लालच बुरी बला है-पंकज कुमार

लालच बुरी बला है 

         वैशाली जिले के राजोपुर गाँव में मोहन नाम का एक आदमी रहता था । वह बहुत ही लालची और कंजूस आदमी था । पूरे राजोपुर गाँव और आस-पास के लोगों को भी मोहन के स्वभाव के बारे में पता था । वो किसी का लिया हुआ उधार भी कभी वापस नहीं करता था ।
वह दिमाग से भी तेज था इसलिए वो बड़ी आसानी से लोगो को मूर्ख बना देता था। झूठ को सच और सच को झूठ वो बड़ी सहजता से बना देता था। सभी लोग उनसे दूर रहना ही पसंद करते थे। लोग उसे कभी कोई उधार नहीं देते और न ही उनके किसी बातों पर भरोसा करते थे जबकि मोहन को लोगों को मूर्ख बनाना बहुत अच्छा लगता था ।
एक समय की बात है दूर के गाँव से एक व्यापारी ट्रक भर पके तरबूज बाज़ार बेचने ले जा रहा था। मोहन को लगा बहुत दिन बाद उसे आज फिर से किसी को मूर्ख बनाने का मौका मिला है। उसने सोचा आज मज़े से भर-पेट तरबूज खाऊँगा और उस तरबूज वाले को मूर्ख बनाकर एक भी पैसे नहीं दूँगा।
उसने तरबूज वाले से पूछा- अरे भैया एक तरबूज कितने का है?
तरबूज वाला व्यापारी- भैया, तरबूज तो बाज़ार में ही मिलेंगे। यहाँ मैंं ट्रक से एक या दो तरबूज नहीं दूँगा।

इसपर मोहन ने कहा – मैं तो तुम्हारा सारा तरबूज यहीं खा सकता हूँ लेकिन सोच रहा हूँ सिर्फ एक से काम चला लूँ ।
मोहन की इस बात से तरबूज के व्यापारी को हैरानी हुई कि कोई इंसान एक ट्रक तरबूज कैसे खा सकता है ।
उसने मोहन से कहा – देखो मज़ाक मत करो । अगर तरबूज लेना है तो बाज़ार आ जाओ। यहाँ दे पाना संभव नहीं है ।
मोहन ने कहा – सच में मैं ट्रक का पूरा तरबूज खा सकता हूँ ।
तरबूज वाले ने भी कहा – ठीक है अगर तुम सारे तरबूज खा गए तो मै तुमसे एक भी पैसे नहीं लूँगा लेकिन मेरी एक शर्त है ।
मोहन ने पूछा – क्या ?
तरबूज वाले ने कहा – तुम्हे सारे तरबूज खाने के बाद मेरा एक लड्डू खाना होगा ! अगर तुमने ऐसा नहीं किया तो तुम्हे सारे तरबूज के पैसे देने होंगे ।
मोहन ने सोचा – बहुत बढ़िया । एक लड्डू ही तो है आराम से खा लूँगा । फिर सोचकर उसने कहा – मुझे तुम्हारी शर्त मंजूर है ।
तरबूज वाले ने ट्रक के सारे तरबूज मोहन के सामने रख दिए ।
मोहन ने बड़े चाव से 2-3 तरबूज खाए जिससे उसका पेट भर गया । उसने उसके बाद बड़े चालाकी से सभी तरबूज पर अपनी दातें गड़ानी शुरू कर दी । एक-एक करके उसने सभी तरबूज पर अपनी दांतें गड़ाकर उसको जूठा कर दिया ।
तरबूज वाले ने बड़े हैरानी से कहा – ये तो गलत बात है । तुमने सभी तरबूज को खाने को कहा था परन्तु तुमने तो बस जूठे करके छोड़ दिए ।
इसपर मोहन ने जबाव दिया – मैंने तो सभी तरबूज खा लिए । अगर नहीं खाए तो एक को भी बाज़ार में बेचकर दिखाओ।
तरबूज वाले व्यापारी को बड़ा आश्चर्य हुआ कि इसने तो मुझे मूर्ख बनाना चाहा है । तभी उसने मोहन को उसकी शर्त याद दिलाई कि तुम्हें सभी तरबूज खाने के बाद मेरा दिया हुआ एक लड्डू खाना होगा।
मोहन ने कहा – ठीक है, लाओ लाओ ! एक लड्डू ही तो है, आराम से खा लूँगा ।
तरबूज वाले व्यापारी ने चालाकी दिखाते हुए गिट्टी-बालू से बने एक बड़े से लड्डू को मोहन की तरफ बढ़ाते हुए कहा – लो खाओ लड्डू !
मोहन अब बुरी तरह फँस चुका था। उसे लगा उससे लालच के कारण शर्त लगाने में बहुत बड़ी गलती हो गई है । उसने लड्डू किस चीज के बने होंगे यह पूछना भूल गया था और वो गिट्टी-बालू से बने लड्डू को नहीं खा सकता था । वो शर्त हार गया था।
शर्त हारने की वजह से मोहन ने तरबूज वाले व्यापारी को उसके सभी तरबूज के पूरे पैसे दिए और उनसे माफी मांगी ।
उसके बाद मोहन ने कसम खाई कि वो आज के बाद कभी लालच नहीं करेगा और न ही किसी को मूर्ख बनाएगा ।

पंकज कुमार
प्रा. वि. सुर्यापूर
प्रखंड + जिला – अररिया

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