स्त्री का दर्द : रूचिका

सरिता जी की कामवाली सरला आज फिर देर से आई। सरिता जी ने कहा, “सरला,आज फिर तूने देर कर दी जबकि कल ही मैंने कहा था जरा जल्दी आना, कुछ काम है।” सरला बड़ी धीमी आवाज में बोली, “माफ करना बीबी जी आगे से ऐसा नही होगा…और फिर झाड़ू लेकर सफाई करने लगी।”
सरिता जी को थोड़ा आश्चर्य हुआ और दिन होता तो सरला बहानों का पुलिंदा खोल देती। मगर आज चुप थी।
सरिता जी ने कहा, “सरला तू ठीक तो है न? इतना चुप क्यों है? कोई बात हुई क्या?” सरला ने ना में सिर हिलाया और फिर काम में लग गयी।
सरिता जी का शक गहराया, भले ही सरला कामवाली थी मगर सरिता जी को उसकी फ़िक्र लगी रहती।
पास बुलाकर जब दुबारा पूछा तो सरला की आँखों में आँसू आ गए। सरिता जी समझ गयी, रात फिर उसके पति ने शराब की नशे में उसे मारा है।
उन्होंने सरला को कहा, “तू चुप क्यों रहती, विरोध क्यों नहीं करती।”
सरला ने कहा, “विरोध करना आसान है क्या बीबीजी?”
आप भी तो साहब की कितनी सारी बात न चाहते हुए भी मान लेतीं।
सरिता जी चुप हो गयीं, ठीक ही तो कह रही थी सरला घर बाहर दोनों की जिम्मेदारी सम्भालते हुए भी कहाँ अपनी मर्जी से अपनी कमाई खर्च कर पाती थीं। कल ही तो दोस्तों के साथ नाश्ता करने में 500 ₹ ख़र्च करने पर कितना सुनाया था मयंक ने।
और वह एक शब्द नहीं बोल पाईं। कमोबेश उनकी भी स्थिति तो सरला जैसी ही थी।

रूचिका
प्रधान शिक्षिका
प्रा वि कुरमौली, गुठनी सिवान बिहार

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