बदलाव -अमरनाथ त्रिवेदी

Amarnath Trivedi

अजीत और विक्रम दोनों एक ही मुहल्ले में रहते थे। अभी दोनों सरकारी विद्यालय में आठवीं कक्षा में पढ़ रहे थे, परंतु दोनों के स्वभाव में आकाश पाताल का अंतर था। अजीत विद्यालय में अपने कक्षा का सबसे मेधावी छात्र था, वहीं विक्रम को जरा भी पढ़ने में मन नहीं लगता था। शिक्षक उसे अनेक तरह से समझाते लेकिन उसके रवैया में किंचित मात्र भी फर्क न पड़ा था। घर के लोग भी उससे तंग आ चुके थे। छुट्टी के दिन थे। अजीत घर पर ही उछल-कूद कर रहा था, तभी उसके पिता जगन्नाथ ने उसे पास बुलाकर पढ़ने को कहा परंतु कुछ ही देर में वह पिता के वहाँ से हटते ही नौ दो ग्यारह हो गया। कुछ देर पश्चात् जब पिता ने उसे वहाँ नहीं देखा तब आग बबूला हो गया। कुछ ही देर बाद अजीत को उसके पिता ने बाहर से आते देख लिया। पिता को देखते ही वह थर्र-थर्र काँपने लगा। पिता को इस पर पहले से ही खुन्नस थी। वह उसे दरवाजे पर से घसीट कर आँगन में लाया और बुरी तरह से छड़ी से पीटने लगा। माँ जानकी को जब न रहा गया तब वह अपने पति के पास आकर बोली, बचेगा तब न पढ़ेगा। इसे छोड़ दीजिए। उसकी पिटाई पिता के द्वारा अधिक हुई थी। छड़ी से पीटने के कारण शरीर के कई जगहों से खून निकल रहे थे। माँ जानकी ने मरहम पट्टी कर दी। आज उसके लिए ऐसा दुर्योग था कि अब तक भोजन भी नहीं कर पाया था। ऊपर से मार ने उसकी दशा दयनीय कर दी थी। वह बगैर कुछ खाए पिए ही सिसकते सिसकते सो गया। दो घंटे बाद माँ ने उसे खाने को दिए। माँ ने कहा, बेटा तुम्हारी अभी पढ़ने की उम्र है। अगर तुम अभी नहीं पढ़ोगे तो लोग तुम्हें अच्छा नही कहेंगे साथ ही अपना भी भला नही होगा। अच्छा बेटा वह होता है जो अपने माता-पिता की आज्ञा को मानकर कार्य करता है। अजीत को माँ की यह बात घर कर गई। उसने मन ही मन उसी समय उद्दंडता को तिलांजलि दी और संकल्प लिया कि वह अब ऐसा कोई कार्य नहीं करेगा जिस कारण घर के लोगों और विद्यालय के शिक्षकों को कुछ भी कहने का अवसर मिले । वह अब समय पर नियमित रूप से विद्यालय जाता। पहले जहाँ विद्यालय जाने के नाम पर कही अन्यत्र खेलने निकल जाता, अब उसी अजीत में लोगों को बेहद फर्क नजर आने लगा था। जो शिक्षक होम वर्क देते उसे पूरा करने की कोशिश करता । अपने पड़ोसी दोस्त विक्रम से भी इस कार्य में जब तब सहायता लेता। दो महीने बाद वह नटखट अजीत अब सबके मध्य सभ्य बालक बन गया था। जो शिक्षक बात-बात में उसे ताना मारते वे भी अजीत के बदलाव को देख चकित थे। पिता जगन्नाथ भी अब अजीत के फर्माइश को नजरंदाज न कर पाता था। आगे चलकर दो वर्ष बाद मैट्रिक की परीक्षा का जब परिणाम सामने आया तब अजीत को विक्रम से मात्र दस अंक ही कम प्राप्त हुए थे। दोनों प्रथम श्रेणी से उत्तीर्णता प्राप्त की थी, जिस पर माता-पिता समेत विद्यालय के शिक्षकों को भी अजीत पर गर्व महसूस हो रहा था। आज अपने पुत्र की उपलब्धि पर पिता के नेत्रों में चमक स्पष्ट रूप से झलक रही थी।

अमरनाथ त्रिवेदी

पूर्व प्रधानाध्यापक उत्क्रमित उच्चतर विद्यालय बैंगराप्रखंड-बंदरा, जिला- मुजफ्फरपुर

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