अंग्रेजी शिक्षा का खालीपन : डॉ स्नेहलता द्विवेदी आर्या

सुरेश बहुत खुश था। पिता बनने के सुख की अनुभूति से आह्लादित वो फुले नहीं समा रहा था। बार-बार भगवान को धन्यबाद देता हुआ वो कभी अपनी पत्नी तो कभी नवजात बच्चे को निहार रहा था। अस्पताल के नर्स और आई को उसने मालामाल कर दिया। पत्नी के चेहरे पर के संतोष ख़ुशी और आनंद की आभा को भी महसूस कर आनंदित था।
कुछ देर बाद वार्ड से डॉक्टर के निर्देश से वार्ड बॉय ने सुरेश और अन्य को बाहर जाने को कहा। सुरेश बाहर खुले इलाके मे बरामदे के पास एक स्टील वाली कुर्सी पर बैठ गया सुरेश की माँ अपनी बहु आरती के साथ वार्ड में ही रुकी रही।
सुरेश बैठा – बैठा सपना बुनने लगा।वो सोचने लगा कि अपनी बेटी को बहुत अच्छी तरह पालेगा और अच्छी शिक्षा देगा। उसने संकल्प लिया कि उसे जो कमी हुई कम से कम अपनी बच्ची को नहीं होने देगा।फिर अपनी जीवन यात्रा मे खो गया।

बचपन से ही सुरेश कुशाग्र बुद्धि का था। उसके माता पिता ने नर्सरी,केजी से क्रमशः उसकी शिक्षा अंग्रेजी माध्यम के विद्यालय मे करवाई थी अर्थात वो कान्वेंट से पढ़ा लिखा आधुनिक परिवेश का युवक था।फिर उसे विचित्र खालीपन की अनुभूति होती थी। वो अंग्रेजी की चमक में अपने को ठगा महसूस करता था।फिर उसे लगता था कि आखिर उसकी रोजी रोटी तो अंग्रेजी के कारण ही है अस्तु अंग्रेजी को बेकार कह पाने कि स्थिति मे अपने को नहीं पा रहा था।लेकिन पढ़ाई मे जो दर्द उसे सालता रहा वो पढ़ने महसूस करने और चरितार्थ करने के बीच का अंतर।जिस के कारण उसने अपना पसंदीदा बिषय गणित नहीं पढ़ पाया। इस कारण सुरेश बिलकुल असहज रहता था और अपनी शिक्षा के प्रति असंतुष्ट था।तो उसका बिचार कि अपनी बच्ची को उसकी संतुष्टि तक वैसी शिक्षा देने का प्रयास करेगा जो उसके अंतर्मन को छू पाये और अभिव्यक्ति निश्चित रूप से स्वतंत्र निर्बाध और भावगम्य हो।सुरेश को हमेशा अंग्रेजी पहनी ओढ़ी हुई भाषा लगती रही जिसमे उसने कभी सहज महसूस नहीं किया। लेकिन आरती का क्या रुख होगा? सुरेश के सामने यक्ष प्रश्न था.. सुरेश अपने ख्यालों मे खोया था..

क्या बात है भाई साहब.. बहुत चिंतित हैं…
अरे नही बैठे बैठे ध्यान ही नही रहा..
कौन भर्ती हैं..?
मेरी पत्नी..
क्या खबर है?
बेटी हुई है.
अच्छा इसलिए उदास है क्या.?
नही नहीं ये तो मेरा सौभाग्य है.. बहुत ही प्यारी बेटी है.. मैं तो उसके शिक्षा की बात सोचने लगा..
अच्छा.. तो क्या सोचे..?
यही सोच रहा था कि शिक्षा मातृ भाषा मे अच्छी होगी या अंग्रेजी मे..?
क्या आप अपने लोगों से अंग्रेजी मे बात करते है.?
ये क्या बात हुई.. मैं अपनी भाषा मे बात करता हूँ..अर्थात.. हिंदी मे..
इसका मतलब हिंदी मे बात करने के लिए आपको अतिरिक्त जोर नहीं लगाना पड़ता हैं..
नही..
तो हिंदी मे आप ज्यादा सहज है..
जी ये यह भी कोई बात है.. हिंदी मे मैं बचपन से ही बोलता रहा हुँ..
तब अंग्रेजी में बोलकर क्या हासिल होता है.. और उसे कितना लोग समझते है?
वो तो मैं भी समझ रहा हुँ लेकिन अंग्रेजी के विशिष्ट प्रभाव से हम लोग मुक्त नहीं हैं..
क्या आप अपनी शिक्षा से संतुष्ट है? इसबार हरि ने सुरेश से जोर देकर पूछा
कौन संरतुष्ट है भला..
क्यों?
मुझे लगता है कि अंग्रेजी सीखा तो जरूर लेकिन उस को आत्मसात नहीं कर पाया..
तो शिक्षा जो व्यक्ति का निर्माण करती है उसके लिए स्वतः भावगम्य शिक्षा का कोई माध्यम हो सकता है तो मातृभाषा ही हो सकती हैं..
सुरेश शायद यही सोच रहा लेकिन सामाजिक ताने बाने मे वो निर्णय को स्वीकार करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था.!
तभी नर्स आई.. सर आपको डॉक्टर साहब बुला रहे है..

डॉ स्नेहलता द्विवेदी आर्या

उत्क्रमित कन्या मध्य विद्यालय शरीफगंज, कटिहार

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