(संज्ञानात्मक विकास एवं शिक्षा-3)
व्हाइट हिल प्रकृति की गोद में बसा एक अनोखा विद्यालय है जहां सह-संज्ञानात्मक क्रिया पर जोर देकर बच्चियों में जिम्मेदारी, रचनात्मकता और नेतृत्व क्षमता का विकास किया जाता है। यहां बच्चों में सर्वांगीण विकास के लिए उचित वातावरण है।
बबली के दो पक्की सहेलियां थीं-आकांक्षा और सृष्टि। दोनों के पापा ने दार्जिलिंग के ‘व्हाइट हिल’ नामक विद्यालय में दाखिला के लिए फॉर्म भरवाया। यह भी सहेलियों के साथ व्हाइट हिल जाना चाहती थी। वह पापा से कह कर फॉर्म भरवाई। तीनों अपने पापा के साथ दार्जिलिंग गई, जहां व्हाइट हिल में बिना टेस्ट दिए ही तीनों का एडमिशन चौथी क्लास में आसानी से RTE- 2009 अधिनियम के तहत लॉटरी सिस्टम से हो गया। व्हाइट हिल अंग्रेज के जमाने का एक भव्य गर्ल्स स्कूल है, जिसकी इमारतें ईंट-पत्थरों और सखुए की लकड़ियों से बने हुए हैं । कॉमन रूम, स्टडी रूम, डायनिंग हॉल, हॉस्टल, नाट्यशाला और तीन बड़े खेल का मैदान, खूबसूरत प्रकृति की गोद में पाइन ट्री के बीच पत्थरों से बने बांडरियों से घिरा विद्यालय खुशनुमा एहसास दिलाते हैं। यह न तो ‘तोत्तो-चान के तोमोए गाकुएन’ जैसा है और न ही ‘ समरहिल ‘की तरह। व्हाइट हिल स्कूल कुछ अलग ही है । यहां प्रयोगशाला, योगशाला, कंप्यूटर, पुस्तकालय, प्रकृति की गोद में स्वाध्याय और कॉमन रूम में टीवी की व्यवस्था भी है । वर्ग-कक्ष से होस्टल तक जाने के लिए सखुए और टीन के शीशे लगे शेड की सुविधा है ताकि किसी भी मौसम में हॉस्टल से डायनिंग हॉल और वर्ग-कक्ष में आने जाने में परेशानी न हो। कैंपस में एक हॉस्पिटल भी है, जहां डॉक्टर सप्ताह में कम से कम एक बार बच्चों का मेडिकल चेकअप जरूर करते हैं। विद्यालय प्रशासन बिल्कुल टाइट है। न किसी को बाहर निकलने की इजाजत होती है और न बाहर से किसी व्यक्ति को अनाधिकार अंदर आने की इजाजत होती है। बच्चियों को सिर्फ और सिर्फ माता-पिता ही छुट्टियों में रिसीव कर ला सकते हैं।
एडमिशन के बाद पहली बार जाने पर तकिया, तोशक, रजाई ,बेडशीट,अनेक तरह के कपड़े, गर्म सूट, शॉर्ट कोट, लौंग कोट और रेनकोट आदि इस तरह बना कर दिए जाते हैं, जैसे कि बेटी की विदाई कर रहे हैं। टॉयलेट्री और स्टेशनरी के समान तो आवश्यक हैं ही। बीच-बीच में विभिन्न आयोजनों हाउस टी, इंटर स्कूल स्पोर्ट्स, एनुअल स्पोर्ट्स, सेलिब्रेशन, सांस्कृतिक कार्यक्रम, कंसर्ट और टूर आदि के विभिन्न तरह के ड्रेस स्कूल द्वारा दिए जाते हैं। ₹2500 पॉकेट मनी ली जाती है। लड़कियां लोकल गार्जियन और डे स्कॉलर सहपाठी से कोई जरूरत की चीजें मंगवा लेतीं। किसी को अपने पास पैसे रखने की इजाजत नहीं है वहां। लॉन्ड्री में कपड़े धुलने की व्यवस्था है। प्रत्येक दूसरे दिन बेड-शीट बदल दिए जाते हैं। हॉस्टल में बेड के पास ही प्रतिदिन की जरूरत के सामान रखने के लिए अलमीरा होता है। दीवारों के ऊपर पूर्व व्हाइट हिलियन की पेंटिंग्स और कोलाज टंगे होते हैं। स्पोर्ट्स शू, स्कूल शू और गैम बूट बाहर के अलमारी में रखे जाते हैं। वार्डेन टाइट फिटिंग होती हैं,जो बच्चों की हर गतिविधियों पर नजर रखती हैं। रात में गपशप नहीं, कोई बकझक नहीं। मिस मगरांती बहुत टाइट हैं। मिस भाग्या तमांग थोड़ी सॉफ्ट हैं और वे वार्ड में टास्क बनाने में काफी हेल्प करतीं हैं। वह अच्छी पढ़ी-लिखी हैं। वे कंप्यूटर क्लास भी लिया करतीं हैं। मिस भाग्या तमांग बच्चियों की अठखेलियां के लिए तो नहीं डांटती, लेकिन बच्चियां यदि सेल्फ स्टडी न करें और टास्क कंप्लीशन पर ध्यान न दें तो उसे जरूर डांट पिला देती, लेकिन बच्चियों से प्यार भी बहुत करती।
वहां सेल्फ स्टडी और सेल्फ टास्क कंप्लीशन पर अधिक ध्यान दिया जाता है। चिप्स और डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ लाने की सख्त मनाही है। यहां तक की अभिभावक को भी दो-तीन महीने में मिलने दिया जाता है।
व्हाइट हिल में सिंगिंग प्रयोगिता, सेमिनार, भाषण प्रतियोगिता, डिबेट, ग्रुप डिस्कशन और एक्शन एंड ड्रामा आदि भरपूर करवाए जाते हैं। इससे बच्चों में सर्वांगीण विकास होता है। यह तन मन को तरोताजा रखता है। पाठ्यक्रम को बच्चियाँ हंसते-खेलते पूरा कर लेते हैं क्योंकि पाठ्यक्रम की मांग की पूर्ति के लिए सह- संज्ञानात्मक क्रिया (Co-scholastic activity ) बहुत कारगर होती है। पाठ्येत्तर क्रियाकलाप बच्चियों में जिम्मेदारी, सृजनशीलता और नेतृत्व की भावना जागृत करती है जो जीवन में हमेशा काम आते हैं। करीब-करीब सारी बच्चियां अंग्रेजी धाराप्रवाह बोलती हैं। पूरे कैंपस में अंग्रेजी बोलने पर ज्यादा जोर दी जाती है और अंग्रेजी में ही बातें करने की हिदायत है। फिर भी वहां विभिन्न प्रदेशों से आए हुए बच्चियाँ जब अपनी भाषा में सहेलियों से बातचीत करते हैं तो एक-दूसरे की भाषा- बांग्ला, नेपाली और हिंदी आसानी से प्रैक्टिकली सीख लेती हैं। यह एक प्लस पॉइंट है। यह सारी शैक्षिक एवं शैक्षणिक गतिविधियां पूरी तरह से पाठ्यचर्या एवं पाठ्यक्रम के अनुरूप होती हैं। सभी शिक्षकों की शिक्षण प्रक्रिया अलग-अलग होती हैं। ज्यादातर शिक्षक तो पढ़ना को खेलना ही बना देते हैं। इस तरह पढ़ाते हैं कि शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में अधिक भागीदारी बच्चों की ही होती है। छात्राएं पेंटिंग, कोलाज, मॉडल और अन्य क्राफ्ट बनाते हैं एवं परियोजना कार्य करते हैं। बच्चियां पाठ्यपुस्तक के गद्य- पद्य में दिए गए प्रश्नों से इतर प्रश्नावली स्वयं बनाते हैं और स्वयं उसका उत्तर लिखते हैं। फिर अपने शिक्षक को दिखाकर उसे सही करवाते। प्रश्नों का उत्तर देना आसान है लेकिन प्रश्नों का बनाना कठिन है। वे लोग पाठ को पढ़तीं और शिक्षक की मदद से स्वयं प्रश्नावली बनाते हैं। वस्तुनिष्ठ प्रश्न बनाने पर ज्यादा जोर दिया जाता है, क्योंकि इससे एक-एक पंक्ति को पढ़ने से ज्यादा लाभ होता है। शिक्षक बच्चों को असाइनमेंट देते और नये-नये आइटम डेवलप कर उनका आकलन भी करते रहते हैं। टीवी पर प्रसारित विद्वानों के क्लास को प्रतिदिन दिखाया जाता है। यहां स्मार्ट क्लासेस अद्भुत हैं। स्मार्ट क्लास के बाद शिक्षकगण एवं बच्चे बड़े हॉल में बैठकर इस पर परिचर्चा करते हैं। यह सीखने सिखाने की बहुत अच्छी तकनीक है।
पुस्तकालय की गतिविधियां अधिगम का बेजोड़ केंद्र है। बच्चियां वहां अपनी पसंद के पुस्तकें पढ़ती हैं और अपनी सहेलियों से चर्चा भी करती हैं। पुस्तकालयाध्यक्ष कुछ ऐसे मानसिक एवं शारीरिक क्रियाकलाप करवाते हैं कि बच्चियों का भाषा-कौशल एवं सामान्य ज्ञान बेहतर हो जाता है। हाउस के 15-15 बच्चियों के व्यक्तिगत साक्षात्कार लेकर क्वीज के लिए चुना जाता है। हाउस के अनुसार चार टीम बनाई जाती है और क्वीज प्रतियोगिता करवाई जाती है, जिसमें सामान्य ज्ञान के प्रश्न पूछे जाते हैं। वर्ग-कक्षों के अनुसार भी विषयगत प्रतियोगिता की व्यवस्था होती है, जिससे बच्चों के पाठ्यक्रम के सवाल भी हल हो जाते हैं। प्रथम, द्वितीय और तृतीय स्थान प्राप्त करने वाले को ढेर सारे इनाम दिए जाते हैं। पुस्तकालय में बच्चियाँ जो कहानी, कविता और नाटक पढ़ते हैं उसे पुस्तकालयाध्यक्ष दूसरे विधा में रूपांतरित करवाते हैं, जिसमें काफी मेहनत की जरूरत होती है। यदि कोई कहानी पढ़ी गई है तो उसे कोई बच्ची खड़े होकर उसे सभी बच्चियों को सुनाते हैं। दूसरे भाषाओं में भी अनुवाद करवाये जाते हैं। वे दूसरी भाषा में कुछ कहानियों को सुनाते हैं। लाइब्रेरियन साहब को इस कला में महारत हासिल है। वे कहानी को कविता में और कविता को कहानी में रूपांतरित करवाते हैं। नाटकों को कहानी तो कहानी को नाटक के रूप में रूपांतरित कर लिखवा देते। संवाद लेखन बच्चे इस तरह करते हैं, जैसे- सभी सलीम, जावेद और मासूम रजा ‘राही ‘ तथा कादर खान हो गए हों। स्वरचित कविता या कहानी का पाठ भी करवाया जाता। मिस मुखिया बच्चियों को साझी समझ बनाकर नाटक रचने की कला सीखाती। रंग-मंच पर इसका मंचन भी करवाया जाता। नाटक का रिहर्सल कला में दक्ष एवं पारखी शिक्षकों के निर्देशन में करवाया जाता। वहां बच्चियाँ हास्य- व्यंग, प्रहसन और विभिन्न प्रकार के प्रदर्शन का लूत्फ उठाते। व्हाइट हिल में दृश्य कला (Visual Art), प्रदर्शन कला (Performing Art) और साहित्य कला (Literary Art), तीनों पर बराबर ध्यान दिया जाता है जो अधिगम में चार चांद लगाने का काम करते हैं। फिर बच्चियां दोगुने उर्जा से आगे सीखने का काम करते हैं।
स्कूल क्रीडा-आधारित है। यहाँ गर्ल्स रिप्रेजेंटेटिव टीम का गठन भी जबरदस्त है, जिसकी जिम्मेदारियां भी काफी होती हैं। गर्ल्स रिप्रेजेंटेटिव हाउस को व्हाइट हाउस के नाम से जाना जाता है। व्हाइट हाउस के प्रधान हेड गर्ल होती है। फिर उसके वॉइस हेड गर्ल (Head Girl) होती है। गेम्स कैप्टन और वॉइस गेम्स कैप्टन उसके अंतर्गत आते हैं। व्हाइट हाउस जो पूरे स्कूल को रिप्रजेंट करता है। यह एग्जीक्यूटिव कमिटी की तरह काम करता है। इसके मातहत चार हाउस हैं–टैगोर, अरविंदो, नायडू और अशोका। सभी के अलग-अलग ड्रेस होते हैं। क्रमशः हरा, पीला, लाल और आसमानी हैं। सभी हाउस के अलग-अलग कैप्टन और वाइस कैप्टन होते हैं। चारों हाउस का गठन छठी से दसवीं क्लास के बच्चियों को मिलाकर बनाए जाते हैं यानी कि सभी हाउस में सभी वर्गों की बच्चियां होती हैं। दरअसल यह हाउस का गठन खास मौके के लिए किया जाता है- स्पोर्ट्स एंड गेम्स, कल्चरल प्रोग्राम और अन्य स्कूल प्रोग्राम। हाउस को ट्रॉफी और व्यक्तिगत तौर से प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ी को गोल्ड, सिल्वर और ब्रोंज मेडल दिए जाते हैं। पूरे हाउस में बेहतरीन प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ी को सर्वश्रेष्ठ अवार्ड दिया जाता है जो अलग होता है। व्हाइट हाउस सभी हाउस का सिरमौर है। अतः इसकी भूमिका अहम है। वे अपने-अपने हाउस से ज्यादा पूरे स्कूल के इवेंट्स की देखरेख करते हैं। उसकी जिम्मेदारी प्रत्येक चीजों में वेस्ट देना और करना है। प्रिंसिपल-टीचर्स के परामर्श समिति में हेड गर्ल सदस्य होती है, जो बालिकाओं की प्रतिनिधित्व करती हैं और उनके समस्याओं से अवगत कराती हैं। चूंकि हेड गर्ल बबली है, इसलिए प्राचार्या सागरिका दत्ता इससे परामर्श एवं कॉन्फिडेंशियल जानकारी लेती हैं।
गेम्स टीचर रिचा बाला छेत्री, जो बहुत हंसमुख, चंचल एवं मिलनसार टीचर हैं। वह तो लगती ही नहीं हैं कि कोई गेम्स टीचर हैं। वे बच्चियों से सहेली की तरह पेश आती है। हंसी-हंसी और प्यार प्यार में ही लड़कियों से अभ्यास करवा लेती हैं। यह उनकी बहुत बड़ी खूबी है। वॉलीबॉल में बबली, राय सरदार और सूचना नियोगी अग्रणी खिलाड़ी हैं। दौड़ में रश्मि दाम थोड़ा बहुत बबली को टक्कर दे पाती है। बैडमिंटन में विनीता यूमा राय और एंजेल योलमो का कोई जवाब नहीं।
लड़कियां जब भी इंटर-स्कूल गेम्स या इंटर-स्टेट गेम्स खेलने जाते हैं- चाहे दार्जिलिंग सिटी हो या कलिंगपोंग या फिर सिलीगुड़ी या गंगटोक, जाते समय बस में खूब धमाल मचाती हैं। फिल्मी गाने गाते और अंताक्षरी खेलते। कारण कि स्कूल कैंपस में उन्हें धमाल करने को तो मिलता नहीं। विद्यालय में सिर्फ शाम में न्यूज़ और एक-आध फिल्म ही देखने की इजाजत होती है। वे गाना गाकर कुर्सियों (Seats ) को इस तरह बजाते कि जैसे उन्हें तोड़ ही डालेंगे। गेम्स टीचर को तो वे लोग मिला ही लेतीं और रिया बाला छेत्री भी धमाल में शामिल हो जातीं। व्हाइट हिल का प्रतिदिन का शेड्यूल जरा सख्त है। इसके निम्नलिखित रूटीन हैं-
Time
Work (Mon to Fri)
5:am
wake up, fresh up and get ready in track suit.
5:15 to 6:00
revise your chapters and prepare yourself for better performance in class every day.
6:00 to 7:00
morning walk and games.
7:00 to 7:30
Get ready in school uniform.
7:30 to 8:00
Revision (Self study)
8:00 to 8:30
breakfast.
8:45
Assembly.
9:00
Class begins.
10:20
Milk break.
10:45
Classes resume.
12:00
Lunch.
12:45
Classes resume.
3:10
Class ends.
3:10
Go to hostel/dormetiry and change your uniform track suit
3:30
Tea and snacks.
4:00 to 5:00
Games (free time)-Draw, Study and talk
5:00 to 7:00
Study hours in study hall under the guidance of a teacher on duty, complete your task.
7:00 to 7:30
Dinner
7:30
dormetory (Night suit, Brush and Fresh)
8:00 to 9:00
Self study
9:15
Go to sleep.
यहां मशहूर प्रार्थना यह गाई जाती-
Our Father, Who art in heaven,
hallowed be thy Name,
thy kingdom come,
thy will be done ,
on earth as it is heaven,—————————— व्हाइट हिल स्कूल का अपना एक सॉन्ग है, जिसे स्पोर्ट्स एंड गेम्स कंसर्ट, स्कूल फंक्शन या कोई विशिष्ट अतिथि के आगमन पर विद्यालय के परिचय के रूप में गाया जाता है। यह एक तराना है जो इस प्रकार है-
White Hill to thee we hymn praise
We are enjoying to full days
All are happy in the school In the Hill we , all are in cool
Centre of knowledge, strength and power
Charming on the face as forever hour
We are glad to hear humming bees
humming echoes on the morning breeze
पीटी में अक्सर बबली ही लीड करती। वह बैडमिंटन, वॉलीबॉल और फुटबॉल खेलने में दक्ष थी, लेकिन दौड़ना बबली का जुनून था। जैसे-जैसे क्लास बढ़ता गया। विद्यालय में इसकी लोकप्रिय बढ़ते गई। जब वह सातवीं क्लास में थी तो पूरे दार्जिलिंग में 800 मीटर की दौड़ में प्रथम स्थान प्राप्त कर ली। वह स्टार बन गई। पूरे विद्यालय के शिक्षक एवं बच्चे उसे बहुत प्यार करते। कलिंगपोंग स्पोर्ट्स मीट में उसने पूरे दार्जिलिंग में दौड़ने में 33 साल का रिकॉर्ड तोड़ दी। अब उसे पूरे स्कूल का हेड गर्ल बना दिया गया। खेल के साथ- साथ एकेडमिक इंप्रूवमेंट भी अच्छा था। दसवीं सेंट अप होने के पहले एनुअल स्पोर्ट्स मीट फंक्शन में चीफ गेस्ट सी एम साहबा के सामने मार्च पास्ट करने का मौका मिला। तब वह पूरे हाउस को लीड कर रही थी। छोरी का नाम और तस्वीर सभी अखबारों में छपी। व्हाइट हिल से फर्स्ट डिवीजन 96% मार्क्स से मैट्रिक पास हो गई। अभी कोलकाता के एक इंग्लिश कॉन्वेंट में पढ़ रही है। वह अब बंगला, हिंदी, नेपाली और अंग्रेजी धड़ल्ले से बोलती है।
संदर्भ: मो.ज़ाहिद हुसैन,शिक्षण
तकनीक की रूपरेखा,रेड शाइन
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