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"समाज को बदल डालो - विमल कुमार 'विनोद' - गद्य गुँजन

“समाज को बदल डालो – विमल कुमार ‘विनोद’

Bimal Kumar

— एक रंगमंचीय नाटक

ओपनिंग दृश्य-

सुबह का समय मंदिर का दृश्य,बहुत सारे लोग मंदिर में हैं,घंटी बजती है,आरती शुरू होती है।सभी लोग आरती करते हैं)पंडित जी-(सभी भक्तों से बोलिये)सर्वमंगलमांगलये शिवे सर्वार्थ साधिके,शरणये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोस्तुते।सभी भक्त-सर्वमंगलमय मांगलये शिवे सरवार्थ साधिके शरणये त्रयंबके गौरी नारायणि नमोस्तुते।(इसके बाद सभी बच्चे-बच्चियाँध्यान लगाकर आसन लगाकर बैठ जाते हैं)पंडित जी-(मंदिर में आये छोटे-छोटे बच्चे-बच्चियों को उत्कृष्ट जीवन का उत्कृष्ट संस्कार बताते हुये)आप सभी नौनिहाल बच्चों को प्रातःकाल उठने के बाद तथा नित्य क्रिया से निवृत्त होने के बाद अपने-अपने माता-पिता को चरणस्पर्श प्रणाम करने के बाद नाश्ता करके पढ़ने बैठ जाना चाहिये।मोहन-पंडित जी,सुबह उठकर नित्य क्रिया से निवृत्त होकर माता-पिता को चरणस्पर्श प्रणाम करकेपढ़ने बैठने का कारण क्या है?पंडित जी-यह छोटे-छोटे बच्चों में विकसित किया जाने वाला एक संस्कार है,जो कि जीवन के लिये अतिआवश्यक है।इसके बिना जीवन जीना बेकार है।मोहन-और पढ़ने का मतलब क्या है,क्यों पढ़ना चाहिये?पंडित जी-पढ़ने से नई-नई बातों की जानकारी प्राप्त होती है,ज्ञान का विकास होता है,लोगों में रोजी-रोटी की समस्या दूर करने की बातें विकसित होती है,समाज में फैली कुरीतियों को दूर करने से संबंधित बातों का पता चलता है।सभी बच्चे-बच्ची-(एक साथ मिलकर)तब तो हम सबों को प्रतिदिन नित्यक्रिया से निवृत्त होकर अपने-अपने माता-पिता को चरणस्पर्श प्रणाम करके तथा नाश्ता करके,मंदिर में देवी को प्रणाम करके अध्ययन करना चाहिये।इसी से समाज में परिवर्तन आ पायेगी तथा समाज की रूपरेखा भी बदलती जायेगी।मोहन-हमलोग आज संकल्प लेते हैं कि हमलोग पढ़-लिखकर अपनेजीवन का संस्कार बदलेंगे तथा एक नये समाज का निर्माण करेंगे।(पर्दा गिरता है)

प्रथम अंक,प्रथम दृश्य

–सड़क का दृश्य-(कुछ बच्चे बैठकर जुआ खेल रहे हैं,तो कुछखैनी,रजनीगंधा खा रहे हैं,बगल में शराब की खाली बोतलें भी फेंकी पड़ी हुई है)(कुछ बच्चे-बच्चियाँ पढ़ने जा रही है)।जुआ खेलने वाले-अरे मोहना कहाँ जा रहा है,पढ़ने।साला लगता है,पढ़-लिख कर तो बढ़काकलक्टर बन जायेगा।अरे आओ एक दान जुआ खेल लो,एक पुड़िया खा लो,सुकरतिया का दाव तो आजमा लो।मोहन-अरे भाई श्याम सुकरतिया का दाव क्या होता है,तुमलोग जुआ क्यों खेल रहे हो?कलुआ-सुकरतिया तो कालीपूजा को कहते हैं,पहले के लोग कहते थे कि कालीपूजा में जुआ खेलकर अपना किस्मत आजमाने की जरूरत होती है।मोहन-नहीं मुझे जुआ नहीं खेलनाहै,मुझे तो पढ़ना है,आगे बढ़ना है।कलुआ-अरे जुआ खेलकर तो देखो,कितना मजा आयेगा,दांव लगाते हुये,देखो दांव फंस गया,छक्का लगा,कितना रूपयाआया।मोहन-सुनो कलुआ हमको पढ़ने जाना है,जुआ नहीं खेलना है,तुमलोग खूब जुआ खेलो,हमको तो यह काम करना नहीं है,हमकोतो पढ़ना है।हमको अपनी जिन्दगी संवारने की जरूरत है,क्योंकि जुआ खेलने वाले,खैनी खाने वाले की कोई जिन्दगी नहीं होती है।(इतना कहकर मोहन अपने दोस्तों के साथ पढ़ने चला जाता है)

द्वितीय अंक,प्रथम दृश्य-

-विद्यालय का दृश्य-(सभी छात्र-छात्रायें पढ़ रहे हैं)शिक्षक-सभी बोलो,बुरा मत देखो,बुरा मत सुनो,बुरा मत करो।सभी बच्चे-बुरा मत बोलो,बुरा मत सुनो,बुरा मत देखो।शिक्षक-सफाई में बफाई है।स्वचछ रहो निरोग रहो।अपना काम स्वंय करो।पढ़ोगे,लिखोगे,बनोगे नबाब,खेलोगे कूदोगे बनोगेखराब।सभी बच्चे-सर,हमलोग सभी बच्चे पढ़-लिखकर बड़ा आदमी बनाना चाहेंगे।शिक्षक-(महात्मा गाँधी के चित्र को दिखाकर)देखो बच्चे यह चित्रमहात्मा गाँधी जी का है,इन्होंने सत्य और अहिंसा के बल पर भारत वर्ष को अंग्रेजों की गुलामी से आजादी दिलाई।बच्चे-सर,सत्य और अहिंसा क्या चीज होती है,इसके बल पर आजादी कैसे मिल सकती है?शिक्षक-हाँ,हाँ सत्य का अर्थ होता है,झूठ नहीं बोलना।सत्य बोलने वाला अपने बात पर अडिग रह सकता है।झूठ बोलने वाला अपने बात पर अधिक देर तक अडिग नहीं रह सकता है।(उसी समय कुछ गुंडों का हथियार के साथ गोली चलाते हुये वर्ग कक्ष में प्रवेश,मुँह को काले कपड़े से बाँधे हुये है)गुंडे-ऐ मास्टर जी यह सत्य अहिंसा की बात छोड़ो,हमलोगों को रंगबाजी चाहिये।आपलोग विद्यालय आइये या न आइये हमलोगों को रंगबाजी चाहिये सुकरतिया है,जुआ खेलेंगे,दारू पियेंगे मस्ती करेंगे।शिक्षक-(पहचानते हुये)अरे रामू तू।तू तो मेरा प्रिय शिष्य था।गुंडे-(चीखकर)खबरदार मास्टर जो तुमने रामू शब्द का उच्चारण किया तो छःईंच छोटा कर दूँगा,वर्ना सीधी तरह से रंगबाजी दे दो।(सभी बच्चे-बच्चियाँ मिलकर) बचाओ मेरे मास्टर जी को,बचाओ मेरे भाग्य निर्माता को बचाओ शिक्षा को,मेरे गुरू को(यह सुनकर सभी गुंडे गोली फायर करते हुये भागते हैं)मोहन-ई तो बड़ा गड़बड़ हो गया अंजली।अंजली-तुमने ठीक ही बोला मोहन कि मास्टर साहेब का विद्यार्थी होकर इतना बड़ा कमीना निकला जो कि अपने गुरू को ही गोली मारने आ गया,रंगबाजी मांगने लगा।भोला-ई तो बहुत बड़ा अपराध है कि जब विद्यार्थी गुरू से रंगबाजी माँगे।ऐसा होने से तो हमलोगों को कौन पढायेंगे,हमलोगों का भविष्य का निर्माण कौन करेगा।अंजली-हमलोग मिलकर समाज से इस तरह के मानसिक विकृति से ग्रसित लोगों को सुधारकर रहेंगे।सपनों से सुन्दर समाज कानिर्माण करेंगे।सभी मिलकर-(एक साथ)समाज को बदल डालो,एक सुन्दर समाज का निर्माण करो,नशा मुक्त,जुआ मुक्त समाज का निर्माण करो।सत्य अहिंसा का राज होगा, गाँधी जी के विचारों को सरजमीं पर उतारकर ही दम लेंगे।

(पर्दा गिरता है)

दृश्य परिवर्तन

—काॅलेज का दृश्य-मोहन-हाय अंजली कैसी हो,अब तो तुम बहुत बड़ी हो गई,बहुत खुबसूरत लगती हो।अंजली-मोहन तुम भी तो बहुत सुन्दर लग रहे हो।बोलो मोहन और कैसे हो।तुमने मुझे सुन्दर खुबसूरत कहा,यह बहुत खुशी कीबात है।मोहन-अंजली दिल तो करता है कि तुमसे जी भर कर प्यार कर लूँ।अंजली-(बीच में बात काटते हुये)झूठा कहीं का,सच में तुम मुझसेप्यार करते हो।मोहन-बोलो तो अंजली दिल फाड़कर दिखा दूं।दिल में तो सिर्फ तुम्हारा ही नाम लिखा है।तुमको देखे बिना तो चैन ही नहीं आती है।तेरे चेहरे से तो नजर हटाने का मन नहीं करता है।(कहकर बाँहों में भरने की कोशिश करता है,अंजली छिटककर भाग जाती है)गाना-तेरे चेहरे से नजर नहीं हटती नजारे हम क्या देखे।(पर्दा गिरता है)

द्वितीय अंक,द्वितीय दृश्य

—-सड़क का दृश्य-कुछ लोग जुआ खेल रहे हैं,कुछ खैनी गुटका खा रहे हैं,इसी बीच कुछ लड़कियां पढ़ने जा रही हैं)कलुआ-अरे छम्मक छल्लो कहाँ जा रही हो।पढ़ लिख कर क्या होने वाला है,दिल की किताब पढ़ लो,तब स्कूल जाना।अंजली-अरे लफुआ,कभी आइने में अपनी तस्वीर देखी हो।कलमुंहे ऐसी थपपड़ मारूंगी की छठी का दूध याद आ जायेगी।कलुआ-अरे मेरी जान,जरा दिल तो देती जा,मेरा जीवन कोरा कागज है,वह सफल हो जायेगा।अंजली-(जोर से थपपड़ मारते हुये)ले तेरा जीवन सफल हो गया,कोरा कागज में मैंने थपपड़लिख दिया।कलुआ-(जोर से चिल्लाकर)तेरा यह थपपड़ बहुत महंगी पड़ेगी।जिस दिन तू मेरे चपेट में आ गईमैं तेरा सारा हिसाब चुकता कर लूँगा।अंजली-जा,जा तेरे जैसे फूटपाथीआवारा को सबक सिखाने के लिये ही मैं इस पृथ्वी पर जन्म ली हूँ।(एक तरफ से अंजली का प्रस्थान दूसरी तरफ से गुरुजी का प्रवेश)रामू-क्या हाल है गुरुजी,ठीक हैन !सुकरतिया आ गया है,जुआ खेलना है,रंगबाजी के रूपये देते जाना वरना सुकरतिया के बिहान का सबेरा देखना मुश्किल हो जायेगा।गुरूजी-ठीक है रामू,तुम्हारी बात मान लिया।(अफसोस करते हुये)हाय रे समाज,हाय रे बदनसीबी,हाय रे शिक्षा,हाय रे संस्कार।मेरा जैसा गुरुजी एही दिन देखने के लिये जिन्दा है।(अपने में ढांढ़स बंधाते हुये)मैं भी एक जाना माना शिक्षक हूँ,मैं अपनी कुर्बानी दे सकता हूँ,रंगबाजी नहीं।मैं किसी भी हालत में इन समाज के मुख्यधारा से भटके लोगों को समाज की मुख्यधारा में लाकर ही चैन लूंगा।कलुआ-(अपने गुर्गे से)कल जाकर सभी स्कूल के मास्टर से रंगबाजी लेकर आ जाना ताकि कालीपूजा में मस्ती करेंगे,डांस करेंगे)

“दृश्य परिवर्तन”

-मैदान का दृश्य-(हीरवाऔर जीरवा आपस में)हीरवा-अरे जीरवा,ई तो कमाले का बात होई गवा कि अब अइसन चेलवा बन रहल है कि गुरू जी से रंगबाजी माँग रहल बा।जीरवा-ई तो लग रहा है कि समाज से संस्कार और शिक्षा का अभाव दिखाई दे रहा है।हीरवा-(मूंछ में हाथ देते हुये)जीरवा लग रहा है कि कलुआ का हिसाब चुकता करना होगा।जीरवा-पहले कालीपूजा में मस्ती कर लें।(हाथ-पैर भांजते हुये)कालीपूजा में हम तोर ससुराल जायेंगे।(जी निकालकर चाटते हुये)उहां मस्ती करेंगे,दिल खोल कर डांस करेंगे।हीरवा-और क्या करोगे।(जी निकाल कर मुस्कुराते हुये चाटतेहुये)उहां जो धन्नो है,ओकरे चक्कर में तो मजा आई रहल है।जीरवा-अरे तब तो लगत हऊ कि तू हमरा साढू बन जायेगा।(दोनोंखुशी से लोटपोट होते हुये एक दूसरे को गला से लगाते हुये नाचने लगता है,नशा में दोनों एक दूसरे को चूमता है,खुशी मनाता है)(पर्दा गिरता है)

तृतीय अंक, प्रथम दृश्य

–विद्यालय का दृश्य-(बच्चे विद्यालय में प्रवेश करते समय) सुप्रभात सर।शिक्षक-सुप्रभात बच्चों,कैसे हो?बच्चे-(सिर हिलाते हुये)अच्छे हैं सर,सब आपका आशीर्वाद है सर।शिक्षक-खुश रहो,मुस्कुराओ,जीवन में बहुत तरक्की करो,आगे बढ़ो,अच्छा करो।(इसी बीच घंटी बजती है,सभी छात्र-छात्रा प्रार्थना करने लगते हैं)(तभी कुछ गुंडे जो कि मुँह पर काला कपड़ा बाँधे हुये हैं विद्यालय परिसर में घुस कर एक टक से सारी चीजों को देख रहे हैं)शिक्षक-(बच्चों से)बुरा मत देखो,बुरा मत कहो,बुरा मत सुनो।एक बनेंगे नेक बनेंगे।देश की रक्षा हम करेंगे,हम करेंगे।(सभी बच्चे शिक्षक की बातों को दोहराते हैं)(उसके बाद सभी बच्चे एक-एक करके अपने गुरुदेव को चरणस्पर्श प्रणाम करते हुये मैदान में सफाई करने लगते हैं)मोहन-अपने मित्रों को चलो हमलोग सफाई करते है।श्याम-मोहन भैया,महात्मा गाँधी भी सफाई में बहुत ध्यान देते थे।मोहन-हाँ,सफाई में बफाई है।सभी को स्वच्छता पर ध्यान देना चाहिये।सभी बिमारियों की जड़ गंदगी ही है।श्याम-मोहन भैया,अपने से बड़े तथा पूज्यनीय लोगों को सम्मान करना चाहिये।सभी जीवों से प्रेम करना चाहिये।सभी धर्मों से बराबरी का संबंध बनाये रखना चाहिये।मोहन-(सभी मिलकर)एक बनेंगे,नेक बनेंगे।सभी धर्मों के लोग भाई-भाई।(पर्दा गिरता है)

अंतिम दृश्य-

—सड़क का दृश्य-(सभी गुंडे शरीफी का रूप धारण कर,सड़क के किनारे गुरुजी का इंतजार कर रहे है।)गुरूजी को देखकर रूकिये सर जी।गुरूजी-(अपने आप में सहमते हुये)क्या बात है रामू,हमसे कोई गलती हो गई है क्या?रामू-(गुरूजी के पैरों पर गिरते है)गुरुदेव मुझे माफ कर दीजिये,मैं आपसे रंगबाजी माँगकर जो अपराध किया है,उसके लिये हम सबों को माफ कर दीजिये।गुरूजी-क्या हुआ रामू,इतना बड़ाहृदय परिवर्तन कैसे हो गया।रामू-(कहानी सुनाते हुये,हाथ जोड़कर)मैं एक दिन आपके स्कूल में रंगबाजी माँगने गया था,लेकिन वहाँ पर आप शिक्षक मिलकर बच्चों को जो संस्कार तथा शिक्षा की बात बता रहे थे,उसे देखकर मेरे आँखों में जो अपराधी बनने की पट्टी पड़ी हुई थी,मैं जो असामाजिक तत्वों के साथ गलत रास्ता अख्तियार कर लिया था,उससे पर्दा हट गया।गुरूजी मुझे तथा मेरे दोस्तों को माफ कर दो।गुरूजी-ठीक है,बच्चों का काम है गलती करना और गुरु का काम है माफ कर देना।रामू-(हाथ जोड़कर,विनती करते हुये)गुरूजी एक बात का भरोसा दिलाइये कि हमलोग तो गलत रास्ते पर चल चुके हैं,अपने को संभालने का प्रयास करेंगे,लेकिन मेरे बच्चों को पढ़ा दीजियेगा ताकि हमलोगों की अंतरात्मा खुश हो सके।(कहकर गुरूदेव को अपने बाँहों से पकड़ कर जोर-जोर से रोने लगता है।)(सामाजिकता पर आधारित परिवर्तन गीत गाया जा सकता है)नोट-इस नाटक को मंचन करने के उद्देश्य से लिखा गया है,इसलिये यदि कहीं कोई आपत्तिजनक बात लगे तो क्षमाप्रार्थी हूँ।

नाटककार-श्री विमल कुमार”विनोद”भलसुंधिया,गोड्डा(झारखंड)।

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