कछुआ: धैर्य, संतुलन और संरक्षण का प्रतीक : सुरेश कुमार गौरव

प्रस्तावना: प्रकृति में ऐसे अनेक जीव हैं जो मौन रहते हुए भी हमें जीवन की महान शिक्षाएँ दे जाते हैं। कछुआ (Turtle/Tortoise) भी उन्हीं में एक अद्भुत जीव है – धीमे चलता है, पर सधे हुए कदमों से। वह हमें सिखाता है कि जीवन में गति नहीं, स्थिरता और धैर्य ही सफलता की कुंजी हैं।

जीव वैज्ञानिक दृष्टि से: कछुआ Reptilia वर्ग का सदस्य है, जिसकी पीठ पर एक कठोर कवच होता है। यह कवच इसे शिकारियों और वातावरण की कठोरता से सुरक्षा देता है।

ताजे जल में रहने वाले कछुओं को “Turtle” कहा जाता है।

भूमि पर रहने वाले कछुओं को “Tortoise” कहा जाता है।

कछुए का जीवनकाल अत्यंत लंबा होता है – कुछ प्रजातियाँ 100 वर्षों से भी अधिक जीवित रहती हैं।

भारतीय संस्कृति में स्थान: भारत की पौराणिक परंपरा में कछुए को अत्यंत पवित्र और दिव्य प्राणी माना गया है।

भगवान विष्णु का दूसरा अवतार “कूर्म अवतार” कछुए के रूप में ही हुआ था।

मंथन के समय जब मंदराचल पर्वत डगमगाने लगा, तब भगवान ने कछुए का रूप धारण कर उसे अपनी पीठ पर धारण किया — यह धारण शक्ति ही कछुए की प्रकृति का प्रतीक है।

वास्तुशास्त्र में भी कछुए का चित्र या मूर्ति शुभ मानी जाती है, जो स्थायित्व और समृद्धि का प्रतीक है।

जीवन-दर्शन की दृष्टि से कछुआ:

कछुआ सिखाता है कि —

धीमे चलो, लेकिन स्थिर चलो।

भीतर लौटना, आत्मचिंतन है।

रक्षा कवच बाहरी नहीं, आत्मबल से बनता है।

लक्ष्य की ओर शांत भाव से बढ़ना ही सच्चा प्रयास है।

कछुए की चाल भले ही धीमी हो, लेकिन उसकी लगन और एकाग्रता उसे अंततः मंज़िल तक पहुँचा देती है। प्रसिद्ध कछुआ और खरगोश की कथा इसका श्रेष्ठ उदाहरण है।

वर्तमान संकट और संरक्षण की आवश्यकता: आज कछुए की कई प्रजातियाँ विलुप्ति के कगार पर हैं।

अवैध व्यापार,

जल-प्रदूषण,

नदी, पोखर और समुद्र के किनारों का अतिक्रमण,

प्लास्टिक की भरमार,
इन कारणों से कछुए का प्राकृतिक आवास संकट में है।

संरक्षण हेतु हमें करना होगा:

  1. जलाशयों और तटों की स्वच्छता।
  2. कछुआ व्यापार पर रोक।
  3. प्राकृतिक आवासों को संरक्षित करना।
  4. शिक्षा और जागरूकता के माध्यम से जनमानस को प्रेरित करना।

उपसंहार: कछुआ एक प्राकृतिक गुरु है – जो हमें मौन में साधना, गति में संयम, और जीवन में संतुलन का पाठ पढ़ाता है।
विश्व कछुआ दिवस (23 मई) केवल एक तिथि नहीं, बल्कि एक अवसर है – संरक्षण और चिंतन का संकल्प लेने का।

चलें, हम सब मिलकर इस अद्भुत जीव को उसका स्थान, सम्मान और सुरक्षा लौटाएँ।

-सुरेश कुमार गौरव, प्रधानाध्यापक

उ.म.वि.रसलपुर, फतुहा, पटना (बिहार)

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