लघुकथा शहर कई दिनों से अशांत है। लोगों में नफ़रत और भय का माहौल है।कल तक जो लोग आपस में गले मिला करते थे, आज एक दूसरे की गर्दन काटने… मैं ही देश हूँ – संजीव प्रियदर्शीRead more
Category: लघुकथा
कहानी – संस्कृति चौधरी
कहानीदरभंगा जिले में एक देवेश नाम का बालक रहता था। वह अपनी दादी से बहुत प्यार करता था। और दादी भी देवेश पर खूब स्नेह लुटाती थी। दादी देवेश को… कहानी – संस्कृति चौधरीRead more
स्वभाव – मुकेश कुमार मृदुल
लघुकथाअपने घर के बैठकखाने में टयूशन पढ रहे सात वर्ष का लडका पढने के क्रम में रुककर बोला – “अब छुट्टी कर दीजिए सर।”‘क्यों ?’ शिक्षक ने पूछा।सर अभी मेरी… स्वभाव – मुकेश कुमार मृदुलRead more
पुरस्कार के हकदार – संजीव प्रियदर्शी
लघुकथा ”गांव में जो सबसे बढ़कर धर्मनिष्ठ होगा, आज की सभा में वे ही पुरस्कार के हकदार होंगे।” ग्राम-समिति की उद्घोषणा सुनते ही रात-दिन ईश्वर नाम की माला जपने वालों… पुरस्कार के हकदार – संजीव प्रियदर्शीRead more
बोध – संजीव प्रियदर्शी
एक लघुकथा लकड़ा जेब से पिस्तौल निकालकर ज्यों ही गोलियाँ चलाता कि यकायक उसके हाथ रुक गये। यह क्या? ये तो विभाष सर हैं! भला इन्हें कैसे मार सकता है… बोध – संजीव प्रियदर्शीRead more
परिवार – संजीव प्रियदर्शी
अपनी सहेली द्वारा ससुराल के बारे में पूछे जाने पर मनोरमा बोलने लगी -‘ अरे राधा, मैं ससुराल में भले रह रही हूंँ, परन्तु यहां के लोगों का हमारे ऊपर… परिवार – संजीव प्रियदर्शीRead more
दृष्टिकोण – संजीव प्रियदर्शी
लघुकथा सुनीता अपनी ननद की लड़की की शादी में काफ़ी लल्लो-चप्पो के बाद जाने को राजी हुई थी।ननद शोभा और ननदोई सुनील शादी-विवाह का घर होते हुए भी सुनीता का… दृष्टिकोण – संजीव प्रियदर्शीRead more
कर्मों का फल – देव कांत मिश्र ‘दिव्य’
दीपू अपने माता-पिता का एकलौता पुत्र था। देखने में गोरा, लंबा और हृष्ट-पुष्ट था। उसने बी.ए. तक शिक्षा प्राप्त किया था। परन्तु उसका स्वभाव गंदा था। उसकी पत्नी रितिका एम.ए.… कर्मों का फल – देव कांत मिश्र ‘दिव्य’Read more
लाल सपना – चांदनी समर
उसकी नींद खुली तो बिस्तर पर खून के धब्बे थे। पेट में मरोड़ उठ रही थी। बड़ी मुश्किल से कराते हुए वह खड़ा हो पाया। तभी उसकी छोटी बहन तानिया… लाल सपना – चांदनी समरRead more
वचनसीमा – संजीव प्रियदर्शी
एक लघुकथा कपड़े के दो डिब्बे पति मनोहर को देती हुई बोली-‘ एक में तुम्हारी पसंद के शर्ट-पैंट हैं और दूसरे में रामू के कपड़े।’ मनोहर डिब्बों को खोलने के… वचनसीमा – संजीव प्रियदर्शीRead more