बनने के सपने को तोड़ दिए । सिकंदर की पत्नी रक्षाबंधन के महत्व को जानती थी । उन्होंन राजा पुरू के लिए राखी भिजवाई और अपने पति का जान बक्स देने का वचन लिया । तब से रक्षाबंधन का त्योहार जोर शोर से मनाया जाने लगा ।
चितौड़ की रानी कर्णावती पर जब गुजरात का सुल्तान बहादुर साह ने आक्रमण किया तो रानी कर्णावती ने अपनी मदद के लिए दिल्ली के शासक हुमायूं को राखी भेजकर मदद के लिए आग्रह किया । हुमायूं ने राखी का मान रखते हुए अपनी सेना को कर्णावती की मदद के लिए भेजा । तब बहादुर शाह अपनी सेना के साथ वापस लौट गया और रक्षाबंधन के त्योहार का महत्व और बढ़ गया । तब से यह पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाने लगा ।
इस तरह हम देखते हैं कि रक्षाबंधन का त्योहार विभिन्न कालो में विभिन्न तरीके से मनाया जाता रहा है । आधुनिक अथवा वर्त्तमान समय में यह त्योहार बड़े ही उत्साह पूर्वक मनाया जाता है । इसमें भाई बहन का विशुद्ध और निश्छल प्रेम झलकता है । इसकी महत्ता और इसकी पवित्रता दिनों-दिन बढ़ता ही जा रहा है । इसके विस्तारित क्षेत्र को देखते हुए इसे महापर्व भी कहा जाने लगा है ।

भवानंद सिंह
उत्क्रमित माध्यमिक विद्यालय मधुलता रानीगंज, अररिया 

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