बच्चों की होली- लवली कुमारी

lovely kumari

अरे मुझे नहीं देखो -देखो इसे लगाओ
मोहन ,राजा, मीना ,गीता आज विधालय में बहुत मस्ती कर रहे थे। क्योंकि कल होली जो है।सभी बच्चे एक -दूसरे को रंग,अबीर लगा कर झूम रहे थे। राकेश अपनी कक्षा में चुपचाप बैठा था ,बहुत उदास लग रहा था। किसी से कुछ बात भी नहीं कर रहा था। सभी बच्चे होली में बनने वाली पकवान पूआ -पूरी , दही-बड़े इसकी चर्चा कर खुश हो रहे थे। वर्ग शिक्षक भी बच्चों के साथ बहुत खुश नजर आ रहे थे क्योंकि उन्हें छुट्टी मिल रही थी वे भी घर जाने की खुशी में बच्चों के साथ बहुत मस्ती कर रहे थे। बार- बार राकेश को बुलाते पर वह मना कर देता । सबों को लगा कि शायद उसे रंग खेलना पसंद नहीं । इसलिए वह सबके साथ नहीं खेलना चाहता।अब शाम होने वाली थी सर की गाड़ी 5:00 बजे थी वे भी सभी बच्चों के साथ छुट्टी के बाद निकल गये । तभी रास्ते में उन्होंने राकेश को देखा वो बहुत रो रहा था क्योंकि उसकी मां की तबियत बहुत खराब थी ,वह अपनी मां के साथ अकेले रहता था । वह दुकान से अपनी मां के लिए दवाई लेकर लौट रहा था उसी समय उसके वर्ग शिक्षक की नजर उस पर पड़ी वे गाड़ी रोक कर उससे पूछने लगे तो वह बहुत जोर – जोर से रोने लगा । उसने सारी बात बताई फिर यह भी बताया कि मैं इस बार होली नहीं मना सकूंगा। सर तुरंत ही गाड़ी से उतर गए , और राकेश को चुप करा के उसके घर गए ,उसकी मां से मिले उन्हें डॉक्टर को दिखाया, राकेश के लिए ढेर सारी रंग, अबीर भी दिया और बाजार से मिठाई, पूआ,-पूरी भी खरीद कर दिया । राकेश की मां सर को बहुत धन्यवाद कर रही थी।इसी समय उनकी बेटी (परी) ने फोन कर दिया पापा आप कितने बजे तक पहुंचेंगे तभी सर ने कहा मेरी शाम की गाड़ी छुट गई है, मैं कल सबेरे 11 बजे तक पहुंच जाऊंगा। इधर राकेश रंग लेकर बहुत खुश था अपने दोस्तों को दिखाने चला गया। सर भी राकेश को देखकर बहुत खुश हो रहे थे। पर उनकी बेटी( परी )फोन पर अपने पापा की जम कर क्लास ले रही थी , और वे उसे मनाने में लगे हुए थे।

भाव- कभी -कभी दूसरों की खुशी में ही अपनी खुशी शामिल होती है।

लवली कुमारी
उत्क्रमित मध्य विद्यालय अनुपनगर
बारसोई, कटिहार।

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