आशा की किरण-कुमारी निरुपमा

Nirupama

आशा की किरण

          अमन, सौरभ, मोनू और गौरव चारों दोस्त जब 12 अप्रैल को विद्यालय गये तब पता चला कि कोरोना के बढ़ते प्रकोप के कारण विद्यालय बंद कर दिया गया है। चारों कक्षा षष्ठ के छात्र थे। बहुत खुश थे कि कैचअप कोर्स के द्वारा पंचम वर्ग के लेशन के मुख्य बातों को बताया जाएगा। विद्यालय बंद के बारे में जानकर चारों दुःखी मन से घर लौट आए। चारों दोस्त ने विचार किया कि आठ दिन बाद फिर मिलेंगे। तब तक सोचेंगे कैसे पढ़ना है।

आठ दिन बाद चारों दोस्त फिर मिले पर बहुत चिंतित थे।
अमन – जानते हो सौरभ कुछ शिक्षकों के द्वारा स्कूल ऑन मोबाइल पर पढ़ाई के द्वारा पढ़ा रहे हैं।

सौरभ – पर गांव के बच्चे कैसे पढ़ेंगे। यहां तो सभी के पास एंड्रायड मोबाइल नहीं है।
गौरव – मेरे पिताजी के पास एंड्रायड फोन है। मैं अपने पिताजी से कहूंगा कि हमें पढ़ने के लिए दो घण्टे के लिए मोबाइल दे।
मोनू – कितना अच्छा होगा अगर तुम्हारे पिताजी मान जाएंगे तब मोबाइल एक जगह रखकर हम चारों दूरी बनाकर बैठ जाएंगे।
अमन – पिताजी को बतलाना कि शिक्षषकगण हमारे लिए ही तो पढ़ाते हैं। सभी गौरव के पापा से मिलने जाते हैं और उन्हें स्कूल ऑन मोबाइल के बारे में बताते हैं।बच्चों की इच्छा देखकर गौरव के पापा राजी हो गए। अगले दिन लाइव क्लास के समय चारों जमा होते हैं। गौरव के पापा उन्हें लाइव क्लास से जोड़ देते हैं।

बच्चों के मन में आशा की किरण दिखाई दी और टीचर्स ऑफ बिहार के द्वारा स्कूल ऑन मोबाइल कार्यक्रम चलाने के लिए धन्यवाद दिया। दूसरे बच्चों ने भी अपने अभिभावक को इसके लिए प्रेरित किया।

कुमारी निरुपमा
बेगूसराय बिहार

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