परिचय – शिक्षा पूर्ण मानव क्षमता को प्राप्त करने, एक न्यायसंगत और न्यायपूर्ण समाज के विकास और राष्ट्रीय विकास को बढ़ावा देने के लिए मूलभूत आवश्यकता है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक सार्वभौमिक पहुंच प्रदान करना वैश्विक मंच पर सामाजिक न्याय और समानता , वैज्ञानिक उन्नति , राष्ट्रीय एकीकरण और सांस्कृतिक संरक्षण के संदर्भ में भारत की सतत प्रगति और आर्थिक विकास की कुंजी है। सार्वभौमिक उच्चतर राष्ट्रीय शिक्षा वह उचित माध्यम है , जिससे देश की समृद्ध प्रतिभा और संसाधनों का सर्वोत्तम विकास और संवर्धन व्यक्ति, समाज, राष्ट्र और विश्व की भलाई के लिए किया जा सकता है। अगले दशक में भारत दुनिया का सबसे युवा जनसंख्या वाला देश होगा और इन युवाओं को उच्चतर गुणवत्तापूर्ण शैक्षिक अवसर उपलब्ध कराने पर ही भारत का भविष्य निर्भर करेगा।
भारत द्वारा 2015 में अपनाए गए सतत विकास एजेंडा 2030 के लक्ष्य 4( एस डी जी 4) में परिलक्षित वैश्विक शिक्षा विकास एजेंडा के अनुसार विश्व में 2030 तक ” सभी के लिए समावेशी और समान गुणवत्तायुक्त शिक्षा सुनिश्चित करने और जीवन – पर्यन्त शिक्षा के अवसरों को बढ़ावा दिए जाने ” का लक्ष्य है। इस तरह के उदात्त लक्ष्य के लिए संपूर्ण शिक्षा प्रणाली को समर्थन और अधिगम को बढ़ावा देने के लिए पुनर्गठित करने की आवश्यकता होगी, ताकि सतत विकास के लिए 2030 एजेंडा के सभी महत्वपूर्ण टार्गेट और लक्ष्य प्राप्त किए जा सकें। 5+3+3+4 के नए डिजाइन में स्कूल पाठ्यक्रम और शिक्षण – शास्त्र को पुनर्गठित करना।
स्कूली शिक्षा के पाठ्यक्रम और शैक्षणिक ढांचे को पुनर्गठित किया जाएगा ताकि 3-8, 8-11, 11-14 और 14-18 की उम्र के विभिन्न पड़ावों पर विद्यार्थियों के विकास की अलग – अलग अवस्थाओं के मुताबिक उनकी रुचियों और विकास की जरूरतों पर समुचित ध्यान दिया जा सके। इसलिए स्कूली शिक्षा के लिए पाठ्यक्रम और शैक्षणिक ढांचे और पाठ्यक्रम रूपरेखा एक 5+3+3+4 डिजाइन से मार्गदर्शित होगी, जिसके तहत क्रमशः फाउंडेशन स्टेज ( दो भागों में अर्थात् आंगनवाड़ी /प्री – स्कूल के 3 साल + प्राथमिक स्कूल में कक्षा 1-2 में 2 साल , 3 से 8 वर्ष के बच्चों सहित) , प्रिप्रेटरी स्टेज (कक्षा 3-5, 8 से 11 वर्ष के बच्चों सहित , मिडिल स्कूल स्टेज ( कक्षा 6-8, 11 से 14 वर्ष के बच्चों सहित), और सेकेंडरी स्टेज ( कक्षा 9 से 12 , दो फेज में, यानी पहले फेज में 9 और 10 और दूसरे में 11 और 12, 14 से 18 वर्ष के बच्चों सहित )शामिल होगी।
फाउंडेशन स्टेज में पांच वर्षीय लचीले, बहु- स्तरीय खेल / गतिविधि आधारित अध्ययन और ई सी सी ई के पाठ्यक्रम और शिक्षणशास्त्र शामिल होंगे। प्रिप्रेटरी स्टेज तीन वर्ष की होगी जो फाउंडेशन की स्टेज खेल – खोज और गतिविधि आधारित शिक्षण – शास्त्रीय शैली से आगे बढ़ेगी और कुछ हल्के – फुल्के पाठ्यक्रम आधारित शिक्षण को भी शामिल किया जाएगा और इस प्रकार ज्यादा औपचारिक लेकिन संवादात्मक कक्षा शैली के जरिए अध्ययन – अध्यापन की ओर बढ़ेगी, जिसमें पढ़ने, लिखने, बोलने, शारीरिक शिक्षा , कला, भाषा , विज्ञान और गणित भी शामिल होंगे। मिडिल स्टेज में भी तीन वर्ष की शिक्षा होगी और इसमें विषय विशेषज्ञ शिक्षकों द्वारा विषय की अमूर्त अवधारणाओं पर काम शुरू होगा जिसके लिए विद्यार्थियों की पर्याप्त तैयारी हो चुकी होगी। यह कार्य विज्ञान, गणित, कला , खेल , सामाजिक विज्ञान मानविकी और व्यवसायिक विषयों में होंगे। हर विषय में अनुभव आधारित शिक्षण और विषय – विशेषज्ञों के आ जाने के बावजूद विषयों के बीच परस्पर संबंध देखने को प्रोत्साहित किया जाएगा। हाई स्कूल स्टेज में चार साल के बहु – विषयक अध्ययन शामिल होंगे , जो इस स्टेज के विषय – उन्मुख शिक्षा क्रम और शिक्षण- शास्त्रीय शैली पर आधारित होंगे, लेकिन अधिक गहराई , अधिक आलोचनात्मक सोच, जीवन आकांक्षाओं पर अधिक ध्यान और विद्यार्थियों द्वारा विषयों के चुनाव को लेकर अधिक लचीलेपन के साथ होंगे। विशेष रूप से, यदि किसी की इच्छा हो तो ग्रेड 10 के बाद व्यवसायिक या किसी विशेषज्ञता प्राप्त स्कूल में ग्रेड 11-12 में अन्य कोर्स के चुनाव के विकल्प लगातार विद्यार्थियों के लिए बने रहेंगे।
विद्यार्थियों का समग्र विकास – सभी स्तरों पर पाठ्यचर्या और शिक्षा विधि का समग्र केंद्रबिंदु शिक्षा प्रणाली को रटने की पुरानी प्रथा से अलग वास्तविक समझ और ज्ञान की ओर ले जाना है। शिक्षा का उद्देश्य केवल संज्ञानात्मक विकास एवं चरित्र निर्माण और इक्कीसवीं शताब्दी के प्रमुख कौशल से सुसज्जित करना है। अनिवार्य अधिगम और आलोचनात्मक चिंतन को बढ़ाने के लिए पाठ्यक्रम की विषय- वस्तु को कम करना।
पाठ्यक्रम की विषय – वस्तु को प्रत्येक विषय में काम करके इसे बेहद बुनियादी चीजों पर केंद्रित किया जाएगा ताकि आलोचनात्मक चिंतन और समग्र, खोज – आधारित , चर्चा – आधारित और विश्लेषण आधारित अधिगम पर जरूरी ध्यान दिया जा सके। शिक्षण और सीखना अधिक संवादात्मक तरीके से संचालित होगा; सवाल पूछने को प्रोत्साहित किया जाएगा, और कक्षाओं में नियमित रूप से अधिक रुचिकर , रचनात्मक , सहयोगात्मक और खोजपूर्ण गतिविधियां होंगी ताकि गहन और प्रायोगिक सीख सुनिश्चित किया जा सके।
प्रायोगिक अधिगम – सभी चरणों में, प्रायोगिक आधारित अधिगम को अपनाया जाएगा, जिसमें अन्य चीजों के अलावा स्वयं करके सीखना और प्रत्येक विषय में कला और खेल को एकीकृत किया जाएगा, और कहानी – आधारित शिक्षण – शास्त्र को प्रत्येक विषय में एक मानक शिक्षण – शास्त्र के तौर पर देखा जाएगा। साथ ही विभिन्न विषयों के बीच संबंधों की खोज को प्रोत्साहित किया जाएगा। वर्तमान अधिगम प्रतिमान ( लर्निंग आउटकम )और वांछनीय अधिगम परिणामों के बीच खाई को पाटने के लिए कुछ विषयों में कक्षा – कक्षीय प्रक्रियाओं में परिवर्तन होंगे , जहां भी उचित होगा वहां इन्हे दक्षता – आधारित अधिगम और शिक्षा की ओर उन्मुख किया जाएगा। आकलन के उपकरणों (जिसमें सीखने ” के रूप में, ” का” “के लिए “, आकलन शामिल है ) को दिए गए वर्ग के हर विषय के अधिगम परिणामों , क्षमताओं और रुझानों के साथ भी संरेखित किया जाएगा।
कला – समन्वय ( आर्ट – इंटीग्रेशन ) एक क्रॉस – करिकुलर शैक्षणिक दृष्टिकोण है जिसमें विविध – विषयों की अवधारणाओं के अधिगम आधार के रूप में कला और संस्कृति के विभिन्न अवयवों का उपयोग किया जाता है। अनुभव आधारित अधिगम पर विशेष बल दिए जाने के अंतर्गत कला – समन्वित शिक्षण को कक्षा प्रक्रियाओं में स्थान दिया जाएगा जिससे न सिर्फ कक्षा ज्यादा आनंदपूर्ण बनेगी बल्कि भारतीय कला और संस्कृति के शिक्षण में समावेश से भारतीयता से भी बच्चों का परिचय हो पाएगा। इस अप्रोच से शिक्षा और संस्कृति के परस्पर संबंधों को मजबूती मिलेगी।
खेल समन्वय एक और क्रॉस करिकुलर शैक्षणिक दृष्टिकोण है जिसके तहत स्थानीय खेलों सहित विविध शारीरिक गतिविधियों का शिक्षण ,प्रक्रियाओं में उपयोग किया जाता है, ताकि परस्पर सहयोग, स्वतः पहल करना , स्वयं निर्देशित होकर कार्य करना , स्व – अनुशासन , टीम भावना , जिम्मेदारी , नागरिकता , आदि जैसे कौशल विकसित करने में सयस्यक हो।
कोर्स चुनाव के विकल्पों में लचीलेपन के माध्यम से छात्रों को सशक्त बनाना : विद्यार्थियों को विशेष रूप से माध्यमिक विद्यालय में अध्ययन करने के लिए अधिक सुगम और रुचिकर विषयों के चुनाव के विकल्प दिए जायेंगे- इनमे शारीरिक शिक्षा, कला और शिल्प , एवं तकनीकी विषय भी शामिल होंगे- ताकि विद्यार्थी अध्ययन और जीवन की योजना के रास्ते तैयार करने का विकल्प मिल सके।
स्थानीय विषय – वस्तु और आस्वाद के साथ राष्ट्रीय पाठ्यपुस्तकें : स्कूली पाठ्यक्रम के बोझ में कमी , और बढ़े हुए लचीलेपन, और रटकर सीखने के बजाय रचनावादी तरीके से सीखने पर नए सिरे से जोर के साथ – साथ स्कूल की पाठ्यक्रमों में भी बदलाव होने चाहिए। सभी पाठ्यपुस्तकों में राष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण मानी जाने वाली आवश्यक मूल सामग्री ( चर्चा , विश्लेषण उदाहरण और अनुप्रयोग के साथ ) को शामिल करना होगा, लेकिन इसके साथ ही स्थानीय संदर्भों और आवश्यकताओं के अनुसार किसी भी वांछित बारीकियों और पूरक सामग्री को भी शामिल करना चाहिए। जहां संभव हो , शिक्षकों के पास भी तय पाठ्यपुस्तकों में अनेक विकल्प होंगे । उनके पास अब ऐसी पाठ्यपुस्तकों के अनेक सेट होंगे जिसमें अपेक्षित राष्ट्रीय और स्थानीय सामग्री शामिल होगी। इसके चलते वे ऐसे तरीकों से पढ़ा सकें जो उनकी अपनी शिक्षण – शास्त्रीय शैली और उनके छात्रोंं एवं समुदायों की जरूरत के मुताबिक हो।
छात्रों को और शिक्षा व्यवस्था पर पाठ्यक्रम की कीमतों के बोझ को कम करने के लिए इस तरह की गुणवत्ता की पाठ्यकपुस्तकों को न्यूनतम संभव लागत – उत्पादन / मुद्रण की लागत पर मुहैया करवाया जाएगा। यह उद्देश्य एस सी ई आर टी के संयोजन में एन सी ई आर टी द्वारा विकसित उच्चतर गुणवत्ता वाली पाठ्यपुस्तक सामग्री का उपयोग करके पूरा किया जा सकता है; अतिरिक्त पाठयपुस्तक सामग्री को सार्वजनिक- परोपकारी भागीदारी और क्राउड सोर्सिंग द्वारा वित्त पोषित किया जा सकेगा , जिसका इस्तेमाल विशेषज्ञों को ऐसी उच्चतर गुणवत्ता वाली पाठ्यपुस्तकों को लागत मूल्य पर लिखने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकेगा।
शिक्षक भर्ती और पदस्थापन : शिक्षक वास्तव में बच्चों के भविष्य को आकार देते हैं, अतः हमारे राष्ट्र के भविष्य का भी निर्माता होते हैं। उत्कृष्ट शिक्षक ही – विशेषकर ग्रामीण क्षेत्र से – शिक्षण पेशे में प्रवेश कर पाएं यह सुनिश्चित करने के एक उत्कृष्ट 4 – वर्षीय एकीकृत बी . एड . डिग्री सफलता पूर्वक पूरा करने के बाद स्थानीय इलाकों में निश्चित रोजगार भी शामिल होगा। इस प्रकार की छात्रवृति स्थानीय विद्यार्थियों ( विशेषकर छात्राओं ) के लिए स्थानीय नौकरियों के अवसर प्रदान करेगी जिससे कि ये विद्यार्थी स्थानीय क्षेत्र के रोल मॉडल के रूप में और उच्चतर – योग्य शिक्षकों के रूप में सेवा कर सकें जो स्थानीय भाषा बोलते हो। शिक्षक पात्रता परीक्षा, सामग्री और शिक्षाशास्त्र दोनों के संदर्भ में बेहतर परीक्षण सामग्री को विकसित करने के लिए मजबूत किया जाएगा। स्कूल शिक्षा के सभी स्तरों ( बुनियादी, प्रारंभिक, मिडिल, और माध्यमिक ) के शिक्षकों को शामिल करते हुए भी टी ई टी को विस्तृत किया जाएगा। विषय शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया में उनके संबंधित विषय में प्राप्त टी ई टी या एन टी ए परीक्षा के अंकों को भी शामिल किया जाएगा। शिक्षण के प्रति जोश और उत्साह को जांचने के लिए साक्षात्कार या कक्षा में पढ़ाने का प्रदर्शन करना, स्कूल या भाषा में शिक्षण में सहजता और दक्षता का आकलन करने के लिए किया जाएगा।
निष्कर्ष :– वास्तव में हम यह कह सकते हैं कि नई शिक्षा नीति 2020 की लागू करने एवं इसके कार्यान्वयन को संतुलित और व्यावहारिक रूप से संपादित करने की आवश्यकता है।
आशीष अम्बर
उत्क्रमित मध्य विद्यालय धनुषी, केवटी, दरभंगा