परिवार – संजीव प्रियदर्शी

Sanjiv Priyadarshi

अपनी सहेली द्वारा ससुराल के बारे में पूछे जाने पर मनोरमा बोलने लगी -‘ अरे राधा, मैं ससुराल में भले रह रही हूंँ, परन्तु यहां के लोगों का हमारे ऊपर जरा भी अहसान नहीं है। जरुरत की सारी चीजें पति और मेरे वेतन से पूरी हो जाती हैं। हालांकि ससुर जी की सालाना आय अच्छी हैं, पर वे हमारे किसी काम की नहीं।’ मनोरमा की बातें सुनकर राधा को भीतर से कुछ ठीक नहीं लगा। बात काटती हुई बोली -‘ देखो मनोरमा,अब ससुराल ही तुम्हारा अपना घर और सास-ससुर तुम्हारे माता-पिता हैं। उनके स्नेह और वात्सल्यता का तुझे इस तरह मजाक नहीं उड़ाना चाहिए।’ ‘ मजाक नहीं ,यही सच है राधा।सास-ससुर से बच्चों तक के लिए कुछ मांगने की जरूरत नहीं पड़ती और भविष्य में भी उनकी कोई आवश्यकता नहीं पड़ेगी। क्योंकि हम खुद सक्षम हैं।’-मनोरमा के एक-एक लफ्ज़ में मानो जहर घुला था,जिसे सुन राधा कुपित परन्तु गंभीर होकर पुनः बोली -‘ मनोरमा, परिवार क्या होता है, शायद इसका महत्व तुझे ज्ञात नहीं। हां,वक्त आने पर तुम जरुर सब समझ जाओगी।’ अभी मिनट भर बीता होगा कि मनोरमा का मोबाइल घनघना उठा।उधर से पति सुधीर का फोन था।रिसीव करने पर सुधीर घबराई आवाज में बोल रहा था-‘ मनोरमा,अपना राजू का एक्सीडेंट हो गया है। माँ और बाबू जी उसे एक निजी हाॅस्पिटल लेकर गये हैं,तुम शीघ्र वहां पहुंचो।’ सुधीर कलकत्ता से बोल रहा था जहां किसी बैंक में मैनेजर पद पर वह तैनात था। संवाद सुनते ही मनोरमा बुरी तरह रोने-धोने लगी। लेकिन जब राधा को मालूम हो गया कि राजू के दादा- दादी उसके पास हैं, तो वह मनोरमा को हिम्मत देती हुई बोली – तुम धैर्य बनाए रखो,राजू को कुछ नहीं होगा।’ मनोरमा जब अपने सास-ससुर को फोन लगाई तो उधर से सास बोल रही थी -‘ चिंता की कोई बात नहीं है,बहू। हालांकि राजू के बायें पैर की हड्डी टूट जाने और सिर में चोट लगने से अत्यधिक लहू बह गए हैं, पर दादा के लहू देने पर वह खतरे से बाहर आ गया है।’ घंटा भर बाद मनोरमा जब हाॅस्पिटल पहुंची तो ससुरजी आॅपरेशन आदि के लिए दो लाख रुपये जमा कर चुके थे। संजीव प्रियदर्शी

फिलिप उच्च माध्यमिक विद्यालय

बरियारपुर, मुंगेर

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