यार, तूने तो सब को रूला दिया – मो.जाहिद हुसैन

Mohammad Jahir

    वह दोस्ती ही क्या? जिसमें सब मीठा ही मीठा हो। दो दोस्त होंगे तो बीच-बीच में खींचातानी भी होगी। इन सब बातों से मोहब्बत बढ़ती है। क्या जमाना था? क्या पढ़ाना था? सन 2000 के मार्च महीने में विवेकानंद सविता, रामयत्न रजक सर और मैं मध्य विद्यालय नूरसराय संगत में ट्रांसफर होकर आए। बड़ा स्कूल था,शिक्षक पर्याप्त थे। बच्चों का हुजूम लगभग 1700। उस समय मेरी जवानी थी। मैं शिक्षण कार्य में हमेशा तत्पर रहा करता। अष्टम वर्ग से निकले तो षष्टम वर्ग में गए और षष्टम वर्ग से निकले तो सप्तम वर्ग में गए। मैं खुद को फुर्सत नहीं देता। मैं संस्कृत छोड़कर सभी विषयों में दक्ष हूॅ,लेकिन मैं दरअसल अंग्रेजी भाषा एवं साहित्य का शिक्षक हूॅ। कृष्णा बाबू के समय में विद्यालय में काफी इवेंट होते थे, बड़ा शानदार सांस्कृतिक कार्यक्रम। कोई भी प्रोग्राम का मंच संचालक मैं ही होता। शेरो शायरी से शुरुआत होती और धांसू नाटक पर कार्यक्रम परवान चढ़ता। बिंदेश्वर बाबू हमारे विद्यालय में एक भाषाविद,कवि एवं नाटककार थे। मैं नाटक लिखता तो दिनेश्वर बाबू उसे प्रूफ करते। मेरा भी प्रूफ किया हुआ एक कविता ‘संगत का तराना’ बिंदेश्वर बाबू की है जो आज भी विद्यालय के कार्यालय में टंगी हुई मिलेगी। हम लोगों ने जो नाटक लिखा था, उसका मंचन बिहार शरीफ के टाउन हॉल में हुआ था। रामवृक्ष बाबू की लिखी हुई नाटक दहेज प्रथा बहुत ही हिट गई थी। वे भी गजब के कलाकार थे। वे कहते थे कि हम लोग गांव में नाटक-नौटंकी करते रहते थे। संगत में कोई भी बड़ा प्रोग्राम में एमपी या क्षेत्रीय विधायक आमंत्रित जरूर रहते थे। रामयतन बाबू जब विद्यालय के प्रभार बने, तब भी इवेंट  होते रहे। उनका स्वभाव सरल एवं शीतल था। कभी-कभी वह हम लोगों के प्रभाव में आ जाते थे, लेकिन कुछ भी गलत नहीं होता था। सभी लोग टीम भावना से विद्यालय में कार्य कर रहे थे। संध्या कालांत में बच्चों के जाने के बाद गरम-गरम चीनिया बादाम गरीबन जी बाजार से लेकर आते। बैठकर हम सभी खाते और गप्पें लड़ाते। मेरा क्या ? सविता का हीरो होंडा, जिंदाबाद। मैं अक्सर विद्यालय से बिहार शरीफ उनके हीरो होंडा से ही आते। बिहार शरीफ में सिंगार हाट में मुझे छोड़ देते, फिर मैं टेंपो पड़कर भराव पर चला आता। हीरो होंडा वाली कहानी बड़ा ही दिलचस्प है। दरअसल बच्चे सविता सर को मध्य विद्यालय नूरसराय संगत में हीरो होंडा सर कहते थे। बच्चे तो नाम गुनते ही हैं। सविता सर आराजपत्रित शिक्षक संघ के नेतृत्व कर्ताओंओं में से एक थे, इसलिए कार्यालय पर उनकी काफी पकड़ थी। दरअसल श्यामसुंदर बाबू ने ही ट्रिपल एस (एस से शुरू होने वाले तीन नाम) को शिक्षा राजनीति में लाया था। विद्यालय का ऑफिशियल वर्क सविता जी खूब करते थे। प्रबंधन कौशल गजब का उनमें था। इसी प्रबंधन कौशल एवं प्रशासकीय गुण का उपयोग उन्होंने अपने प्रधानाध्यापक बनने पर किया। मध्य विद्यालय उत्तरा के विकास एवं उन्मुखीकरण हेतु उन्हें काफी चिंता रहती थी। एक समय की बात है। मुझे मूल्यांकन प्रक्रिया को देखने के लिए डीईओ साहब से गाड़ी मिली हुई थी, क्योंकि मैं भी जिला मूल्यांकन समिति का एक सदस्य था। विद्यालय में मूल्यांकन प्रक्रिया कैसे हो रही है, देखना था। पोस्टिंग तो हम दोनों की चंडी प्रखंड में ही थी। सो, मूल्यांकन प्रक्रिया के दौरान सविता जी ने टूटे हुए वर्ग-कक्षाओं को दिखलाया और कोई भी स्कीम से इसे बनवाने की जुगत बताई। दूसरी बार जब मैं उनका विद्यालय गया तो उन्होंने घूम-घूम कर वर्ग-कक्ष, आनंददायी कक्ष और टॉयलेट का स्वच्छ एवं सुंदर सा अवलोकन कराया। इसे पता चलता है कि उनमें विद्यालय के प्रति कितनी निष्ठा थी? अंत में सविता जी मुझे आग्रह करते हुए कहा, भयवा जरा हमरो बारे में कुछ लिख देबहू। मैंने उन पर ‘टीचर्स ऑफ बिहार’ में एक अच्छा-सा लंबा चौड़ा ब्लॉग लिखा था,जिसका शीर्षक था – निष्ठा का बाल”। इसमें मैंने सविता जी के मेहनत को चित्रित करने की कोशिश की थी। सविता जी ने मुझे एक बार कहा “मेरी जीवनी लिख दो,यार।” मैंने कहा कि जीवनी तो नहीं लिख सकता,लेकिन आपके विद्यालय में किए गए कारनामों का दस्तावेजीकरण कर सकता हूं और यह  गाथा औरों के लिए सबक बन जाएगी। सविता जी अक्सर मुझे कहते कि तोरा तो हमेशे से ढोलिऔ हौ-नूरसराय से चण्ढी तक।
हम लोग  मध्य विद्यालय नूरसराय संगत में 12 बरस रहे। दोनों एक दूसरे के साथी थे। अक्सर घर आने का इत्तेफाक सविता जी की गाड़ी से होता। दोनों दार्जिलिंग साथ-साथ जाते थे, क्योंकि वहां मेरी बच्ची और सविता जी की बच्ची, दोनों एक ही विद्यालय में पढ़ती थी। श्वेता बड़ी थी और जैनब तीन क्लास पीछे। हाॅ, एक और राष्ट्रपति अवार्डेड हम लोगों के अभिभावक के रूप में रहते थे, जिनकी बेटी और भांजी दार्जिलिंग में पढ़ती थी। क्या मजा आता था? आपस में हंसी ठिठोली और सविता जी से कभी-कभार नोकझोंक। वे गुस्सा होते तो कहते, “अंधरा, तोरा कुछ बुझा हौ?” लेकिन हां, उनका दिल बड़ा था, साफ था; जरा-सा भी मैल नहीं। वाक्य युद्ध होने के बावजूद भी मैं उनके पास सुरक्षित महसूस करता था। सविता जी में एक जबरदस्त खूबी थी कि जब भी वह किसी से मिलते तो गर्म जोशी से मिलते। ऐसा ही सबको प्रभावित करने वाली शैली पुरे जिला में उन्हें फेम कर दिया। बड़े लोगों से जब भी मिलते तो प्रणाम सर करके अच्छा देर तक हाथ जोड़े रहते। सर, अपने के कृपा दृष्टि चाही। वे सत्य बात के लिए अक्सर लड़ जाते।
अक्सर काम पड़ने पर हम दोनों डीएसई जाया करते थे। राज्यसभा सांसद गया सिंह के द्वारा दो रूम मध्य विद्यालय नूरसराय संगत में दिया गया, जिसमें कुछ लोगों ने एंटी पैरवी की। मैंने कहा, चलो! मोहन दा के पास, सॉल्यूशन वहीं निकालेगा। मोहन दा तब से आज तक भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव हैं, उनसे मेरा अच्छा रफ्त है। हम लोग जी-जान लगाकर उस फंड को रुकवाया, तब कहीं जाकर वह दोनों रूम फाइनल हुआ। 
साल 2005 का था। हम लोगों की शिक्षक प्रशिक्षण की परीक्षा हो रही थी। एक जुझारू घटना है,जिसका मैं भी शरीक था। एक वीक्षक महोदय अपने एख्तियार से कुछ ज्यादा ही दाएं-बाएं कर रहे थे, हालांकि उस रूम में जिला के दिग्गज शिक्षकों में सभी थे। परीक्षा समाप्त होते ही हम दोनों उसकी खबर ली। पकड़ा आस्तीन, फिर तो होने लगा बेहतरीन वाक्यों का बेहतरीन चयन। सेंटर पर हल्ला मच गया, हमारे पास नैतिक समर्थन था। कल होकर उस शिक्षक की ड्यूटी नहीं लगी। इसी तरह अक्सर कार्यालय में हम लोग हक-हुकुक एवं मर्यादा की लड़ाई जोरदार ढंग से उठाते रहे, जिसका मैं भी शरीक रहा, हालांकि सविता सर की एक तिकड़ी थी,जिसकी धाक थी।
वही हरदिल अजीज की एक-ब-एक मौत पर सब ने रो दिया। लोग-बाग, दोस्त-यार के साथ-साथ उनके स्कूल के बच्चे-बच्चियां भी चीत्कार भरने लगी। दरअसल, विवेकानंद सविता सर की मृत्यु सुबह-सवेरे घर में ही करंट लगने से 2 सितंबर 2023 को हो गई। घटना बड़ा मार्मिक है।
मो.जाहिद हुसैन
प्रधानाध्यापक
उत्क्रमित मध्य विद्यालय
मलह बिगहा,चंडी,नालन्दा

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