अंग्रेजी भाषा की यात्रा एक सामान्य पिछड़े कबीले से शुरू होकर जहां के सभ्य सुसंस्कृत कहे जाने वाले लोगों से तिरस्कृत स्थिति से आज कालजयी और परिधिमुक्त स्थिति को प्राप्त करती हुई विश्व भाषा के रूप मे प्रतिष्ठित है। इस यात्रा में अंग्रेजी को मुश्किल से प्रारम्भिक ढाई सौ वर्ष लगे होंगे और राज सत्ता के संरक्षण ने इस कार्य को आसान बना दिया।अस्तु आज यह विश्व के 88 देशो मे विश्वास और शान के साथ लिखी पढ़ी और बोली जाती है, अर्थात यह विभिन्न संस्कृतियों के मध्य एक बोधगम्य संवाद स्थापित करने का सुगम माध्यम हैं ।
ज़ब विश्व विल्कुल छोटा हो चला है, संचार माध्यम बलिष्ट और प्रभावी हो चले हैं तथा व्यक्तिगत अंतस्थ पल भी सोशल मिडिया के प्रभाव से आच्छादित है तब अंग्रेजी की पहुँच निश्चित रूप से बहुसंख्यक मानव के व्यक्तिगत जीवन तक है। इस प्रकार अंग्रेजी ने विश्व मानव के संवाद को एक सूत्र मे पिरोया है।
जैसा कि भाषा के विकास में होता है कि भाषा क्रमशः अन्य भाषा के शब्दों को आत्मसात कर समृद्ध होती है ठीक वैसा ही अंग्रेजी के साथ भी हुआ अतः यह बोली के कई शब्दों को आत्मसात करती हुई सुग्राह्य हुई। इस कारण भी अंग्रेजी बलिष्ट हुई और सामान्य लोगों ने भी बलिष्ट दिखने के लिए अंग्रेजी को अपनाया।
विकास के क्रम मे तकनिकी का विकास पश्चिम के देशो मे तेज गति से हुआ और इसमें अंग्रेजी ने एक सशक्त भाषा के रूप में विज्ञान तकनीकी के विषयों पर एकाधिकार कर लिया इस हेतु अंग्रेजी वैज्ञानिकों और चिकित्सा क्षेत्र के लिए अतुलनीय अवश्यंभावी भाषा हो गई है।
आज अंग्रेजी के बिना विश्व के विभिन्न देशो और संस्कृतियों के मध्य संवाद शून्यता हो जायेगी। वास्तव मे हिंदुस्तान जैसे बहुभाषा, बहु संस्कृति और विविध परिधान वाले देश में भी आश्चर्यजनक रूप से अंग्रेजी की स्वीकार्यता कई मामले मे हिंदी से अधिक है।भले ही यह गुलामी का दुष्प्रभाव हो लेकिन यह आज का यथार्थ है।अस्तु अंग्रेजी देश, विदेश, घर परिवार, विज्ञान तकनीकी इत्यादि अनेकानेक रूपों मे हमें सब के साथ अंतः करण मे समाई हुई भाषा है अतः यह निश्चित रूप से सार्थक प्रतीत होती है।
डॉ स्नेहलता द्विवेदी आर्या
उत्क्रमित कन्या मध्य विद्यालय शरीफगंज, कटिहार