गरीबी से द्वंद करती मेहनत-श्री विमल कुमार “विनोद” 

Vimal

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गरीबी से द्वंद करती मेहनत

           एक गरीब व्यक्ति जिसके माता-पिता एक गरीब परिवार से आते हैं। एक निम्नवर्गीय माधो जो एक अत्यन्त गरीब किसान था। आज से करीब 50 वर्ष पहले मजदूरी करने के लिए किसी तरह से कुछ रूपये लेकर रेलवे स्टेशन पर पहुँच जाता है जहाँ उसे एक एक्सप्रेस ट्रेन मिल जाती है। अपनी मंजिल से बिल्कुल अंजान माधो के पास कुछ भी नहीं है। अपनी देहाती लिबास में फटे-पुराने कपड़े पहनकर वह ट्रेन के साधारण क्लास के डिब्बे में घुसकर नीचे एक पुरानी चादर बिछाकर बैठ जाता है। आगे चलकर जब टिकट जांच करने वाले बाबू आते हैं और माधो से टिकट मांगते है तो वह कहता है कि बाबू मैंने तो टिकट नहीं कटाया है। टिकट जांच वाले पूछते हैं कि तुम्हारे साथ कौन है? तो माधो कहता है कि इ हमरा नुनूआ के माय है। जब टिकट बाबू कहते हैं कि दोनों के पास टिकट नहीं है तुम गाड़ी में चढ़कर यात्रा करने को कैसे सोचा? इस पर माधो टिकट जाँचने वाले बाबू को हाथ जोड़कर कहता है कि “बाबू कुछ भी नहीं है, दू दिन से सत्तू, मूढ़ी और मिर्ची खाय के हैं। हमको गाड़ी से नय नीचे कीजिये बाबू। हमलोग कुच्छू कमाने जा रहे हैं बाबू। हमलोग बहुत गरीब हैं। बाढ़ में सब बह गया बाबू खाने का कुच्छू भी नहीं है। एगो छोटा सा बच्चा भी है जिसको पिलाने के लिए दूध भी नहीं है बाबू। पांच गो रूपया यदि है तो बाबूजी देते जाना कहकर माधो की पत्नी दोनों हाथों से आंचल उठाकर ईश्वर से टिकट बाबू के शुभ के लिए प्रार्थना करती हुई, बाबू कुछ दे दो ना, मेरे इस छोटे से बच्चे के लिए कुछ दान कर दो बाबू। माधो की पत्नी की बातों पर टिकट जाँचने वाले बाबू को दया आ जाती है तथा वह पांच रूपये माधो की पत्नी के आंचल में डालकर चल देते हैं।

माधो अपनी पत्नी रमिया के साथ नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुँच जाता है। उसके बाद अब उसे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है। माधो अपनी पत्नी रमिया से विचार-विमर्श करता है कि किसी दुकान में काम पकड़ा जाय। इसके बाद माधो तथा रमिया को एक रेस्टोरेंट में काम मिल जाती है। उसके बाद दोनों कुछ दिनों तक रेस्टोरेंट में काम करने के बाद अपना रोजगार करने की बात सोचने लगते हैं। इसके बाद दोनों रेलवे स्टेशन के बाहर फुटपाथ पर एक छोटी सी चाय की दुकान खोलता है तथा पति-पत्नी दोनों मिलकर दिन रात मेहनत करके कुछ अच्छी कमाई करने लगता है। इसके बाद चाय दुकान से अच्छी कमाई होने के बाद माधो दिल्ली में एक छोटी सी जमीन लेकर अपना मकान बनाकर रहने लगता है।समय बीतता जा रहा है और माधो का “द्वंद गरीबी” से जारी है। वह प्रतिदिन मेहनत करके ईमानदारी की कमाई करके अपना विकास करने का प्रयास करता है। धीरे-धीरे माधो साधारण तरीके से अपने जीवन के विकास के पथ पर अग्रसर होते जा रहा है।

इसी बीच 50 वर्ष पहले भागलपुर से दिल्ली आने के क्रम में ट्रेन पर जिस टिकट बाबू से टिकट जांच के दरम्यान मुलाकात हुई थी तथा जिससे अपनी यात्रा के दरम्यान जाने तथा बच्चे को पिलाने के लिए दूध के पैसे मांग रहा था, वह अपनी पत्नी के इलाज के लिए दिल्ली पहुँचकर स्टेशन के बाहर चाय की दुकान पर चाय पीने पहुँच जाता है। चाय पीने के बाद ज्यों ही टिकट बाबू माधो की पत्नी के हाथों में पांच रूपये का सिक्का चाय के दाम देता है, वह सिक्का माधो की पत्नी के हाथ से गिर जाता है। उसी समय माधो की पत्नी के आंखों के सामने उस दिल्ली आने वाली ट्रेन का दृश्य नाचने लगता है जहाँ टिकट जांच करने वाले बाबू के द्वारा माधो की पत्नी को बच्चे के दूध पिलाने के लिए पांच रूपये दिये गये थे। इसके बाद माधो की पत्नी को लगा कि कहीं यह वही तो टिकट जांच करने वाले बाबू नहीं हैं जिन्होंने हम दोनों को ट्रेन से बिना टिकट होने के बाद भी मेरी गरीबी पर रहम करते हुए अपने पैसे से टिकट भी बना दिया तथा मेरे बच्चे के दूध के लिए पांच रूपये भी दिये थे। यह सुनकर टिकट वाले बाबू के आंखों में प्यार के आंसू छलकने लगते हैं। इस पर टिकट जांच करने वाले बाबू कहते हैं कि आपने सही में पहचान लिया है। यह सुनकर माधो की पत्नी उनका चरणस्पर्श करके उनके द्वारा किये गये एहसान के बदले बहुत धन्यवाद देती है। टिकट जांच करने वाले बाबू माधो तथा उसकी पत्नी को किये गये सहयोग को एक एहसान न मानकर मानव कल्याण के प्रति अपना समर्पण कहकर माधो तथा उसकी पत्नी को प्रणाम करके उसके द्वारा “गरीबी से द्वन्द करती मेहनत” का प्रतिफल बताते हुए
कहते हैं कि जिस व्यक्ति ने जीवन में अमीर बनने के लिए गरीबी के साथ मेहनत का द्वन्द (संघर्ष) किया वह गरीबी को कोसों दूर पछाड़कर जीवन में सफल हो जाता है।

श्री विमल कुमार “विनोद” 

राज्य संपोषित उच्च विद्यालय पंजवारा

बांका (बिहार)

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