Deprecated: Function jetpack_form_register_pattern is deprecated since version jetpack-13.4! Use Automattic\Jetpack\Forms\ContactForm\Util::register_pattern instead. in /var/www/html/gadyagunjan/wp-includes/functions.php on line 6031
असली बेटा-धीरज कुमार - गद्य गुँजन

असली बेटा-धीरज कुमार

Dhiraj

असली बेटा

          सुबह के लगभग 9:00 बज रहे होंगे। गुप्ता जी बाजार से सब्जी लेकर आए थे और थके हुए पंखे के नीचे बैठकर हवा का आनंद ले रहे थे। तभी उनकी पत्नी के मोबाइल पर एक अंजान नंबर से कॉल आया। उन्होंने रसोई में खाना पका रही पत्नी से कहा कि अजी सुनती हो तुम्हारे मोबाइल पर किसी अनजान नंबर से कॉल आया है।

पत्नी ने कहा कि मैं रसोई में खाना पका रही ही सब्जी जल जायेगी। आप ही उठाकर देख लीजिए कि किसका कॉल है?

गुप्ता जी ने मोबाइल पर अंजान नंबर को रिसीव किया और बोले हैलो कौन?
उधर से एक महिला की आवाज आई आशाा (गुप्ता जी की पत्नी) नहीं है क्या?

गुप्ता जी ने कहा – हां है लेकिन रसोई में है।
उधर से महिला ने कहा कि मैं वंदना बोल रही हूं। आपकी सास पिछले दो दिनों से हाईवे पर सड़क किनारे वाली बड़ी मंदिर पर हैं। गुप्ता जी आश्चर्य पूर्वक बोले- मंदिर में क्यों वंदना जी?

वंदना का नाम सुनते ही पत्नी भी रसोई घर में गैस चूल्हा की आंच को कम करके आई और गुप्ता जी के हाथ से मोबाइल लेकर बोलती है- क्या हुआ वंदना?आज सुबह सुबह और ये अंजान नंबर से …….

वंदना ने उनकी बात को काटते हुए कहा की तुम्हारी मां पिछले दो दिन से मंदिर में रह रही हैं। तुम्हारे भाई ने शायद उन्हें शहर से पचास किलोमीटर दूर जो हाईवे है उसके किनारे बड़ी मंदिर पर छोड़ दिया है।आज जब मैं मंदिर पूजा करने अपने पति के साथ आई तो मेरी नजर उनपर पड़ गई और मैं उन्हें देखते ही पहचान गई। मैंने उनसे पूछा कि आप यहां कैसे और क्यों बैठी हैं ?

वे ज्यादा बात नही कर पा रही थी। थोड़ा बहुत बताई कि दो-दिन पहले तुम्हारे भैया ने मंदिर दर्शन करने की बात कह यहां लाया था। उसके बाद यहां बैठाकर बोला कि मैं आ रहा हूं। मैं उसकी इंतजार में तब से यही हूं।

उनकी हालात देखकर लग रहा है कि उनकी तबीयत भी ठीक नहीं है और ज्यादा बात भी नहीं कर पाई। उनके साथ और कोई नहीं है। मैं अपना मोबाइल घर छोड़ आई थी। जिसके कारण मैंने अपने पति के मोबाइल नंबर से फोन की क्योंकि मुझे तुम्हारा नंबर पहले से याद था, मैंने कॉल किया। पुजारी जी ने भी बताया कि यह महिला दो दिन से यहीं पड़ी है। जल्दी आ जाओ मैं तब तक यही हूॅं। यह कहकर कॉल काट दिया।

अपनी सहेली की ये सब बात सुनते हीं गुप्ता जी की पत्नी बहुत तेज-तेज से रोने लगी ।

अपनी पत्नी को शांत कराते हुए उन्होंने अपनी पत्नी से सारी स्थिति को जानकर उनसे बोले कि शांत रहो और धीरज रखो। मैं देखता हूॅं और गुप्ता जी ने बिना नाश्ता किया एक पल का समय गवाएं बताए गए स्थान की ओर प्रस्थान कर गए।

लगभग 4 घंटे के सफर के बाद बताए गए पते पर हाईवे के किनारे सड़क पर बड़ी मंदिर के पास पहुंचे और अपनी सास की स्थिति देखकर दंग रह गए।

उनके साथ उनकी पत्नी की सहेली भी थी। उसने बताया कि मैंने खाना-पीना खिलाकर डॉक्टर से दवा दिला दिया है। ये बहुत कमजोर हो गई है। फिर उसके बाद गुप्ता जी ने पत्नी की सहेली से थोड़ी वार्तालाप के बाद उन्हें बहुत-बहुत धन्यवाद करके अपनी सास को अपने साथ लेकर शाम तक घर वापस आ जाते हैं।

घर पर इंतजार कर रही गुप्ता जी की पत्नी मां को देखकर अपनी मां से लिपटकर खूब रोई और उसके बाद फिर शांति से बैठकर उन्होंने अपनी मां से पूछा कि मां आखिर क्या हुआ?

आप मंदिर में क्यों थी? मां ने घर पर उन्हें बताया कि उनकी इकलौती बहू उनसे हमेशा इस बुढ़ापे में भी घर का काम करवाती थी। ढंग से खाने-पीने को भी नहीं देती थी और हमेशा तरह-तरह के अभद्र भाषा का प्रयोग करती थी और मेरा इकलौता बेटा भी अपनी पत्नी के हां में हां मिलाता रहता और मुझे ही उल्टा गलत ठहराता। जब मेरी तबीयत खराब होने लगी तो मुझे दवा दिलाने के बजाय वह मुझे मंदिर दर्शन के नाम पर दूर मंदिर में ले गया। वहां बैठाकर बोला कि मैं आ रहा हूूॅं और वह मुझे वहीं छोड़कर चला गया और फिर आया भी नहीं।

दो दिन तक मैं इसी तरह से प्रसाद मांगकर खाती रही और इसी स्थिति में वही रही। भला हो तुम्हारी सहेली का जिसकी नजर मुझपर पड़ गई क्योंकि मुझे इस बुढ़ापे में तो न घर का पता याद है और न ही किसी का मोबाइल नंबर भी याद है।

उनकी बातों को सुनकर गुप्ता जी और उनकी पत्नी के साथ उनके दो बेटों की भी आंखें भर आई।

गुप्ता जी ने कहा मां जी आपका यह बेटा अभी जिंदा है। आप मेरी भी मां है आज से आप हमलोग के साथ रहेंगी। यह घर आपका है और मैं आपका बेटा हूं। जी हां, मैं आपका बेटा हूं।

माता जी ने उन्हें गले लगा लिया और गले लगाकर कहा कि आज आपने यह सार्थक कर दिया कि दामाद भी बेटा होता है। मेरे असली बेटे आप ही हैं।उसके बाद पूरे जीवनकाल तक गुप्ता जी ने माता जी सेवा एक बेटे की तरह की। इस बीच माता जी के असली बेटा कहे जाने वाले इकलौते बेटे और बहू ने उनकी खबर तक नहीं ली। जबकि वे सभी घटना से परिचित थे।

गुप्ता जी और उनकी पत्नी ने अपने भाई-भाभी का बहिष्कार कर दिया।

साथियों कई लोग आज इतने स्वार्थी हो गए की मां बेटे के पवित्र रिश्ते को भी कलंकित कर दे रहे है।
(एक सच्ची घटना पर आधारित)

धीरज कुमार
U M S सिलौटा
भभुआ (कैमूर)

Spread the love

Leave a Reply