भूमिका: भाषा न केवल संवाद का माध्यम है, बल्कि संस्कृति, ज्ञान और विकास का सेतु भी है। भारत जैसे बहुभाषी देश में जहाँ मातृभाषाओं की विविधता है, वहीं अंग्रेज़ी भाषा ने एक अंतरसंपर्क सूत्र के रूप में स्वयं को स्थापित किया है। आज के वैश्वीकरण और डिजिटल युग में अंग्रेज़ी केवल एक भाषा नहीं, बल्कि ज्ञान, रोजगार और वैश्विक मंच पर पहचान की कुंजी बन चुकी है। इस निबंध में हम अंग्रेज़ी भाषा की भाषा-शिक्षण क्षेत्र में सार्थकता का विश्लेषण करेंगे।
1. वैश्विक संप्रेषण का सशक्त माध्यम: अंग्रेज़ी आज विश्व की संपर्क भाषा बन चुकी है। यह संयुक्त राष्ट्र, अंतरराष्ट्रीय व्यापार, विज्ञान, तकनीक, पर्यटन और उच्च शिक्षा में मुख्य रूप से प्रयुक्त होती है। विद्यार्थियों को अंग्रेज़ी सिखाकर हम उन्हें वैश्विक संवाद की शक्ति प्रदान करते हैं।
2. ज्ञान और सूचना तक पहुँच का द्वार: विश्वविद्यालयों, शोध संस्थानों तथा इंटरनेट पर उपलब्ध अधिकांश सामग्री अंग्रेज़ी में होती है। अंग्रेज़ी भाषा सीखकर विद्यार्थी वैश्विक ज्ञान भंडार तक पहुँच बना सकते हैं। यह भाषा उन्हें सूचना युग में सशक्त बनाती है।
3. उच्च शिक्षा व प्रतियोगी परीक्षाओं में उपयोगिता: IIT, UPSC, TOEFL, IELTS, GRE जैसी परीक्षाओं में अंग्रेज़ी की समझ एक अनिवार्य आवश्यकता है। विदेशी विश्वविद्यालयों में दाख़िला पाने और शोध में आगे बढ़ने के लिए अंग्रेज़ी का ज्ञान अपरिहार्य बन गया है।
4. रोजगार और व्यवसायिक सफलता की आधारशिला: MNCs, मीडिया, बैंकिंग, BPO, पर्यटन, तकनीकी क्षेत्र और शिक्षा में अंग्रेज़ी दक्षता आज एक मानक योग्यता बन चुकी है। अंग्रेज़ी का ज्ञान छात्रों को रोजगारोन्मुखी और व्यावहारिक रूप से सक्षम बनाता है।
5. व्यक्तित्व विकास और आत्मविश्वास में वृद्धि: अंग्रेज़ी के माध्यम से संवाद कौशल (communication skills), प्रस्तुति कौशल (presentation skills), और आत्म-विश्वास में अभूतपूर्व सुधार होता है। यह भाषा उन्हें बहुभाषी और बहु-सांस्कृतिक संदर्भों में काम करने योग्य बनाती है।
6. भाषा शिक्षण में समावेशी दृष्टिकोण: अंग्रेज़ी को केवल रटने की भाषा न मानकर, संवाद और अनुभव आधारित शिक्षण शैली से जोड़ा जाए तो यह विद्यार्थियों को रचनात्मक, विवेकशील और भावनात्मक रूप से समृद्ध बनाती है। शिक्षक यदि स्थानीय भाषा के साथ अंग्रेज़ी को पूरक बनाएं, तो यह शिक्षा की गुणवत्ता को समृद्ध कर सकती है।
निष्कर्ष: अंग्रेज़ी भाषा का शिक्षण केवल एक पाठ्यक्रमीय आवश्यकता नहीं, बल्कि समग्र विकास की दिशा में एक सशक्त माध्यम है। यह विद्यार्थियों को न केवल रोजगार, शिक्षा और संवाद में समर्थ बनाती है, बल्कि उन्हें वैश्विक नागरिक के रूप में सशक्त करती है। अतः भाषा शिक्षण में अंग्रेज़ी की सार्थकता निर्विवाद है और इसे संतुलित, संवादात्मक और समावेशी दृष्टिकोण से अपनाना ही आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है।
सुरेश कुमार गौरव, प्रधानाध्यापक
उ.म.वि.रसलपुर, फतुहा, पटना (बिहार)