“दादी की दावत”
– ✍️… शैलेन्द्र कुमार
एक शांत ग्रामीण इलाके में हरे-भरे खेत और लाल सेबों से लदे बगीचे थे। यहीं पर दादी सबरी नाम की एक दयालु बुजुर्ग महिला रहती थी। उसका छोटा-सा घर था जो पत्थर की दीवारों से घिरा था। हर साल गर्मी की छुट्टियों में वह अपने पोते-पोतियों – मिनी, मोनू, गीता और गोलू के साथ एक खास दावत का आयोजन करती थी। यह दावत कोई साधारण भोज नहीं थी; यह प्यार, हंसी और जादू से भरी होती थी। एक शाम, जब सूरज ढल रहा था और हवा में सेब की मिठास तैर रही थी, दादी सबरी ने बच्चों को बुलाया। छोटी चौकी पर खुशबूदार गर्म व्यंजन थे। सेवई, भाप से भरी पूड़ी, छोला और ताजे फल। बच्चों की आँखें चमक उठीं, लेकिन दादी ने मुस्कुराते हुए कहा, “इस दावत का असली जादू तब शुरू होगा जब हम इसे एक-दूसरे के साथ बाँटेंगे।” मिनी ने पूछा, “दादी, क्या यह सचमुच जादू है?” दादी ने एक रहस्यमयी मुस्कान दी और एक सेब उठाया। जैसे ही उन्होंने सेब को काटकर बाँटा, खुशियों की एक चमकीली रोशनी चारो तरफ़ गई। बच्चों ने देखा कि उनके आसपास का माहौल बदल गया। खेत सुनहरे फूलों से भर गए, और हवा में हल्की संगीत की लहरें गूंजने लगीं। दादी ने बताया, “यह जादू प्यार और शेयरिंग से आता है। जो भी हम बाँटते हैं, वह हमें और खुशहाल बनाता है।” बच्चों ने एक-दूसरे के साथ खाना बाँटा। मोनू ने मीनी को सेवइयां दी, और मिनी ने दादी को फल। हर कौर के साथ उनकी हंसी एक मधुर संगीत की तरह गूंजती गई। अचानक, एक छोटा सा तोता पेड़ से उड़कर आया और मेज पर बैठ गया। दादी ने उसे भी फल का एक टुकड़ा दिया। तोता ने खुशी से चहकते हुए आसमान में उड़ान भरी। बच्चों ने देखा कि बादलों से बारिश की बूंदें गिरने लगीं, जो फसलों को सींच रही थीं। दादी ने कहा, “देखो, हमारी उदारता प्रकृति को भी खिलाती है। “रात के अंत में, वह जादू धीरे-धीरे गायब हुआ, लेकिन बच्चों के दिलों में उसकी एहसास बनी रही। उन्होंने सीखा कि सच्ची खुशी देने और बाँटने में है। दादी सबरी ने उन्हें गले लगाया और कहा, “यह दावत हमेशा तुम्हारे साथ रहेगी, जब तक तुम प्यार और दया को आगे बढ़ाओगे।”
नैतिक शिक्षा: यह कहानी सिखाती है कि साझा करना और दूसरों की मदद करना हमें आंतरिक शांति और खुशी देता है। प्रकृति और प्रेम के साथ जुड़ाव हमारी दुनिया को बेहतर बनाता है।
✍️…शैलेन्द्र कुमार, Govt. UMS औसानी, बगहा-2, प. चम्पारण.