अलमामैटर: मस्ती की पाठशाला : मो. जाहिद हुसैन

(संज्ञानात्मक विकास एवं शिक्षा-2)
   
यदि बच्चे के मस्तिष्क पर दबाव न पड़े तो उनमें सीखने की जिज्ञासा स्वतः जागृत होगी। 
बंटी का एडमिशन पापा ने अपने एक दोस्त के विद्यालय ‘अल्मा मैटर’ में करवा दिया। बंटी के चलते बबली का भी एडमिशन आर के अल्मा मेटर की दूसरी कक्षा में करा दी गई। अल्मामैटर के प्राचार्य नवाचार करने में माहिर थे। उनकी तालीम दिल्ली विश्वविद्यालय से हुई थी। वहीं से उन्होंने मनोविज्ञान में एम.ए और फिर M.Ed किया था। उनका व्यक्तित्व अभिभावक और बच्चों, दोनों के बीच प्रभावशाली था। उनके विद्यालय में जो कोई भी इंक्वायरी के लिए जाते तो वे प्रभावित हुए बिना न रह पाते। उन्हें तरह-तरह के अनुप्रयोग से वे मन मोह लेते। वे अपने ऑफिस में टंगे टी एल एम के बारे में बताते तो कभी क्लास में भी ले जाते। अभिभावक ये सब देखकर अभिभूत हो जाते। 
बंटी तो पहले ही दिन क्लास में ले जाते ही रोने लगा। प्राचार्य महोदय ने बबली के पापा को जाने का इशारा किया। जाइए, मैं संभाल लूंगा। प्रचार्य महोदय उसे ऑफिस में ले गए और बहुत दुलार-प्यार किए और केले खाने के लिए दिए। उनका आदेशपाल भी बड़ा मजेदार और समझदार था। बंटी को टेक अप कर लिया। छुट्टी के टाइम पापा खुद ही स्कूल से बंटी और बबली को लाने के लिए गये। बंटी ऑफिस में रंगीन छोटी कुर्सी को हिला डुला रहा था। पापा आएंगे न ? सर।  मुझे घर जाना है। हां बेटा, पापा आ रहे हैं। तुम खुश हो जाओ। इतने में पापा आ गए। लीजिए, अपने शहजादे को, संभालिए। ” अरे! यह तो बहुत अच्छा लड़का है। बिल्कुल नहीं रोता। देखिए न,” प्रिंसिपल साहब ने कहा। बबली बंटी को देखकर मुस्कुरा रही थी। बबली को स्कूल बहुत अच्छा लगा। बंटी में भी स्कूल आने की जिज्ञासा जगी। दूसरे दिन बंटी अपना बैग लेकर टाइम से तैयार हो रिक्शा के पास आ गया। 
अल्मा मैटर अंतः क्रियाओं का जीवंत उदाहरण था। अल्मा मेटर का अपना एक तराना भी था। तराना किसी भी स्कूल की विशिष्टता की पहचान होती है। यह एक बानगी  होती है, जिसमें स्कूल की खूबियां समाहित होती हैं। यह उद्देश्यपूर्ण होता है। तराना का बोल इस प्रकार था-
       दर्स-ओ-तदरीस का एक गहवारा है, 
       आर के अल्मा मैटर बड़ा प्यारा है। 
दर्स-ओ- तदरीस का अर्थ है -सिखाना और सीखना। गहवारा का अर्थ है-केंद्र। आर के– रीक्रिएशन एंड नॉलेज (Recreation and knowledge) अर्थात मस्ती की पाठशाला। प्रत्येक वर्ग-कक्ष में बच्चों के प्रवेश करते ही चेहरे पर मुस्कान बिखर जाती। वहां किसी भी बच्चे को पीटने की इजाजत नहीं थी। बैठने के लिए छोटी-छोटी रंग -बिरंगी कुर्सियां, खेलने का सामान, झूले, दीवारों पर खेलते हुए बच्चों का चित्र, अच्छी गार्डेनिंग बच्चों को सम्मोहित कर लेते। छोटे-छोटे बच्चों के लिए तो खेलना ही सीखना था। 
खुरदरे रबर से लेटर्स या वर्णों के आकार काटे जाते थे। फोम से वर्णों या लेटर्स की आकृतियों को बनाए गये थे। बच्चे उंगलियों से उसे छूकर महसूस करते, इसकी पूरी आजादी थी। मैडम बतलाते। यह क्या है ? वह क्या है ? मैडम फिर बोल कर लेटर को उठाने कहते। बच्चे उन्हें उठाते और लुत्फ भी उठाते। वर्णों को ब्लैक बोर्ड या कॉपी पर रखकर बच्चों को उसे बनाने के लिए कहा जाता। इस तरह वर्णो को वे अच्छी तरह सीख जाते। बड़े बच्चों को शब्दों और वाक्यों की रचना भी सीखा देते। बच्चे शब्द एवं वाक्य को लिखने में आनंद महसूस करते। उनकी जिज्ञासा बढ़ जाती। ब्लैक बोर्ड पर लिखवाने से उनका आत्मविश्वास बढ़ जाता।
कठिन से कठिन चीजों को सहज ढंग से सिखा दिया जाता। उदाहरण स्वरूप-Action is a verb and verb is an action. 
Jumping is an action and jumping is a verb. 
Dancing is an action and dancing is a verb.
Writing is an action and writing is a verb.
        बच्चों को सिखाने में मैडम काफी मेहनत करतीं। बोलकर प्रॉपर एक्शन (Proper Action) करतीं। उनके  पीछे-पीछे (Follow ) बच्चे करते। फिर मैडम व्यक्तिगत तौर पर भी एक्शन करवाते। यह सब करवाने के लिए तीन अलग-अलग आनंददायक कक्ष थे। प्रीपोजिशन जैसे गुढ़ विषय को भी up, down, in , on, of, by  आदि को टीपीआर (TPR-Total Physical Response) से सिखा देते। अंग के नाम तो आसानी से सिखा देते।
   I can hear with my ears. 
   I can see with my eyes….
         शब्द एवं वाक्य सिखाने के उनके पास एक अलग ही तरकीब थी। 
ab, ac, ad, af, aj, al,    ak, am, an, at, as, ag
…………………………
ca ba da fa ha ra ta pa
ka ma na za sa la ya wa
……………………………..
be ce re te pe se 
fe ge he ke le be ne me
………..
li ti ri pi mi ni gi ki 
hi bi vi di si wi ci di
……….
lo ho bo no mo go do
You do to wo so ko co 
…………
up un um us ut us 
ur uf uc uz us up
…. ………………. .       
Ba Bat Bata Batan Banana 
Ra Rat Rata ratan Ratana
Ma Mat Mata Matan Matana इसे बोल-बोल कर पढ़ने लिखने के लिए आसानी से सिखा दिया जाता।
      बबली के परीक्षा में एक इंटरेस्टिंग सवाल आया था।
How many black boards are there in your school ? Answer: There are ten white boards in my school.
      जवाब से मैडम काफी प्रभावित हुई क्योंकि स्कूल में ब्लैकबोर्ड तो थे ही नहीं। दस व्हाइट बोर्ड जरूर थे। मैडम ने प्रिंसिपल साहब को कॉपी दिखायी। उन्होंने विशिष्ट उत्तर पर शत-प्रतिशत मार्क्स देने का निर्देश दिया। प्रिंसिपल साहब एक दिन पापा को बता रहे थे। आपकी बच्ची असाधारण है। उन्होंने एक सवाल बबली से ऑफिस में पूछ लिया,” बेटा, What is leap year ? Answer: This is lip and this is ear. वे होंठ और कान को छूकर बतायी। प्रिंसिपल साहब हंसने लगे और उन्होंने उसे फिर लीप ईयर का मतलब समझाया। प्रिंसिपल साहब बबली और बंटी को बहुत प्यार करते थे। छुट्टी होने के बाद उसे कभी केले, कभी अमरूद, कभी सेब आदि दिया करते थे ।
     अल्मा मैटर में भाषा और गणित पर विशेष ध्यान दिया जाता था। गणित सिखाने के लिए गिनतारे, तरह- तरह के गेंद, गोलियां, व्यापारी, दीवारों पर वर्ग में छोटे-छोटे वर्ग, तालीमी तास, शैक्षणिक लूडो, शतरंज, हाॅजी कार्ड आदि इस्तेमाल किए जाते। दरअसल, विद्यालय पांचवी कक्षा तक ही थी। पेंटिंग्स, मेहदी प्रतियोगिता, गाने, बच्चों के सपनों का खेल- मिस इंडिया, वकील, जज, गायक, संगीतकार आदि का प्रदर्शन भरपूर करवाया जाता। बबली ने भी एक बार एप्रोन पहनकर डॉक्टर का रोल किया था। प्रिंसिपल साहब महान विभूतियों की पुण्यतिथि, राष्ट्रीय पर्व और महत्वपूर्ण तिथियों के अवसर को  समारोह में बदलने से नहीं चूकते। वे पैरंट्स डे और शैक्षिक गतिविधियों तथा कामयाब लोगों के व्याख्यान के मौके पर अभिभावकों को आना सुनिश्चित करते, जिसमें चाय, नाश्ते की व्यवस्था अवश्य होती और बच्चों के लिए मिठाई। अभिभावकों से आयोजन के पैसे निकलवाने में प्रिंसिपल साहब कलाकार थे। सैटरडे, संडे एवं छुट्टियों के दिनों में कुछ अभिभावकों, दोस्तों से जरूर मिलते, सलाह देते और सलाह लेते थे।
बबली तीसरी कक्षा में अच्छे अंको से पास की। मां-बाप प्रगति पत्रक देखकर काफी खुश हुए। सब कुछ ठीक चल रहा था। मां की जिद्द पर एडमिशन चौथी कक्षा में एक इंग्लिश कॉन्वेंट में करा दिया गया। वहां टेस्ट के आधार पर एडमिशन हुआ था। अच्छा-खासा पैसा भी खर्च हुआ। शर्ट, पैंट, टाई, बेल्ट, बैग, किताब, कॉपी आदि मोटी रकम लेकर स्कूल में ही दिया गया था। पापा ने अल्मा मैटर के प्रिंसिपल दोस्त रईस साहब से पत्नी का हवाला देकर मआज़रत कर ली। इंग्लिश कॉन्वेंट की पढ़ाई बड़ी बोझिल थी। किताबों के शब्द बच्चों के दिमाग के ऊपर से चली जाती । यहां तक की पांचवीं की किताब चौथी में चलाए जा रहे थे, अलग-अलग प्रकाशन और अलग-अलग किताबें। किताबों का चयन बच्चों के लिए अपेक्षित स्तर से ऊपर था। वहां सबक को याद कराने पर काफी जोर दिया जाता था। डायरी पर काफी होम टास्क लिख दिए जाते थे। कुछ प्रश्नों के उत्तर कॉपी में उतरवा दिए जाते थे और उसे स्मरण (Get  by heart) कर घर से लाने के लिए कहा जाता। प्रश्नों के हल कराने के लिए बबली के भारतीय अंग्रेज मॉम ने एक टीचर घर पर ही रख लिया और माॅम ‘गेट बाई हार्ट’ कराने में लगी रहती। 
प्रत्येक माह प्रोग्रेस रिपोर्ट मां-बाप को बुलाकर दिखाए जाते। प्रोग्रेस रिपोर्ट खराब रहने पर टीचर ही अभिभावक को घर पर ध्यान देने के लिए कहते। उल्टे उन्हे ही बात सुननी पड़ती। टास्क बनाकर नहीं लाती। याद करके नहीं आती आदि आदि। बबली के कॉपी पर लाल कट-कुट के निशान (Cross Marks )  मानो, उसके मानस पटल पर असहनीय पीड़ा दे रहे हों। बबली का प्रोग्रेस रुक- सा गया। बबली के चेहरे की किताब पापा ने आसानी से पढ़ ली। उन्होंने उसके मां से लड़-झगड़ कर उसे एक अच्छे बाल लुभावन और मेहनतकश शिक्षकों से भरा विद्यालय में करा दिया, जो न विद्यालय का ही रूप था और न ही उसे कोचिंग कहा जा सकता है।  प्रिंसिपल साहब बड़ा खुश मिजाज थे। एडमिशन पापा के दोस्त ने, जो प्रिंसिपल साहब के दोस्त भी थे; उन्होंने ही करवाया था। वहां उसे  शैक्षणिक वातावरण अच्छा मिला। वहां सैनिक स्कूल, नेतरहाट, रेड हिल, ग्रीन हिल, वनस्थली, जे एन वी, स्पोर्ट्स विद्यालय, प्योर लैंड और ह्वाइट हिल जैसे ख्यातिलब्ध विद्यालयों में एडमिशन के लिए  तैयारी करवाई जाती थी। बबली की अनेक सहेलियां बन गईं। इसका भी मिजाज प्रतिस्पर्धी बन गया। कभी-कभार पापा भी और अच्छे विद्यालय में दाखिले के लिए परीक्षा दिलवाया करते।

-मो. जाहिद हुसैन

लेखक
” शिक्षण तकनीक की रूपरेखा”

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