लोकहित ही सर्वोपरि है- आशीष अम्बर

एक जंगल में बांसों का झुरमुट था एवं उसके पास ही आम का पेड़ भी था। बांस काफी ऊंचा था, आम छोटा। एक दिन बांस ने कहा — ” देखते नहीं, मैं कितना बड़ा हो चला , कितनी तेजी से बढ़ा और एक तुम हो जो इतनी आयु होने पर भी अभी छोटे ही बने हुए हो।” आम ने बांस के सौभाग्य को सराहा, पर अपनी स्थिति पर भी असंतोष व्यक्त नहीं किया। समय बीतता गया। बांस पककर सूख चला , किंतु आम की डालियां फलों से लदी और वे अधिक झुक गई।

बांस फिर इठलाया- ” देखते नहीं मैं सुनहरा हो चला और बिना पत्तियों के भी दूर – दूर से कितना सुंदर दिखता हूं। एक तुम हो कि जिसे फलों से लदने पर भी नीचा देखना पड़ रहा है।” आम ने फिर भी अपने संबंध में कुछ नहीं कहा। बांस की सराहना भर उसने कर दी। एक दिन यात्रियों का एक झुंड वहां पर आया और ठहरने के लिए आश्रय की तलाश की , सो फलों से लदा छायादार आम्रवृक्ष सबको सुहाया और वे डेरा डालकर वहां रात्रि विश्राम करने लगे। भोजन पकाने के लिए आग की जरूरत पड़ी, सो उसने नजर दौड़ाई तो पास में ही सूखा बांस खड़ा पाया। उन्होंने उसे ही काट कर जलाना आरंभ कर दिया। अब बांस को महसूस हुआ कि लोकपरायणता ही जीवन की सच्ची निधि है।

आशीष अम्बर 

उत्क्रमित मध्य विद्यालय धनुषी, केवटी, दरभंगा

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