बोध – संजीव प्रियदर्शी

एक लघुकथा लकड़ा जेब से पिस्तौल निकालकर ज्यों ही गोलियाँ चलाता कि यकायक उसके हाथ रुक गये। यह क्या? ये तो विभाष सर हैं! भला इन्हें कैसे मार सकता है… बोध – संजीव प्रियदर्शीRead more

Spread the love