शिक्षक के तीन ही प्रमुख गुण होते हैं।- विषय का गंभीर ज्ञान (content knowledge), सम्प्रेषण कौशल(communication skill) और शिक्षण-शास्त्र(Pedagogy)। कहते हैं, “Teacher is not one, who only teaches. He is one, who inspires you to learn.”(सच्चा शिक्षक विद्यार्थियों को केवल पढ़ाता नहीं, प्रत्युत निरंतर सीखने के लिए प्रेरित करता है।)
शिक्षक का यह महान कर्त्तव्य है कि वह विद्यार्थियों की रुचि और जिज्ञासा विषय में या विषय के प्रति निरन्तर जगाते रहे। यह वही शिक्षक कर सकता है, जो सतत अध्ययनशील रहता है और शिक्षण के प्रति प्रतिबद्ध रहता है। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के शब्दों में, “एक शिक्षक वास्तव में तभी शिक्षण कर सकता है, जब वह स्वयं अध्ययनशील रहता है। एक जलता हुआ दीपक ही दूसरे को प्रज्वलित कर सकता है।” शिक्षक, वकील और चिकित्सक को सतत अध्ययनशील होना चाहिए।
विज्ञान शिक्षक के विषय में महान भौतिक विज्ञानवेत्ता प्रोफेसर रिचार्ड फेनमैन कहते हैं, “If you find science boring, you are learning it from a wrong teacher.(यदि विज्ञान विषय आपको उबाऊ लग रहा है तो आप इसे गलत शिक्षक से पढ़ रहे हैं।)” यह केवल विज्ञान के लिए नहीं, सभी विषयों के लिए यथार्थ है।
सभी विषयों के शिक्षक के पास उनके विषय में विद्यार्थियों की रुचि जगाने की अद्भुत कला होनी चाहिए और होती है।
महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन के कथनानुसार, “रचनात्मक अभिव्यक्ति और ज्ञान में आनंद जगाना शिक्षक की सर्वोच्च कला है।”
विद्यार्थियों की अपने विषय में रुचि जगाना और जिज्ञासा उत्पन्न करना शिक्षक की श्रेष्ठ कला है, ऐसा तभी संभव है जब वह निरन्तर अध्ययनशील रहता है और शिक्षण-कौशल को अपने ज्ञान और अनुभवों द्वारा मजबूत और प्रभावी बनाता जाता है।
गिरीन्द्र मोहन झा
+२ भागीरथ उच्च विद्यालय, चैनपुर-पड़री, सहरसा