शीनू और पीकू
यह कहानी है शीनू और उसके तोते पीकू की। शीनू का घर बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले के अंतर्गत लक्ष्मीपुर गांव में है। शीनू का गांव गंडक नदी के किनारे पर बसा है। गांव से कुछ ही दूर पर एक जंगल है जिसका नाम है वाल्मीकि टाइगर रिजर्व। यह जंगल बाघों का घर है। बाघ के अलावा यहां हिरण ,भालू, बंदर जैसे जानवर और तीतर, मोर तोता जैसे पक्षी रहते हैं। शीनू के पिताजी भी अन्य गांव वालों की तरह खेती करते हैं। वे खेतों में मकई, धान, गेहूं जैसे फसल लगते हैं और नदी के किनारे पर बालू वाली जमीन पर तरबूज लगाते हैं। शीनू भी अपने पिताजी के साथ खेतों में जाती रहती है। शीनू के पिताजी अपनी फसलों के नीलगाय और तोते से बर्बाद होने के चलते बहुत परेशान रहते हैं। शीनू के पिताजी ने खेत के चारों ओर मच्छरदानी वाली जाली का घेरा लगा रखा है ताकि जानवर फसल ना खाएं।
गर्मियों में एक दिन सुबह शीनू जब अपने मकई के खेतों में पहुंची तो देखा कि मच्छरदानी के जालों में फंसा एक तोते का बच्चा फड़फड़ा रहा था। शीनू को देखकर वह और तेजी से अपने पंख फड़फड़ा कर चीखने लगा। शीनू डर के पीछे हट गई फिर उसे थोड़ी दया आ गई। वह भाग कर घर जाकर कैंची ले आई और जाली को धीरे-धीरे काट कर तोते को आजाद कर दिया। तोते का बच्चा फुर्र से उड़ कर पास के पेड़ों पर जाकर बैठ गया। शीनू घर चली आई। उसने देखा कि तोते का बच्चा उसके साथ ही उड़ता आ कर घर के बगल वाले पेड़ पर बैठ गया। उसने पेड़ के पास मकई के दाने ,अमरूद और पानी रख दिया । तोते ने थोड़ा सा खाया और पानी पीकर उड़ गया। उस दिन से तोता रोज आकर पेड़ पर बैठ कर बोलता, शीनू उसे दाने और ठंडा पानी देती , फिर शीनू के साथ तोता उसके खेतों में जाता। शीनू ने उसका नाम रखा पीकू।
अब शीनू के खेतों के मकई के दाने तोते नहीं कुतर पाते । पीकू उन्हें खदेड़कर उड़ा देता है। जब भी शीनू के खेतों में नीलगाय घुसती है तो पीकू शीनू के घर आकर हल्ला मचा देता है। फिर पिताजी टीन का डब्बा जोर से बजाकर नीलगायों को भगा देते हैं। प्यार से पिताजी उसे पीकू चौकीदार कहते हैं। पिताजी शीनू से कहते हैं कि यह पृथ्वी सभी जीवों का घर है। इस पृथ्वी पर मनुष्य के साथ साथ सभी जानवरों का भी बराबर का अधिकार है। इसलिए हमें सिर्फ पीकू तोते पर ही नहीं सभी जीवों पर दया करनी चाहिए।