- सृजन का विस्तार है तू *
नारी हूं बलवान हूं, धरती की शान हू मैं।
महावारी मेरा जीवन चक्र,सृजन का विस्तार है
मासिक धर्म नारी की पहचान,छूत अछूत की परम्परा हूं।
चांद की शीतलता मुझमें,तेज ऊष्मा का प्रवाह हूं।
दर्द मे हूं, तभी अलग हूं, भू -धरा पर पड़ी हूं।
कुछ दिनों का ये सफर,अगले माह फिर से आएगा
मेरी पहचान बनकर।
काल के कपाल पर, मासिक धर्म का आगाज हूं।
ज्ञान हूं -विज्ञान हूं, स्वच्छता की पहचान हूं।
पूजी जाती हूं सभी जगह,
कभी देवी कभी दूर्गा, सरस्वती ,
यही मेरी पहचान है, यही मेरा विस्तार है ।
महावारी* एक संसकार है मेरी जिसमें –
नियम है , संयम है ।सभ्यता और संस्कृति का विस्तार है।
जीवन के इस चक्र मे दर्द है ,छूत अछूत के बन्धन मे
एक मुस्कुराहट है मुझमें कि सृजन का श्रृंगार हूं मैं
नारी हूं औरत हूं धरती की शान हूं , काल के तीनों खंड में युद्ध मैदान में विराजमान हूं।
Shanker Kumar Ram