योग की महिमा
रमेश चन्द्र सिन्हा हाल ही में बैंक से सेवा निवृत्त हुए थे। मजबूत कद काठी, स्वस्थ शरीर काले घुंघराले बाल। लगता नहीं था कि वे रिटायर हो चुके हैं और इतनी उम्र हो चुकी है उनकी। सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था। तभी एक दिन उन्हें छाती में जोर का दर्द महसूस हुआ। डाक्टर को दिखाया तो उसने हृदय रोग बताया और खाने के लिए कुछ दवाइयां दी। सिन्हा जी ने उसका नियम पूर्वक सेवन किया तो दर्द जाता रहा और वे अपने आपको स्वस्थ महसूस करने लगे। धीरे धीरे वे उसके प्रति पूर्णतः लापरवाह हो गये तथा दवाई बिल्कुल छोड़ दी।
कुछ दिन तो ठीक रहा पर बाद में उन्हें फिर दर्द महसूस होने लगा। फिर डाक्टर के यहां दौड़ लगाई तो जांच पड़ताल करने के बाद बताया कि बीमारी अब बहुत ख़तरनाक स्टेज पर पहुंच चुकी है तथा आपरेशन करना आवश्यक हो गया है। जब सिन्हा जी ने आपरेशन का खर्च पूछा तो सुनकर वे बेहोश होते होते बचे। उनके बेटे रवि ने शहर के दो तीन अन्य डाक्टरों से भी पता किया पर सबने लगभग उतना ही खर्च बताया। उनके पास पैसे थे कहां। सारे पैसे तो उन्होंने बच्चों की पढ़ाई-लिखाई और पालन-पोषण पर खर्च कर दिया था। लिहाजा वे दुःख भोगने लगे और बिछावन पर पड़े-पड़े पीड़ा सहने के अलावा उनके पास कोई उपाय न बचा।
दिन किसी तरह बीत रहे थे कि एक बार रवि ने आकर उन्हें एक विचित्र बात बताई। उसने कहा , ” पिताजी, शहर में एक योग गुरु आये है। वे कहते हैं कि योग की सहायता से वे कठिन से कठिन बीमारी को ठीक कर सकते हैं। आप एक बार उनको दिखाइए न। “क्या मूर्खों वाली बात करते हो।” सिन्हा जी बोले , ” जो बीमारी इतनी दवा दारू से ठीक नहीं हो रही है वह भला योग से क्या ठीक होगी।”
“नहीं पिताजी, उनका दावा है कि योग से बड़ी से बड़ी बीमारी ठीक किया जा सकता है। कई लोगों को उससे फायदा भी हुआ है। एक बार जाकर दिखा लेने में क्या बुराई है।”
“जाओ यहां से,मेरा दिमाग खराब मत करो। “सिन्हा जी झल्लाकर बोले।”
“एक बार दिखा लेने में क्या हर्ज है जी। हो सकता है कुछ फायदा ही हो जाय। “इस बार उनकी पत्नी ने उन्हें समझाया।”
अब सिन्हा जी कुछ नरम पड़े , “ठीक है,तुम लोगों की यही इच्छा हो तो चलो, एक बार देख लेते हैं।”
अगले दिन रवि उन्हे लेकर योग गुरु के पास पहुंचा और उन्हें दिखाकर सारी बात सच-सच बताई। गुरु जी ने उनका ठीक से मुआयना किया, फिर योग के कुछ आसन बताये तथा सुबह में खूब टहलने की सलाह दी एवं एक सप्ताह में बीमारी ठीक होने का आश्वासन भी दिया।
सिन्हा जी घर आकर रोज सभी आसन सही-सही करने लगे तथा सुबह की सैर भी शुरु कर दी। इससे उनका दर्द धीरे-धीरे घटने लगा और उन्हें आश्चर्य तो तब हुआ जब पांचवें दिन ही दर्द पूरी तरह ठीक हो गया तथा वे बिल्कुल स्वस्थ हो गये। अब सिन्हा जी ने इधर एक नया काम शुरू कर दिया है। उन्होंने अपना खुद का योग केंद्र खोल लिया है और दूसरों को भी योग सिखाने लगे हैं तथा उससे संबंधित सलाह देने लगे हैं।
सुधीर कुमार
किशनगंज बिहार