पटना का गोलघर-एक ऐतिहासिक स्मारक : हर्ष नारायण दास

पटना विश्व के प्राचीनतम नगरों में से एक है।अपनी ऐतिहासिक गाथा के क्रम में इस नगर के नाम कई बार परिवर्तित हुए।कुसुमपुर, पुष्पपुर, अजीमाबाद, पाटलिपुत्र, पाटलिग्राम इत्यादि नामों से प्रसिद्ध यह नगर प्राचीन काल से ही विश्व के धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनैतिक गतिविधियों का केन्द्र रहा है।पटनदेवी, शहीद स्मारक, सदाकत आश्रम, खुदाबख्श लाइब्रेरी, पटना सिटी का गुरुद्वारा इत्यादि यहाँ के प्रमुख सांस्कृतिक धरोहर धार्मिक स्थल और ऐतिहासिक इमारत आज भी लोगों के आकर्षण के केन्द्र हैं।पटना के इन्हीं प्रमुख आकर्षणों में गोलघर का अपना विशिष्ठ स्थान है।
जिस तरह आगरे की पहचान”ताजमहल”दिल्ली की पहचान”कुतुबमीनार”हैदराबाद की पहचान”चारमीनार और कोलकाता की पहचान विक्टोरिया मेमोरियल से है ठीक उसी प्रकार पटना की पहचान”गोलघर”से है।
गोलघर 234 वर्ष पुराना बिहार का एक सुप्रसिद्ध ऐतिहासिक स्मारक है। यह बिहार की राजधानी पटना के बाँकीपुर मुहल्ले में गंगा से लगभग 100 मीटर दक्षिण में स्थित है।
गोलघर का शाब्दिक अर्थ”गोल आकार का घर”है।यह भारतीय स्थापत्य कला का एक अनूठा नमूना है।इस गुम्बदाकार इमारत पर दो अभिलेख अंकित है-एक हिन्दी में और दूसरा उसका अनुवाद अँग्रेजी में।
इन अभिलेखों के अनुसार गोलघर के निर्माण का निर्णय सन1770 के प्रसिद्ध दुर्भिक्ष”द ग्रेट बंगाल फेमिन”के बाद तत्कालीन गवर्नर जेनरल वारेन हेस्टिंग के आदेशानुसार लिया गया था। इस गोलघर का निर्माण 20 जनवरी1784 के गवर्नर वारेन हेस्टिंग के शासन काल में शुरू हुआ था और20 जुलाई1786 को नये गवर्नर जेनरल सर जॉन मैकफर्सन के शासन काल में पूरा हुआ।इस अद्भुत भवन का निर्माण अन्न संग्रह करने के निमित्त किया गया था,जिससे कि दुर्भिक्ष जैसी संकट की घड़ी में इसमें संग्रहित अन्न का उपयोग किया जा सके।लेकिन जिस उद्देश्य से इसे बनाया गया था, उस कार्य के लिए इसका उपयोग नही किया गया।
बहुत बाद में इसका उपयोग सरकारी अन्नागार के रूप में किया जाने लगा और आज भी उसी रूप में किया जाता है। आज यह बिहार में सबसे बड़ा अन्न का गोदाम है।हालांकि गोलघर को बिहार राज्य के दर्शनीय स्थल ऐतिहासिक स्मारक और कला निधि अधिनियम 1676 के अधीन एक राजकीय महत्व का ऐतिहासिक स्मारक घोषित कर दिया गया है।फिर भी इस का उपयोग”भारतीय खाद्य निगम के गोदाम के रूप में किया जा रहा है।
यह विशाल गुम्बदाकार इमारत ईंट से निर्मित है जो पृथ्वी की सतह से2 फीट ऊँचे आधार पर बनी प्रतीत होती है।गोलघर की गुम्बदाकार दीवार के बाहर चारों तरफ आधार से इसके चबूतरे की चौड़ाई 4 फीट 9 इन्च है।चबूतरे से गोलघर की ऊँचाई 96 फीट है।पलिन्थ के पास गोलघर के भीतरी और बाहरी व्यास की लंबाई क्रमशः109फीट और121फीट4 इंच है।इस तरह आधार के पास इसके दीवार की मुटाई12 फीट 4 इंच की है।इसमें दो मेहराबदार दरवाजे हैं-एक उत्तर की ओर दूसरा दक्षिण की ओर।प्रत्येक दरवाजे की चौड़ाई और ऊँचाई क्रमशः5फीट1.5इंच और7 फीट6 इंच है।प्रारम्भ में ये दरवाजे भीतर की ओर खुलते थे जो बाद में सुधार कर बाहर की ओर खुलने वाले बना दिये गए।अब इन्ही दरवाजों से इसमें अनाज रखा और निकाला जाता है।गुम्बदाकार गोलघर के गुम्बद की चोटी तक पहुँचने के लिए दोनों ओर से एक वलयाकार 145 सीढियां हैं जो नीचे से ऊपर दीवार से गोलघर पर चढ़ा जाता है।गोलघर की दीवार के बीच दीवार का बाहर सतह पर ढाई इंच व्यास वाली लोहे की एक खोखली पाइप लगी है जो दीवार से जगह-जगह स्थिर रूप से जुड़ी हुई है।इसी लोहे की खोखली पाइप को पकड़ कर लोग गोलघर की चोटी पर चढ़ते उतरते हैं दोनों ओर की रेलिंग की दीवार के बाहर की ओर 16-16 की संख्या में आयताकार पट्टियां लगी है।प्रत्येक आयताकार पट्टी के समान आकार के दो वर्गाकार छिद्र बने हुए हैं।पहले इन छिद्रों में गमले रखे जाते थे, परन्तु अब तो यहां ऐसा कुछ भी देखने को नहीं मिलता है।
इसके शिखर के मध्य में 2फीट7 इंच व्यास का एक गोलाकार छिद्र बना हुआ था, जिससे उसके अंदर अनाज डाला जाता था।उस समय वह छिद्र”गारस्टियन पोली”के नाम से प्रचलित हो गया था किन्तु बाद में उसे पत्थर की पट्टिका से बन्द कर दिया गया और उस पर एक बुर्ज बना दिया गया जिससे की नवाब, श्रीमन्त, सत्ताधीश और विदेशों से आने वाले सैलानी उस पर चढ़कर आह्लादित हों तथा अंग्रेज़ों द्वारा तैयार किये गए ढाँचे के आधार पर उन्हीं की देख रेख में बने स्थापत्य कला की इस अनूठे नमूने को देखकर प्रशंसा किये बिना न रह सके।लेकिन 1934 में बिहार में आये प्रलयंकारी भूकम्प में वह बुर्ज टूट गया जो बाद में फिर नहीं बना।
गोलघर की विशेषता है कि इसके गुम्बदाकार स्वरूप की गोलाई लगभग भूतल से ही शुरू हो जाती है।इसके भीतर एक भी स्तम्भ(खम्भा)नहीं है।इस ऐतिहासिक स्मारक में रोम और एथेन्स की भव्य इमारतों की शैली परिलक्षित होती है।
इसकी एक और विशेषता है कि इस की बेमिशाल मजबूती।सन1934 में आया प्रलयंकारी भूकम्प में भी गोलघर अचल रहा, जबकि सैकड़ों बड़ी बड़ी इमारतें ध्वस्त हो गई।जिस समय गोलघर का निर्माण शुरू हुआ था उस समय रेलगाड़ी और मोटर का आवागमन नहीं हुआ था।इसलिये मालवाहन हेतु मुख्य मार्ग नदी ही थी।
इतिहासकारों के अनुसार गोलघर निर्माताओं की योजना थी कि इस तरह के और भी भवन बंगाल के अनाज उपजाये जानेवाले क्षेत्रों में बनवाये जाएँ, लेकिन एक तकनीकी भूल के कारण दूसरे गोलघर के निर्माण की योजना धरी की धरी रह गई।भूल यह थी कि गोलघर के दोनों दरवाजे भीतर की ओर खुलने वाले थे।अंततः लाचार होकर दरवाजे को तोड़ना पड़ा।दरवाजे के टूटते ही गोलघर के अन्दर रखे अनाज इतने वेग से बाहर निकले कि कई लोग धराशायी हो गए।इसी भूल के कारण निर्माण से लेकर सन1956 तक गोलघर यूँ ही पड़ा रहा।यह भूल अंग्रेज इंजीनियर कैप्टन पवन जॉन गारस्टियन ने की थी जिसे गारस्टियन की भूल कहा जाता है।सन1956 में इन दरवाजे को बाहर से खुलने वाला बना दिया गया।तब से लेकर आजतक यह सरकारी अन्नागार के रूप में उपयोग में लाया जाता रहा है।
आम जनता का पुनीत कर्त्तव्य है कि गोलघर की दीवार पर चाकू या किसी अन्य तेज एवं नुकीले औजार की मदद से अपना नाम खोदकर इस अद्भुत ऐतिहासिक स्मारक को किसी तरह की क्षति न पहुँचावे।


-हर्ष नारायण दास
प्रधानाध्यापक, म०विद्यालय, घीवहा(फारबिसगंज)अररिया।
मो०न०-8084260685

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