कहानी: “सहयोग की शक्ति” (✍️…शैलेन्द्र.)
एक समय की बात है, घने जंगल के मध्य में एक बुद्धिमान शेर, सिंहराज, निवास करता था। उसकी लंबी, सुनहरी-लाल जटा और गौरवपूर्ण चाल उसे सभी जानवरों का नेता बनाती थी। उसके साथ रहते थे बलराज नामक शक्तिशाली गैंडा, नैनी नामक नन्हीं हिरनी, चतुर लोमड़ी- चतुरी, और नया साथी, बलशाली भैंसा- कालीचरण। यह जंगल हरा-भरा था, जहां सभी प्राणी सौहार्द से जीवन बिताते थे। पर एक दिन, अचानक जल स्रोत सूखने लगे और पेड़-पौधे मुरझाने लगे, जिससे जंगल में हाहाकार मच गया। सिंहराज ने अपने मित्रों के साथ इस संकट का समाधान खोजने का निश्चय किया। नैनी ने सुझाव दिया, “हमें उस प्राचीन कुएं की तलाश करनी चाहिए, जिसकी कथा बुजुर्ग हमारे सुनाया करते थे।” बलराज ने चिंता जताई, “कि वह कुआं जंगल के सबसे खतरनाक हिस्से में है।” चतुरी ने हंसते हुए कहा, “मेरी चालाकी से हम रास्ता ढूंढ लेंगे।” कालीचरण ने कहा, “मेरी शक्ति से हम बाधाओं को पार कर लेंगे।”चौकड़ी ने यात्रा शुरू की। रास्ते में, एक बूढ़े उल्लू ने उन्हें बताया कि कुएं का पानी तभी बहेगा जब जंगल से “स्वार्थ” को मिटाया जाएगा। सिंहराज ने सोचा, “शायद हमने एक-दूसरे की मदद करना छोड़ दिया है।” उसने सभी जानवरों को एकत्र किया और योजना बनाई। नैनी और उसके साथी हिरणों ने घास इकट्ठी की, बलराज और कालीचरण ने मिट्टी खोदकर नालियां बनाई, और चतुरी ने पानी के रास्ते को साफ करने में चतुराई दिखाई। जंगल के छोटेबडे सभी जानवरों ने मिलकर मेहनत की। दिन-रात की मेहनत के बाद वे कुएं तक पहुंचे, जहां एक चमकता सुनहरा पत्थर दिखा। सिंहराज ने उसे जैसे हीं छुआ, कुआं जीवंत हो उठा। पानी की धारा बह निकली, जो जंगल को सींचने लगी। सभी जानवरों ने खुशी से नृत्य किया और सिंहराज को धन्यवाद दिया। इस घटना ने जंगल को नई सीख दी: सहयोग, एकता और परस्पर विश्वास ही प्रकृति को बचाने का आधार हैं। सिंहराज ने हर साल “सहयोग दिवस” मनाने का वचन दिया, जिसमें सभी जानवर मिलकर जंगल की देखभाल करेंगे। इस तरह, सिंहराज का जंगल फिर से हंसा-खेला, और इस कथा ने पीढ़ियों तक प्रेरणा दी।
नैतिक शिक्षा: यह कहानी सिखाती है कि व्यक्तिगत शक्ति और चालाकी से अधिक, सामूहिक प्रयास और एकता ही बड़ी से बड़ी समस्याओं का समाधान कर सकती है। स्वार्थ त्यागकर एक-दूसरे की मदद करने से न केवल व्यक्तिगत विकास होता है, बल्कि समुदाय और पर्यावरण भी फलता-फूलता है।
– शैलेन्द्र कुमार (UMS औसानी, बगहा-2.
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