भारतीय संस्कृति में पर्यावरण/प्रकृति के सभी जीवनी-शक्तिदायिनी घटकों को देवतुल्य मानकर उनके प्रति श्रद्धा रखी जाती है। प्रथम सद्ग्रंथ वेद, जो कि अब भी संसार को दिखाने का काम करते हैं, में सूर्यसूक्त, पृथ्वीसूक्त आदि भरा-पड़ा है। भारतीय सद्ग्रंथों के अनुसार प्रकृति और पुरुष(ईश्वर) के मेल से सृष्टि की उत्पत्ति हुई है । प्रकृति सबकी माता और ईश्वर हमारे पिता हैं।
भारतीय संस्कृति में वृक्ष का श्रेष्ठ स्थान है। वेद में कहा गया है- माता भूमि: पुत्रोSहं पृथिव्या।(भूमि मां है, हम सब इनकी संतान हैं।) वृक्षारोपण और वृक्ष-संरक्षण के द्वारा ही हम पृथ्वी माता की सेवा कर सकते हैं। महाभारत में एक वृक्ष को दस पुत्रों के समान माना गया है।
शुक्रनीति कहती है, नास्ति मूलमनौषधम् ।(ऐसी कोई वनस्पति नहीं, जिसमें कोई न कोई औषधीय गुण नहीं हो, हमें उसकी जानकारी नहीं है।)
भारतीय संस्कृति में तुलसी, अश्वत्थ(पीपल), अशोक, आँवला, बिल्ववृक्ष, शमी आदि को देवतुल्य मानकर उनकी आराधना की जाती है।
श्रीमद्भगवद्गीता के दशम् अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं।- सर्ववृक्षाणां अश्वत्थोSहं ।(सभी वृक्षों में मैं पीपल हूँ।)
श्री शिवमहापुराण के अनुसार, बिल्ववृक्ष के मूल में भगवान रुद्र का निवास है। बिल्व वृक्ष के मूल का जल शीश पर धारण करने से सभी तीर्थों के जल का फल मिलता है। सर्वविदित है कि भगवान शिव को बेलपत्र परमप्रिय है।
वट-सावित्री व्रत के दिन भारतीय महिलाएं सुहाग और सौभाग्य की रक्षा के लिए वट-वृक्ष का पूजन-अर्चन अपना श्रेष्ठ कर्त्तव्य समझकर करती है। शास्त्रों में वट-वृक्ष को पूजनीय माना जाता है।
प्रायः फल और कांटेदार वृक्षों को लोग घर-आंगन में नहीं लगाते हैं।
आम, लीची, कटहल, अमरूद आदि को बगीचा में ही लगाया जाता है।
विज्ञान भी इन पूजनीय वृक्षों की महत्ता को समझ और कुछ हद तक सिद्ध कर चुका है।
वृक्षारोपण से बहुत ही अधिक महत्व वृक्ष को सींचने और वृक्ष के संरक्षण का महत्व है।
आज के विकास के दौर में हमें विकास के साथ-साथ पर्यावरण को भी देखने की आवश्यकता है। विकास और पर्यावरण-संरक्षण दोनों का संतुलन करके चलना होगा। जैसे बंजर भूमि में उद्योग लगाने की आवश्यकता है। मोबाइल टावर से निकलने वाले रेडिएशन से पक्षियों की बहुत सारी प्रजाति गायब हो रही हैं। इस पर भी हमें सोचने की आवश्यकता है। उसके रेडिएशन के प्रतिकार के लिए भी कुछ सोचना होगा।
प्रार्थना में अद्भुत शक्ति होती है। सार्थक श्रम बहुत बड़ी प्रार्थना है। पुष्प आदि के वृक्षों को सींचना और उसकी रक्षा करना भी सार्थक श्रम है। इससे बहुत संतुष्टि मिलती है। आदि
जन्मदिवस, पर्यावरण दिवस, पृथ्वी दिवस आदि अवसरों पर हमें वृक्ष अवश्य लगाना चाहिए। डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन काल में कम से कम दस वृक्ष लगाने और उसका संरक्षण करने का परामर्श दिया है।
बहुत सारे पर्यावरणविद् हमारे देश में आ चुके हैं।
मेरे आदरणीय गुरुदेव श्री नरेश कुमार(रसायनशास्त्र विभागाध्यक्ष, भू. ना. मं. विश्वविद्यालय, मधेपुरा) ने पर्यावरण संरक्षण के लिए कई वृक्षों को विश्वविद्यालय में लगाया, लगवाया और यह कार्य अभी भी जारी है। अभी इनके उद्योग के फलस्वरूप विश्वविद्यालय में कई वृक्ष लहलहा रहे हैं।
मेरे मित्र रवीन्द्र कुमार ‘बिट्टू’ (ग्राम-अगुवानपुर, जिला-सहरसा) समय-समय पर न केवल वृक्षारोपण करते हैं, प्रत्युत् विशेष कार्यक्रम के माध्यम से वृक्षों का दान भी करते हैं। वृक्षों का धार्मिक, आध्यात्मिक, दार्शनिक और वैज्ञानिक महत्व भी बताते हैं और लोगों को प्रेरित भी करते हैं। जिला-स्कूल, सहरसा में उन्हें वर्ष 2018 में उन्हें वृक्ष-पुत्र की उपाधि से सम्मानित किया गया था ।
प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से और भी न जाने कई सारे दृष्टांत भरे पड़े हैं, मानव समाज में, जो पर्यावरण संरक्षण के लिए निरन्तर प्रयासरत हैं। वही लोग इस ओर ध्यान दे रहे हैं, जिन्हें आगे आने वाली पीढ़ियों की विशेष चिंता है।
वृक्ष लगाएं जीवन बचाएं
इस धरा को स्वर्ग बनाएं ।
गिरीन्द्र मोहन झा